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पतंग उत्सव के बहाने के एकता व भाईचारे का संदेश देते है गुजारती

पतंग उत्सव के बहाने के एकता व भाईचारे का संदेश देते है गुजारती – गुजराती समाज के लोग मकर संक्रांति में मनाते है पतंग उत्सव संवाददाता. जमशेदपुर शहर में रचे बसे गुजराती समाज के लोग अपनी संस्कृति को उजागर करते हुए हर उत्सव का आनंद उठाते है. यहीं वजह है कि मकर संक्रांति के दिन […]

पतंग उत्सव के बहाने के एकता व भाईचारे का संदेश देते है गुजारती – गुजराती समाज के लोग मकर संक्रांति में मनाते है पतंग उत्सव संवाददाता. जमशेदपुर शहर में रचे बसे गुजराती समाज के लोग अपनी संस्कृति को उजागर करते हुए हर उत्सव का आनंद उठाते है. यहीं वजह है कि मकर संक्रांति के दिन लोग दान पुण्य कर गुजरात के पतंग उत्सव का मजा लौहनगरी में लेते है. भले ही कामकाज की व्यस्तता के कारण पतंग उत्सव के रौनक पहले जैसी नहीं रही लेकिन फिर लोगों की कोशिश रहती है कि वे पतंग उड़ाने के बहाने से ही एक दूसरे इस दिन जरूर मिल सके. रंग बिरंगे पतंग देते है एकता व भाईचारे का संदेश मकर संक्रांति के दिन गुजराती समाज में पतंग उत्सव मनाया जाता है. इस दिन सूर्य उत्तरायण को प्रयाण करते हैं अौर वसंत ऋतु का आगमन होता है. इसलिए समाज में पूजा पाठ एवं दान पुण्य का विशेष महत्व है. सिर्फ गुजरात में नहीं बल्कि जमशेदपुर में बसे गुजराती वासी रंग-बिरंगी पतंगों से आसमान भर देते हैं. ये रंग विविधता में एकता, आनंद, उत्साह और परस्पर स्नेह-सौहार्द के प्रतीक हैं. पतंग काटने पर जीत की खुशी मनाया जाता है.यह एक ऐसा रंगीन उत्सव है जब बच्चे, बड़े, बुजुर्ग, सब साथ मिल कर पतंग उड़ाते है. 1966 में जमशेदपुर में पतंग उत्सव की थी अलग ही रौनक : तरु गांधीसक्रिट हाउस निवासी तरु गांधी करीब 50 वर्षों से शहर में बसी है. श्रीमती गांधी ने बताया कि जब 1966 में शादी के बाद वह जमशेदपुर आयी तो पतंग उत्सव का अलग ही रौनक उन्हें देखने को मिला था. उन्होंने बताया कि गुजरात की तरह ही यहां बसे गुजराती समाज के लोग साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते है. सास अौर बहू मिल कर तीन दिन पहले से खिचड़ा(सात अनाज से बनती है खिचड़ी) बनाने की तैयारी करती थी. खिचड़ा मेें ज्वार के अंदर का हिस्सा दिया जाता है. जिसके लिए ज्वार को पहले से भिंगो कर रखना पड़ता था. फिर लकड़ी से कुटना पड़ता था अौर कुटते समय यह ध्यान रखना पड़ता था की ज्वार का अंदर हिस्सा टूटे नहीं सिर्फ छिलका उतर जाये. महिलाएं खिचड़ा के साथ उंधिया की सब्जी, जलेबी बनाती थी, पुरुष व बच्चे छत पर पतंग उड़ाते थे फिर सब अपने -अपने घर में बनाये पकवानों को लेकर एक जगह एकत्रित होते थे जहां सभी लोग साथ मिल कर भोजन करते थे. अब व्यस्तता के कारण कुछ लोगों के घर में पारंपरिक नियमों का पालन भले ही नहीं कर पाते है पर आज भी समाज के हर घर में नदी स्नान, पूजा पाठ एवं दान पुण्य के साथ आज भी इस दिन कि शुरुआत होती है.

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