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लद्दाख में खानाबदोश जीवन जी रहे आदिवासी : सोपारी (फोटो है नाम से)

-भेड़-बकरियों पर आश्रित है पांच सौ आदिवासी परिवारों का जीवनलाइफ रिपोर्टर@जमशेदपुर लद्दाख में माइनस 35-40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में कठिन परिस्थितयों के बीच करीब 500 आदिवासी परिवार खानाबदोश का जीवन जी रहे हैं. ऐसे परिवारों के उत्थान के लिए भारत सरकार को काम करने की जरूरत है. उक्त बातें नार्थ आर्ट एंड कल्चरल सोसाइटी […]

-भेड़-बकरियों पर आश्रित है पांच सौ आदिवासी परिवारों का जीवनलाइफ रिपोर्टर@जमशेदपुर लद्दाख में माइनस 35-40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में कठिन परिस्थितयों के बीच करीब 500 आदिवासी परिवार खानाबदोश का जीवन जी रहे हैं. ऐसे परिवारों के उत्थान के लिए भारत सरकार को काम करने की जरूरत है. उक्त बातें नार्थ आर्ट एंड कल्चरल सोसाइटी लेह लद्दाख से निदेशक सोनम सोपारी ने कहीं. जमशेदपुर दौरे पर आये श्री सोपारी पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. सोनम सोपारी ने कहा कि लद्दाख के चंगपा क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी परिवार भेड़-बकरी पालते हैं और उसी पर उनका जीवन आश्रित है. लेकिन, उन्हें ऐसे हालात से भी गुजरना पड़ता है जब क्षेत्र में पेड़ पौधे नहीं मिलते और उनके जानवर भूखों मरने लगते हैं. श्री सोपारी ने बताया कि ये आदिवासी परिवार ‘बारटर सिस्टम’ को अपनाते हैं तथा लेह जाकर अपने जानवर को देकर बदले में अनाज लेकर आते हंै. वहां सरकार ने प्राथमिक स्कूल खोले हैं, लेकिन यह काफी नहीं है. अशिक्षा के कारण वहां के लड़के-लड़कियों को रोजी-रोजगार नहीं मिल पा रहा है.मेक इन लद्दाख की जरूरत : श्री सोपारी ने बताया कि लद्दाख में ही पसमीना भेड़ होते हैं. उससे ही उत्कृष्ट पसमीना शॉल तैयार किये जाते हैं. वहां से हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के लोग खरीद कर ले जाते हैं और उच्च तकनीक के जरिये उसको शॉल बनाकर लाखों कमाते हैं. वास्तव में सरकार को ‘मेक इन लद्दाख’ पर काम करने की जरूरत है.

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