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लक्ष्मी का बुलंद हौसला समाज को देगा नयी दिशा ( महिला दिवस पर स्टोरी)

रीमा डे @ जमशेदपुरपढ़ाई की इच्छा उनके मन में हमेशा से रही, लेकिन परिवार-समाज की बंदिशों के बीच इसे पूरा नहीं कर पायीं. देखते-देखते उम्र पहाड़ सा हो गया, लेकिन पढ़ाई को लेकर मन बच्चा ही रहा. यही कारण है कि जब उन्हें 50 की उम्र में पढ़ने का मौका मिला तो बच्चों सी ललक […]

रीमा डे @ जमशेदपुरपढ़ाई की इच्छा उनके मन में हमेशा से रही, लेकिन परिवार-समाज की बंदिशों के बीच इसे पूरा नहीं कर पायीं. देखते-देखते उम्र पहाड़ सा हो गया, लेकिन पढ़ाई को लेकर मन बच्चा ही रहा. यही कारण है कि जब उन्हें 50 की उम्र में पढ़ने का मौका मिला तो बच्चों सी ललक के साथ क्लास की ओर दौड़ पड़ीं. यह महिला कोई और नहीं काशीडीह की रहने वाली लक्ष्मी देवी हैं. इनका हौसला काबिल-ए-तारीफ है. लक्ष्मी देवी जब क्लास में जोर-जोर से पढ़ती हैं तो उनके चेहरे से दो चीजें झलकती हैं. एक तो उम्र और दूसरी उनकी खुशी. लक्ष्मी बताती हैं कि उन्हें बचपन से पढ़ने का शौक था. लेकिन, स्कूल जाने की इजाजत नहीं थी. मूलत: बिहार की रहने वाली लक्ष्मी की शादी 17 साल में ही हो गयी थी. ससुराल में भी पढ़ने जैसा माहौल नहीं मिला. मायके से आने वाले खत को जब वे दूसरों से पढ़वाती थीं तो मन में कसक उठती थी. यह कसक उन्होंने अपने बेटों पर निकाली और उन्हें अच्छी तालीम दी. दोनों आज एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हैं. लक्ष्मी बताती हैं कि उम्र के इस मोड़ पर वह परिवार की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुकी हैं. उन्हें लगता है कि अब वह अपने पढ़ने की ख्वाहिश पूरी कर सकती हैं. परिवार भी इसके लिए प्रेरित किया है. अब वह काशीडीह स्थित कम्यूनिटी हॉल में चलने वाले प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में रोजाना पढ़ने आती हैं. वह कहती हैं कि उनकी इस कोशिश पर कुछ लोग तंज करते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग सराहते हैं. शाम में वह अपने पोता-पोती के साथ पढ़ती हैं. लक्ष्मी को अब उस दिन का इंतजार जब बिना किसी के सहारे के वह अपना नाम खुद से लिखेगीं. धार्मिक किताबें और अखबार पढ़ सकेंगीं.

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