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मदहोश करती माउथ ऑर्गन की धुन

मदहोश करती माउथ ऑर्गन की धुनफिल्म आराधना का गाना मेरी सपनों की रानी कब आओगी तो तुम… या शोले का वह धुन जिसे अमिताभ बच्चन बजाते थे, अगर आज भी लोगों की जुबान पर है और लोगों के कानों में मिठास घोल रहा है, तो उसकी एक बड़ी वजह उसका संगीत है. वही संगीत, जिसमें […]

मदहोश करती माउथ ऑर्गन की धुनफिल्म आराधना का गाना मेरी सपनों की रानी कब आओगी तो तुम… या शोले का वह धुन जिसे अमिताभ बच्चन बजाते थे, अगर आज भी लोगों की जुबान पर है और लोगों के कानों में मिठास घोल रहा है, तो उसकी एक बड़ी वजह उसका संगीत है. वही संगीत, जिसमें माउथ ऑर्गन ने जादू दिखाया है. ट्रेन की सीन के साथ जब माउथ ऑर्गन उत्तान और अवतान (चढ़ते और उतरते हुए) क्रम में बजता है, तो सुनने-देखने वालों के अरमान भी हिलोरें लेने लगते हैं. 70-80 के दशक तक यह इंस्ट्रूमेंट काफी पॉपुलर हो चुका था. उस समय की फिल्मों में एक धुन तो इसकी रहती ही थी. लेकिन, बाद में इसकी जगह दूसरे इंट्रूमेंट लेते चले गये. आज भी यह इंस्ट्रूमेंट पूरी तरह आउट नहीं हुआ है, लेकिन बादशाहत जैसी बात नहीं रही. अपने शहर में हारमोनिका फैंस क्लब के माध्यम से कुछ लोग इस बेहतरीन इंस्ट्रूमेंट की न सिर्फ उपयोगिता बचाये रखने की कवायद में जुटे हैं, बल्कि इसे पुन:स्थापित करने का प्रयास भी कर रहे हैं. माउथ ऑर्गन और इसके चाहने वालों पर पढ़िये लाइफ @ जमशेदपुर की खास रिपोर्ट… ————-लौट रहा पुराना दौरअसीम कुमार बनर्जी ने जमशेदपुर हारमोनिका फैंस क्लब का गठन 2014 में किया. इसके पीछे उनका मकसद है- इस कला को जीवंत बनाये रखना. असीम बताते हैं कि दूसरे राज्यों में हारमोनिका क्लब अच्छे कंडीशन में चल रहे हैं, लेकिन अपने यहां ऐसा कुछ भी नहीं था. जब उन्होंने शुरुआत की, तब लोग क्लब से खुद ही जुड़ते चले गये. ग्रुप के ज्यादातर सदस्य युवा हैं. असीम बताते हैं कि पुराने फैशन के साथ-साथ माउथ ऑर्गन का दौर भी लौट रहा है. युवा इस ओर दिलचस्पी दिखा रहे हैं. मिलन गुप्ता के शागिर्द रह चुके हैं असीम असीम कुमार बनर्जी बताते हैं कि वह मशहूर हारमोनिका वादक मिलन गुप्ता के शागिर्द रह चुके हैं. बताते हैं कि 1985 से 1989 के दौरान वह कोलकाता के जिऑर्ज टेलीग्राफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट से पढ़ायी करते थे. एक दोस्त के माध्यम से उनकी मुलाकात मिलन गुप्ता से हुई. असीम बचपन से ही हारमोनिका बजाना चाहते थे. असीम ने बीते वर्षों में दूरदर्शन के साथ-साथ दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता व रानीगंज आदि जगहों में परफॉर्मेंस दे चुके हैं. वह बताते हैं कि ज्यादातर परफॉर्मेंस पुराने गीतों के ट्रैक पर ही देते हैं. इनमें किशोर कुमार, आशा भोंसले व लता मंगेशकर के गीत शामिल हैं. दरअसल, हार्मोनिका एक मेलोडियस इंस्ट्रूमेंट है. इसमें फास्ट बीट वाले गाने नहीं बजाये जा सकते. इसलिए, पुराने गानों के ट्रैक पर इससे काम नहीं किया जा सकता. हारमोनियम का ही छोटा रूप है हारमोनिकामाउथ ऑर्गन सांस को छोड़ने व सांस लेने पर बजता है. असीम बनर्जी बताते हैं- वास्तव में यह हारमोनियम का ही छोटा रूप है. 10, 12, 16 होल वाले प्रोफेशनल माउथ ऑर्गन मिलते हैं. इसमें बटन भी हैं. इन्हें दबाने पर सुर निकलते हैं. भारत में माउथ ऑर्गन का निर्माण नहीं होता. प्रोफेशनल माउथ ऑर्गन जर्मनी व शंघाई आधि जगहों से मंगाये जाते हैं. इसकी अधिकतम कीमत तीन लाख रुपये तक है.हारमोनिका व उसकी खासियत सुपर क्रोमोनिका 270 : जर्मनी की होनर कंपनी इसका निर्माण 1857 से करती आ रही है. इसकी कीमत 12 हजार रुपये है. इसमें 15.5 सेंटीमीटर के 12 होल होते हैं. इसकी रीडप्लेट्स को तांबे से तैयार किया गया है. ओवर ब्लोस को एडजस्ट करना भी काफी आसान है. विश्व का छोटा हारमोनिका : जर्मन की होनर कंपनी द्वारा निर्मित यह माउथ ऑर्गन कई मायनों में खास है. इसमें ब्रास रीड्स का इस्तेमाल किया गया है. इस कारण सामान्य माउथ ऑर्गन के जैसे ही साउंड सुनायी देता है. 