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पदक उठानेवाले हाथों में चाय की केतली
जमशेदपुर: रख हौसला, वो मंजर भी आयेगा प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा थक कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मजा भी आयेगा उक्त पंक्तियां आदित्यपुर के कुलुपडांगा बस्ती निवासी दिलीप पर सटीक बैठता है, जो अपने सपने को पूरा करने के लिए बिष्टुपुर माइकल जॉन के […]
जमशेदपुर: रख हौसला, वो मंजर भी आयेगा
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा
थक कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर
मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मजा भी आयेगा
उक्त पंक्तियां आदित्यपुर के कुलुपडांगा बस्ती निवासी दिलीप पर सटीक बैठता है, जो अपने सपने को पूरा करने के लिए बिष्टुपुर माइकल जॉन के सामने अपन पिता के साथ चाय का ठेला लगाता है. तीरंदाजी में कमाल करने वाले अपने हाथों में चाय की केतली लेकर ग्राहकों को मुस्कुराते हुए चाय पिलाता है. इन्हीं हाथों से उसने तीरंदाजी में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी है. तीरंदाजी में राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण और रजत पदक विजेता 22 वर्षीय दिलीप का सपना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने का है. उसके घर की आर्थिक तंगी, उसके रास्ते का सबसे बड़ा कांटा है, लेकिन उसने और उसका परिवार ने हार नहीं मानी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए उसे कंपाउंड बो (यौगिक धनुष) की जरूरत है, इसकी कीमत दो लाख रुपये हैं. दिलीप और उसके पिता यह राशि जुटाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. उनका कहना है कि हम अपने स्तर पर मेहनत कर रहे हैं, आगे ईश्वर की मरजी. दिलीप महतो झारखंड का तीरंदाजी खिलाड़ी है. चाय बेचना भले ही उसकी मजबूरी हो, लेकिन इसे उसने अपनी कमजोरी नहीं बनने दी.
तीरंदाजी में मिला सम्मान
इंदौर सीनियर नेशनल चैंपियन (2013)- स्वर्ण पदक
जूनियर नेशनल चैंपियन, असम (2013)- रजक पदक
सीनियर नेशनल चैंपियन, दिल्ली, (2014)- प्रतिभागी
ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र (2014)- प्रतिभागी
मेडल मिलना मेरे लिए दीपावली, दुर्गापूजा : दिलीप
दिलीप ने बताया कि दीपावली और दुर्गापूजा में लोग नये कपड़े पहनते हैं और खुशियां बांटते हैं. वहीं उसके लिए उत्सव का असली आनंद तब होता है, जब उसके हाथों में विजयी मेडल होता है. एशियन गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता रजत चौहान को वह अपना आदर्श मानता है. दिलीप का कहना है कि जिस दिन वह वहां तक पहुंचेगा, अपने तरह गरीब परिवार के प्रतिभावान बच्चों को आगे बढ़ाने में योगदान देगा.
पिता ने बढ़ाया हौसला
आदित्यपुर कुलुपडंगा बस्ती से हर दिन ठेला में सामान लेकर दिलीप व उसके पिता बिष्टुपुर आते हैं. परिवार में एक बहन, मां और पिता हैं. बहन वीमेंस कॉलेज में पढ़ रही है. दिलीप सिल्ली कॉलेज में बीए का छात्र है. पढ़ाई के बाद बिरसामुंडा अर्चरी सेंटर (सिल्ली) के कैंपस में तीरंदाजी का अभ्यास करता है. दिलीप ने बताया कि पहले वह चाय बेचता था. उसके पिता राज मिस्त्री का काम करते थे, लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में बढ़ती रुचि को देख पिता ने चाय दुकान संभाल ली. मुङो खेलकूद और पढ़ाई में देने को कहा. पिता की आमदनी (छह हजार रुपये) से काफी मुश्किल से घर चलता है, इसलिए दिलीप छुट्टी के दौरान पापा के साथ चाय बेचता है.
सेंटर से मिली मदद : दिलीप बताते हैं कि उनकी सफलता में सेंटर और उनके कोच प्रकाश राम का योगदान है. सेंटर से उसे धनुष दिया गया, इसके बदौलत वह नेशनल लेवल पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में सफल हुआ.
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