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ह्यफिरकलह्ण व ह्यबनामह्ण को मिलेगी पहचान

‘फिरकल’ व ‘बनाम’ को मिलेगी पहचान फ्लैग::: इस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर की सहयोग से चलेगा प्रशिक्षण कार्यक्रम फोटो- दूबे जी की लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुरझारखंड की पारंपरिक लोकनृत्य फिरकल व वाद्ययंत्र बनाम को अंतराष्ट्रीय स्तर की पहचान मिलेगी़ इस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर, कोलकाता ने झारखंड की इन दो लोक व जनजातीय कलाओं के संरक्षण व […]

‘फिरकल’ व ‘बनाम’ को मिलेगी पहचान फ्लैग::: इस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर की सहयोग से चलेगा प्रशिक्षण कार्यक्रम फोटो- दूबे जी की लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुरझारखंड की पारंपरिक लोकनृत्य फिरकल व वाद्ययंत्र बनाम को अंतराष्ट्रीय स्तर की पहचान मिलेगी़ इस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर, कोलकाता ने झारखंड की इन दो लोक व जनजातीय कलाओं के संरक्षण व संवर्द्धन का बीड़ा उठाया है़ उक्त जानकारी इस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर कोलकाता के निदेशक प्रो ओमप्रकाश भारती ने बिष्टुपुर स्थित कला मंदिर में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में दी़ 16 को 12 माह तक का मिलेगा प्रशिक्षण उन्होंने बताया कि विलुप्त होते फिरकल नृत्य व बनाम की संगीत को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी संभावनाएं है़ं फिरकल व बनाम के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए गुरु-शिष्य परंपरा के तहत प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा रही है. फिरकल के लिए गुरु के रूप मेें पोटका क्षेत्र के जानुमडीह गांव के सुभाष सरदार व बनाम के लिए दुर्गाप्रसाद मुर्मू का चयन हुआ है़ ये फिरकल के 10 व बनाम के चयनित 6 युवकों को प्रशिक्षण देंगे़ इन्हें 6 से 12 महीने का प्रशिक्षण दिया जायेगा. प्रशिक्षण की गतिविधि की देखरेख के लिए कोर्स को-ऑर्डिनेटर के रूप में एनएसडी के पूर्व छात्र जितराई हांसदा को चयनित किया गया़ उन्होंने बताया कि सरायकेला छऊ नृत्य शैली पर काम करने की योजना है़ इस पर फिलहाल सर्वे कर कला व कलाकारों के बारे में जानकारी ली जा रही है. संस्कृति को शिक्षा में शामिल होना चाहिएप्रो भारती ने कहा कि संस्कृति को शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए़ संस्कृति से ही समाज में संस्कार आता है़ संस्कृति समाज को जोड़ता है़ शहर में हर सुख-सुविधा है, लेकिन संस्कृति नहीं है़ इसलिए, यहां संस्कार का भी अभाव है़ हम सब गांव को इसलिए याद करते हैं, क्योंकि वहां संस्कृति है़ संस्कृति व संस्कार को बचाये रखने के लिए शिक्षा ही सुगम माध्यम है़

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