3 दिसंबर वर्ल्ड डिसएबल डे (जोड़):::असंपादितनाम- अतुल रंजन सहाय, कदमामां व पिता- इंदिरा सहाय अभी बहुत काम करना बाकी है… टाटा स्टील में सीनियर मैनेजर कॉरपोरेट स्सटेनिब्लिटी के पद पर कार्यरत अतुल रंजन सहाय ने नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड को धरातल पर लाया. अतुल बताते हैं कि आज से करीब 24 साल पहले शहर में ऐसा कोई भी स्कूल नहीं था जहां ब्लाइंड बच्चों की शिक्षा दी जा सकें (ब्रेल लिपी सिखायी जा सकें). एसोसिएशन की शुरुआत के बाद अबतक करीब 80 से भी ज्यादा स्टूडेंट्स एनआईओएस से सेकेंडरी व सीनियर सेकेंडरी को पास कर चुके हैं. मैं तो निस्वार्थ भाव से केवल अपना कर्तव्य निभा रहा हूं. मैंने 23 साल की उम्र में जब अपनी आंखों की रौशनी खोयी उस दौरान मुझे मेरे पेरेन्ट्स से सपोर्ट मिला क्योंकि वो शिक्षित थे. लेकिन मैं वैसे लोगों के लिए काम करना चाहता हूं जिन्हे हकीकत में जरुरत है. मुझे उस वक्त काफी खुशी होती है जब हमारे यहां के स्टूडेंट सफल होते हैं. यही कारण है कि इस साल हमारे यहां के 3 स्टूडेंट्स बैंक पीओ बने हैं, कई कलर्क व रेलवे की नौकरी कर रहे हैं. समय समय पर एडवेंचरस ट्रिप का आयोजन करते हैं. जिसमें दलमा के साथ दूसरे राज्यों के पर्वतों में ले जाया जाता है. स्पोर्टस एक्टिविटी कराया जिसमें कई नेशनल चेस कंपीटिशन में भाग लेंगे. शहर में क्रिकेट का नेशनल टूर्नामेंट करवाया. इस काम को मैं सदा के लिए जारी रखूंगा. ——————————नाम- अनय चौधरी, बारीडीह निवासी माता व पिता- माधुरी देवी व अनिरुद्ध प्रसाद चौधरी जब तक है सांस तब तक निशक्तों के लिए उठाउंगा आवाज… पांव से निशक्त होने बावजूद तमाम निशक्तों की आवाज बनने वाले अनय चौधरी का कहना है कि जब तक मेरी सांसे चल रही हैं मैं तब तक जरुरतमंद निशक्तों के हक के लिए आवाज उठाते रहूंगा. निशक्तों के अधिकारों के लिए मैं लड़ पा रहा हूं. यही काम मुझे अच्छा लगता है. मैं जीवन भर इसे जारी रखूंगा. मंडल रेल उपभोक्ता परामर्श समिति के सदस्य के तौर पर शहर के रेलवे उपभोक्ताओं को होने वाली परेशानियों को हल करना पहली प्राथमिकता रहती है. वहीं निशक्तों के सुविधाओं के लिए किया गया प्रयास रंग लाया है. जिसमें स्टेशन में लिफ्ट सिस्टम लगेगा, रैंप का निर्माण होगा, निशक्तों को रोजगार से जोड़ने के लिए 2 फीसदी दुकान का आबंटन होगा. निशक्तों को पेंशन योजना से जोड़ने के साथ रोजगार दिलाने का प्रयास कर रहे हैं. पल्स पोलियो अभियान, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य व टीकाकरण जैसे सामाजिक कार्य में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं. मां से मिली प्रेरणाअनय बताते हैं कि मेरी मां सामुदायिक विकास जन कल्याण केन्द्र (टिस्को) में गरीब बच्चों को शिक्षित करने का नेक काम करती थी. समाज सेवा की प्रेरणा मुझे उन्ही से मिली. वहीं पत्नी अनीता चौधरी के सपोर्ट के बल पर ही मैं सालों से निरंतर यह कार्य करते आ रहा हूं. ————————–नाम- धर्मेन्द्र कुमार शर्मा, बारीडीह बस्ती मां व पिता- माया देवी व बिरेन्द्र शर्मा बुलंद हौसलों के साथ निशक्तों के लिए कर रहे काम … सामान्य व्यक्तियों की तुलना में निशक्त व्यक्ति को जीवन में काफी दिक्कतों का सामना करना होता है. कहना है धर्मेन्द्र कुमार शर्मा का. धर्मेन्द्र बताते हैं कि मैं आर्थिक तौर पर मजबूत तो नहीं लेकिन शारिरिक तौर पर मैं निशक्तों की मदद के लिए हमेशा खड़ा रहता हूं. एबीएम कॉलेज से इंटर की पढ़ायी कर चुके धर्मेन्द्र बताते हैं कि केवल विकलांग ही नहीं कमजोर व गरीब लोगों की मदद के लिए भी काम करता हूं. जरुरतमंद को पेंशन दिलाना हो या फिर जरुरी सर्टिफिकेट दिलवाना उस दौरान मैं मदद करता हूं. आज मैं जिस समस्या से दो चार हो रहा हूं, कोई और इस दिक्कत का सामना ना करें इसके लिए पल्स पोलियो अभियान में लोगों को जागरुक करने का प्रयास करता हूं. ————————-
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3 दिसंबर वर्ल्ड डिसएबल डे (जोड़):::असंपादित
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