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कोल्हान के गांवों में रोजो संक्रांति पर्व 14 को

-नये परिधान में झूला झूलती हैं युवतियां, समूह में गाती हैं गीत – परिवार के लोग सामूहिक रूप से पकवान का आनंद उठाते हैंसंवाददाता, जमशेदपुरकोल्हान के आदिवासी गांवों में 14 जून को रोजो पर्व मनाया जायेगा. इसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही है. इस दिन परिवार के लोग सामूहिक रूप से पारंपरिक पकवान जील पीठा […]

-नये परिधान में झूला झूलती हैं युवतियां, समूह में गाती हैं गीत – परिवार के लोग सामूहिक रूप से पकवान का आनंद उठाते हैंसंवाददाता, जमशेदपुरकोल्हान के आदिवासी गांवों में 14 जून को रोजो पर्व मनाया जायेगा. इसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही है. इस दिन परिवार के लोग सामूहिक रूप से पारंपरिक पकवान जील पीठा व लेटो का आनंद लेते हैं. यह एक-दूसरे के प्रति श्रद्धा व प्रेम भाव प्रकट करने का पर्व है. लोग अपने सगे-संबंधियों को घर बुलाकर पकवान खिलाते हैं. इसके बाद सामूहिक रूप से लोकगीत-संगीत व नृत्य का आनंद उठाते हैं. खास कर युवतियां नये परिधान में झूला झूलती हैं. वहीं इस दौरान गीत गाकर पर्व का आनंद उठाती हैं. इसलिए इस पर्व को झूला झूलना त्योहार (डिलवांग पारब) के रुप में भी जाना जाता है. इसकी विशेषता है कि परिवार के हर सदस्य के लिए नये वस्त्र लिये जाते हैं. इस दिन घर का मुखिया अपने पूर्वजों की पूजा-अर्चना करता है. उन्हें तांग हांडी अर्पित करता है. बारिश नहीं होने से फीका पड़ा रोजो पर्व आदिवासी जनजीवन प्रकृति पर निर्भर है. उनके पर्व-त्योहार कृषि चक्र पर आधारित हैं. इस वर्ष समय पर बारिश नहीं होने के कारण कई गांवों में रोजो पर्व फीका पड़ गया है. किसानों के चेहरे पर पर्व को लेकर खुशी नहीं है. पहले रोजो पर्व तक धान बुनाई का कार्य करीब-करीब खत्म हो जाता था. मौसम की बेरुखी की वजह से अभी तक धान की बुनाई खत्म नहीं हो सका है. ऐसे में उन्हें चिंता सता रही है कि बारिश नहीं होने पर उन्हें फसल कहां से मिलेगा.

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