आापके इस ख्वाब को पूरा करेगा प्रभात खबर. आठ सितंबर 2015 को एक्सएलआरआइ ऑडिटोरियम जमशेदपुर में संध्या छह बजे से प्रभात खबर और श्रीलेदर्स कमानी सेंटर, बिष्टुपुर के संयुक्त तत्वाधान में गुरु सम्मान समारोह और फोक नाइट का अायोजन हो रहा है.
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राजस्थानी लोक संगीत की मिठास लेकर आ रहे मामे खां
जमशेदपुर. कल्पना कीजिए एक ऐसी शाम की, जब आप रंगीन रोशनी से सराबोर ऑडिटोरियम में संगीत प्रेमियों के बीच होंगे. पारंपरिक राजस्थानी वेषभूषा में एक मंडली लोकगीतों की मधुर स्वर लहरियां बिखेर रही होंगी. जब इस नजारे की कल्पना मात्र से ही मन रोमांचित हो उठता हो, तो आंखों से देखने के बाद आप पूरी […]
जमशेदपुर. कल्पना कीजिए एक ऐसी शाम की, जब आप रंगीन रोशनी से सराबोर ऑडिटोरियम में संगीत प्रेमियों के बीच होंगे. पारंपरिक राजस्थानी वेषभूषा में एक मंडली लोकगीतों की मधुर स्वर लहरियां बिखेर रही होंगी. जब इस नजारे की कल्पना मात्र से ही मन रोमांचित हो उठता हो, तो आंखों से देखने के बाद आप पूरी तरह से इसके सम्मोहन में जाने से खुद को कहां रोक पाएंगे. चलिए हम आपको बताते हैं ऐसा कहां और कब होगा.
इस आयोजन में इंपीरियल व्हीकल्स, भालोटिया इंजीनियरिंग तथा वसुंधरा ग्रुप अन्य प्रायोजक की भूमिका में शामिल हो रहे हैं. सहयोगी के रूप में कुलदीप संस ज्वेलर्स तथा हेवेन इंडिया रियलटेक इसमें भाग ले रहे हैं तो होटल जीवा आतिथ्य सहयोग एवं स्काइवे कैरियर हब एवं क्रिएटिव हार्ट्ज लॉजिस्टिक पार्टनर के रूप में शामिल हो रहे हैं.
कौन हैं मामे खां
थार के रेगिस्तान में एक ऐसी मिठास है, जो कानों में मिश्री की तरह घुल जाती हैं. यह मिठास है, यहां का लोकसंगीत. थार रेगिस्तान में पानी की कमी भले ही है, पर यह अपने में कई नायाब खजाने और थातियां समेटे हुए है. यहां पर संगीत से जुड़ी हुई कईं जातियां बसती हैं, जिनमें मांगणियार एवं लंगा प्रमुख हैं. इनमें यह प्रथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है. पहले ये अपने जजमानों के शुभ अवसरों पर गाते-बजाते थे. लेकिन धीरे-धीरे इनकी कला को देश-विदेश में सम्मान मिलना शुरू हुआ तो बाहर भी जाने लगे. इन गायकों के पास अनेक तरह के मधुर वाद्ययंत्र हैं, जिनमें खङ़ताल, कमायचा, बाजा, मोरचंग, ढोलक आदि मुख्य हैं.
डोरो, धूमलङी, बायरियो, मूमल, बरसालो आदि कुछ यहां के प्रसिद्ध लोकगीत हैं. हालांकि, नई युवा पीढ़ी अब लोकसंगीत को भुलाकर आधुनिक संगीत की दीवानी हुई जा रही है. वर्तमान में लोक-संगीतकारों को विदेश में बङ़ा मान-सम्मान मिल रहा है. देश-विदेश में होने वाले महत्वपूर्ण कार्यक्रमों एवं उत्सवों में लंगा-मांगणियार मुख्य आकर्षण होते हैं. मामे खां इसी बिरादरी के जाने-पहचाने नाम हैं. जैसलमेर के एक छोटे से गांव सत्तो के रहने वाले मामे खां स्व. उस्ताद राना खां के बेटे हैं. मामे खां ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कई बार अपनी आवाज का जादू बिखेरा है. उनका पहला संगीत समारोह 1999 में न्यूयार्क में हुआ था. तब से लेकर अब तक उन्होंने भारत के अलावा यूरोप, अफ्रीका और खाड़ी देशों में मंच पर अपने हुनर का जलवा दिखाया. कई हिंदी फिल्मों में गाकर प्रश्ंसा बटोर चुके मामे खां आज राजस्थानी लोकगीतों की दुनिया का ऐसा नाम बन गये हैं जिसे सुनने और पसंद करनेवाले भारत और बाहरी मुल्कों में भी समान रूप से हैं.
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