प्रतिमा गढ़ने की कला ने दी ऊषा को पहचान (आरडी नाम से है)- 30 वर्षों से मूर्ति बनाकर परिवार चला रही ऊषा पाल संवाददाता, जमशेदपुर समय के साथ हमारे समाज में भी बदलाव आता रहा है. आज महिलाएं किसी क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में पीछे नहीं हैं. शहर में एमजीएम अस्पताल के पास रहने वाली ऊषा रानी पाल ने प्रतिमा निर्माण की कला से अपनी अलग पहचान बनायी है. ऊषा 30 वर्षों से प्रतिमा निर्माण कर रही हैं. उनका कहना है कि घर के काम के अलावा जो भी समय मिलता है, उसमें प्रतिमा का निर्माण करती हैं. हर वर्ष वह एक हजार से अधिक प्रतिमा का निर्माण करती हैं. इन दिनों वह लक्खी प्रतिमा निर्माण में व्यस्त हैं. 73 वर्षीय ऊषा इस वर्ष 30 लक्खी प्रतिमा का निर्माण कर रही हैं. उनका कहना है कि इस कार्य से कला को सराहना मिलने के साथ आय भी हो जाता है, जो घर चलाने में मददगार होता है. सोचा नहीं था कि मूर्तिकार बन पाउंगी ऊषा अपने पति, पांच बेटे, बहू एवं पोता-पोती के साथ रहती हैं. ऊषा बताती हैं कि पहले पति का सहयोग करती थी. पांच बच्चों के अलावा घर का काम करना पड़ता था. बच्चे बड़े हुए तो प्रतिमा बनाने का काम शुरू किया. शुरू में भरोसा नहीं हो पा रहा था कि मैं प्रतिमा बना पाउंगी या नहीं. समय के साथ ग्राहकों का भरोसा बढ़ता गया. ससुराल में मिला कला को प्रोत्साहन ऊषा ने मूर्ति निर्माण की कला अपने पति से सीखी. वहीं ससुरालवालों का प्रोत्साहन मिला. प्रतिमा बनाने के बाद बिक्री का काम उसके दो बेटे करते हैं. इससे होने वाले आमदनी से परिवार चलता है.
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प्रतिमा गढ़ने की कला ने दी ऊषा को पहचान (आरडी नाम से है)
प्रतिमा गढ़ने की कला ने दी ऊषा को पहचान (आरडी नाम से है)- 30 वर्षों से मूर्ति बनाकर परिवार चला रही ऊषा पाल संवाददाता, जमशेदपुर समय के साथ हमारे समाज में भी बदलाव आता रहा है. आज महिलाएं किसी क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में पीछे नहीं हैं. शहर में एमजीएम अस्पताल के पास रहने […]
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