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संताली भाषा का अस्तित्व बचाना जरूरी : दिगंबर हांसदा – फोटो डीएस 2,3,4

संवाददाता, जमशेदपुरकरनडीह स्थित दिशोम जाहेरथान प्रांगण में सोमवार को संताली परसी माहा (संताली भाषा दिवस) मनाया गया. समारोह का शुभारंभ जाहेरथान प्रांगण में बने ओल गुरु पंडित रघुनाथ मुर्मू की मूर्ति पर माल्यार्पण कर किया गया. मौके पर एलबीएसएम के पूर्व प्राचार्य प्रो. दिगंबर हांसदा ने कहा कि 22 दिसंबर 2003 को संताली भाषा को […]

संवाददाता, जमशेदपुरकरनडीह स्थित दिशोम जाहेरथान प्रांगण में सोमवार को संताली परसी माहा (संताली भाषा दिवस) मनाया गया. समारोह का शुभारंभ जाहेरथान प्रांगण में बने ओल गुरु पंडित रघुनाथ मुर्मू की मूर्ति पर माल्यार्पण कर किया गया. मौके पर एलबीएसएम के पूर्व प्राचार्य प्रो. दिगंबर हांसदा ने कहा कि 22 दिसंबर 2003 को संताली भाषा को संवैधानिक मान्यता मिली. समाज की बुद्धिजीवियों व आम नागरिकों के अथक प्रयास से 2003 में इस भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि संताली भाषा का प्रयोग दिनोदिन बढ़ता जा रहा है. अब यूपीएससी, यूजीसी एवं एसएससी जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी इस भाषा को समाहित किया गया है. इस भाषा को यूपीएससी में भी मान्यता मिल गयी है. संताली भाषा को जीवित रखने के लिए सभी को सामूहिक प्रयास करना होगा. जाहेरथान कमेटी के सीआर मांझी ने कहा कि संताली भाषा व लिपि के विकास के लिए समाज को चिंतन करना चाहिए. मौके पर माझी युवराज टुडू, प्रो. रामो टुडू, बाबूराम सोरेन, हेमंत, रवींद्र मुर्मू, अनपा हेम्ब्रम, बुढ़न, प्रो. लखाई बास्के, समाज के बुद्धिजीवी एवं काफी छात्र-छात्राएं शामिल हुए.

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