3.5 सेंटीमीटर के इस हारमोनिका को लोग लॉकेट व की-चेन के तौर पर भी पहनते हैं. माउथ ऑर्गन के कुछ दिलचस्प किस्से पंचम दा को ऐसा मिला ब्रेक : सचिन देव बर्मन यानी एसडी बर्मन के पुत्र राहुल देव बर्मन यानी आरडी बर्मन यानी पंचम दा को माउथ ऑर्गन बजाने का बहुत शौक था. बताते हैं कि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी उन दिनों एक माउथ ऑर्गन बजाने वाली तलाश कर रही थी. वे जानते थे कि पंचम दा बेहतरीन माउथ ऑर्गन बजाते हैं. लेकिन, एक बड़े संगीतकार के पुत्र को ऐसा ऑफर देते हुए उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था. यह बात पंचम दा को पता चली. वह माउथ ऑर्गन बजाने के लिए तैयार हो गये. इसके बाद इस फिल्म के सभी गाने उस जमाने में सुपर हीट रहे. मेहमूद से उनकी अच्छी दोस्ती थी. मेहमूद ने उन्हें स्वतंत्र संगीतकार के रूप में काम देने का वादा किया था. इसी वादे को उन्होंने फिल्म छोटे नवाब के जरिये पूरा किया. कहा तो यह भी जाता है कि फिल्म आराधना का गाना तैयार करते वक्त एसडी बर्मन काफी बीमार थे. पंचम दा ने बहुत ही कुशलता से अपने पिता का काम संभाला और ‘मेरी सपनों की रानी कब आएगी तू…’ जैसे गानों में अपने माउथ ऑर्गन को पिरोते हुए युवा दिलों की जुबान पर चढ़ा दिया. पंचम दा ने अपने जीवन में कई फिल्मों में गाने दिये, जो लीक से हट कर हैं. इन गानों में अगर माउथ ऑर्गन को कहीं जगह मिली, तो इसका श्रेय पंचम दा को ही जाना चाहिए. इंदौर समेत कई शहरों में चलते हैं बड़े क्लब : देश में इंदौर समेत कई शहरों में हारमोनिका क्लब चलते हैं. 5 अक्तूबर 2015 को हारमोनिका क्लब ऑफ इंदौर द्वारा वहीं पर ऑल इंडिया माउथ ऑर्गन प्लेयर मीट का आयोजन किया गया. इसमें 206 हारमोनिका प्लेयर ने माउथ ऑर्गन बजाकर एक रिकॉर्ड कायम किया. इसी कार्यक्रम में प्रख्यात हारमोनिका प्लेयर रुस्तम कारवा भी शामिल हुए थे. वे राजेश रोशन, अनु मलिक, उषा खन्ना और विजु शाह के डायरेक्शन में माउथ ऑर्गन बजा चुके हैं. उनका कहना है कि माउथ ऑर्गन के सुरों जैसी मिठास किसी दूसरे इंट्रूमेंट में नहीं हैं. हार्मोनिका क्लब ऑफ गुजरात भी ऐसे आयोजन करवाता रहता है. यहां प्रख्यात हार्मोनिका वादक मदन कुमार भी प्रस्तुति दे चुके हैं. टीम के सदस्य :::::::::मैं पिछले 15 वर्षों से माउथ ऑर्गन बजा रहा हूं. अब हम ग्रुप भी बना चुके हैं. हम जगह-जगह परफॉर्मेंस देते हैं. माउथ ऑर्गन को बजाना व परफॉर्मेंस देना दोनों ही बेहद सुखद है. -उज्जल दत्ता, बर्मामाइंसजब मैं स्टूडेंट था, तब अपने इस शौक को पूरा नहीं कर पाया. आज मैं वर्किंग हूं, तो इस शौक को पूरा कर रहा हैं. माउथ ऑर्गन को सीखना व खाली समय में इसे बजाने से काफी सुकून मिलता है. -सुमित कुमार सिंह, कदमाशुरुआत से ही मुझे माउथ ऑर्गन बजाने का शौक था. जब मैंने अपने भांजे को बजाते हुए देखा, तो मैंने बजाना शुरू किया. इसका एहसास ही काफी अलग है. -शंभू कुमार, कदमामाउथ ऑर्गन को बजाते हुए एक दर्शक के तौर पर मैंने सुना था. तब इसे बजाने की ललक मुझमें जगी. मैं लंबे समय से माउथ ऑर्गन बजा रहा हूं. -सुदीप कुमार दत्ता, सोनारीफिल्म शोले में ऐसी धुन थी, जिसके कारण मैंने माउथ ऑर्गन बजाना सीखा. इसके बाद इस इंस्ट्रूमेंट के प्रति मेरा लगाव बढ़ा. -अरुणवा दास, बाराद्वारीजब से मैंने माउथ ऑर्गन बजाते हुए परफॉर्मेंस देखा, तब से मुझे भी बजाने की चाहत हुई. परफॉर्मेंस में तो हम सभी बजाते ही हैं. खाली समय में भी मैं इसे बजाता हूं. -अरूप मुकुटी, साकची

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