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बुलंद दरवाजा और मीनार है पहचान

जमशेदपुर: जाकिरनगर ग्रीनवैली रोड नंबर 17 में 5760 वर्ग फीट में बनी मसजिद -ए- आसमा में नमाज पढ़ने वालों की हर सुविधा का ख्याल रखा जाता है. इसकी संग बुनियाद वर्ष 2000 में हाजी अब्दुल हकीम ने रखी थी. मसजिद के लिए चौधरी कपड़ावाले की अहलिया ने अपने बच्चों के साथ सलाह-मशविरा के बाद जमीन […]

जमशेदपुर: जाकिरनगर ग्रीनवैली रोड नंबर 17 में 5760 वर्ग फीट में बनी मसजिद -ए- आसमा में नमाज पढ़ने वालों की हर सुविधा का ख्याल रखा जाता है. इसकी संग बुनियाद वर्ष 2000 में हाजी अब्दुल हकीम ने रखी थी. मसजिद के लिए चौधरी कपड़ावाले की अहलिया ने अपने बच्चों के साथ सलाह-मशविरा के बाद जमीन दान की थी. वर्तमान में यह मसजिद दो मंजिला है. मसजिद का बुलंद दरवाजा और मीनार इसकी खास पहचान है. मसजिद की देखभाल दस मतवल्लियों द्वारा की जाती है. मसजिद कमेटी द्वारा एक मकतब चलाया जाता है, जिसमें 60 से अधिक बच्चे तालिम हासिल कर रहे हैं.

मसजिद का निर्माण कार्य प्रगति पर: मसजिद- ए- आसमा के जिम्मेदार शेख इजाज हुसैन ने बताया कि पुराने वजू खाना को तोड़ कर नया वजू खाना बनाया जा रहा है. बुलंद दरवाजे के सामने बड़ा सा प्लेटफार्म बनाया जायेगा. इसके अलावा सामने खाली पड़ी जमीन पर घास लगायी जायेगी. दीवार के चारों तरफ दो-दो फीट जगह छोड़कर पौधे लगाये जायेंगे. गेट के बगल में वजू खाना के पास प्लास्टिक टिन से स्लोपिंग शेड डाली जायेगी, जो दूर से मसजिद की खूबसूरती बढ़ायेगी. मसजिद की बिल्डिंग में जहां खाली स्थान दिखायी पड़ रहा है, वहां कलरफुल ग्लास लगाये जायेंगे. इसके बाद पूरी मसजिद की बिल्डिंग में वॉल पुट्टी कर रंग -रोगन किया जायेगा.

रमजान में खुद को बेहतर कार्य से जोड़ें

मौलाना मोहम्मद आफताब आलम ने कहा कि अल्लाह ने कुरान में दो लफ्ज फरमाये हैं. पहला संयम और दूसरा रमजान. जब इनसान रोजा रखता है तो अल्लाह उसके पिछले सारे गुनाह माफ कर देते हैं. अल्लाह रसूल (स) ने फरमाया है कि रोजा की हालत में जिसने झूठ नहीं बोला तो ऐसी कोई कैद नहीं जहां उसे रखा जा सके. रमजान में एक नेकी के बदले 70 गुणा अधिक मिलता है. रमजान के माह में एक खत्म कुरान का सुनना नमाज की हालत में और पूरे महीने तरावीह का पढ़ना सुन्नत है. रमजान के दौरान खुद को बेहतर कार्यो से जोड़ कर रखने की जरूरत है. इस महीने में गैर जरूरी कार्यो को छोड़कर ईमान के कार्य करने चाहिए. रोजा रखने का अर्थ केवल भूखे रहना नहीं है, बल्कि इसकी उपयोगिता को समझने की जरूरत है. किस तरह लाखों-करोड़ों लोगों को एक वक्त का भी भोजन नहीं मिलता है. ऐसे लोगों को भी अपनी दुआओं में शामिल करना चाहिए.

-इमाम, मसजिद ए आसमा

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