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आंदोलनकारी जवाहर लाल महतो नहीं रहे

जमशेदपुर: झारखंड आंदोलनकारी जवाहर लाल महतो (53) का रविवार की रात इलाज के दौरान टीएमएच में निधन हो गया. सोमवार को गोविंदपुर के लुआबासा पंचायत के धान चटानी स्थित पैतृक गांव में उनका अंतिम संस्कार किया गया. शनिवार को अचानक ठंड की शिकायत पर परिजनों ने उन्हें गंगा मेमोरियल अस्पताल में भरती कराया. स्थिति गंभीर […]

जमशेदपुर: झारखंड आंदोलनकारी जवाहर लाल महतो (53) का रविवार की रात इलाज के दौरान टीएमएच में निधन हो गया. सोमवार को गोविंदपुर के लुआबासा पंचायत के धान चटानी स्थित पैतृक गांव में उनका अंतिम संस्कार किया गया. शनिवार को अचानक ठंड की शिकायत पर परिजनों ने उन्हें गंगा मेमोरियल अस्पताल में भरती कराया.

स्थिति गंभीर होने पर रविवार की सुबह टीएमएच ले गये लेकिन रात करीब 11 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. झारखंड मूलवासी अधिकार मंच के संयोजक हरमोहन महतो ने बताया कि जवाहर लाल महतो 1987 में झारखंड मुक्ति मोरचा में शामिल हुए थे और अंत तक झामुमो से ही जुड़े रहे. झारखंड आंदोलन के दौरान वे घाघीडीह जेल भी गये थे. वे अपने पीछे पत्नी लक्ष्मी रानी महतो, दो पुत्र कृष्णोंदु महतो और त्रिपेंदु महतो समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं. वे धानचटानी स्थित वीणापानी हाई स्कूल के संस्थापक सदस्य भी थे. जीवन के अंतिम समय तक जल, जंगल, जमीन व विस्थापन के खिलाफ आवाज उठाते रहे.

सरकार को आंदोलनकारियों की चिंता नहीं : सूर्यसिंह बेसरा

आंदोलनकारी सूर्यसिंह बेसरा ने कहा कि राज्य सरकार आंदोलनकारियों के मसले पर घोषणाएं तो बहुत करती है, लेकिन अमल नहीं हो रहा है. एक के बाद एक आंदोलनकारी का इलाज के अभाव में असमय काल कवलित हो रहे हैं. पर सरकार मौन है. श्री बेसरा ने कहा कि जिन आंदोलनकारियों की पहचान हो चुकी है. उनको सम्मान, पहचान, पेंशन समेत अन्य सुविधा देने में सरकार पीछे क्यों है. कहा कि 31 मार्च को रांची जनजातीय विभाग में झारखंड आंदोलनकारी केंद्रीय मोर्चा की बैठक होगी. उसमें जवाहरलाल महतो के निधन को भी उठाया जायेगा. आंदोलनकारियों के मसले पर सरकार को घेरा जायेगा.

आंदोलनकारियों का हो रहा अपमान: हरमोहन

हरमोहन महतो ने कहा कि राज्य सरकार आंदोलनकारियों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं करा रही है और न ही उनकी सुधि ले रही है. जिन आंदोलनकारियों को चिह्न्ति किया जा चुका है, उनको स्वास्थ्य समेत अन्य सुविधाएं मिलनी चाहिए. अलग राज्य के लिए आंदोलन करने वाले का इलाज के अभाव में मौत होना, आंदोलनकारियों का अपमान है.

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