जमशेदपुर: एमजीएम अस्पताल के पुराने पोस्टमार्टम हाउस से मानव हड्डी और सड़ा-गला अंग मिलने के बाद अब विभिन्न केस से जुड़े कागजात और बिसरा (मानव अंग अवशेष) बरामद किया गया है. बताया जाता है कि करीब दो दर्जन शीशे के बोयाम में बिसरा रखा हुआ मिला है, जिन्हें जांच के लिए रांची फोरेंसिक विभाग में भेजा जाना था. संभव है कि यहां रखे-रखे बिसरा नष्ट हो गये होंगे.
इन कागजात व बिसरा के साथ विभिन्न केसों से जुड़े राज भी दफन हो गये. ज्ञात हो कि 40 वर्ष पहले बना पोस्टमार्टम हाउस को तोड़ा जा रहा है. यहां मेडिकल वार्ड का निर्माण होना है. पोस्टमार्टम हाउस से मिले कागजात में कई शव के संबंध में जानकारी होगी. बताया जाता है कि पोस्टमार्टम रूम को शिफ्टिंग के दौरान ये कागजात व बिसरा को वहीं छोड़ दिया गया. जिससे कई केस का राज यहीं दफन होकर रह गया. अस्पताल के कर्मचारी सभी कागजात व शीशे के बोयाम में रखे बिसरा को नये पोस्टमार्टम हाउस में भेज रहे है.
शव रखने की जगह नहीं : अज्ञात व्यक्ति की मौत के बाद कम से कम 72 घंटा तक शव रखने का प्रावधान है. एमजीएम में शव फिलहाल पुराने पोस्टमार्टम हाउस में रखा तीन डीप फ्रिजर में रखा जाता था. अब पुराने पोस्टमार्टम हाउस को तोड़ा जा रहा है. इसके कारण अस्पताल में अब अज्ञात शव रखने की जगह नहीं है.
मौत का कारण अज्ञात होने पर रखा जाता है बिसरा
डॉक्टर बताते हैं कि बिसरा उन्हीं लोगों का जांच के लिए सुरक्षित रखा जाता है, जिनकी मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाता है. शराब पीने से मरने वाले व नशे में हुई दुर्घटना में मरने वालों का भी बिसरा रखा जाता है. फोरेंसिक लैब से रिपोर्ट आने में तीन से चार महीने लग जाते हैं. ऐसे में मृतक के परिजन को मौत का स्पष्ट कारण नहीं मिल पाता है. अधिकारी बताते हैं कि डॉक्टर खुद को बचाने के लिए और जांच से बचने के लिए शरीर के पांच अंग निकालकर बिसरा सुरक्षित रख लेते हैं. कई बार स्वाभाविक मौत के मामले में भी डॉक्टर बिसरा रख देते हैं.
क्या है बिसरा
पोस्टमॉर्टम के बाद भी जब मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाता है, तो डॉक्टर शरीर से लीवर, किडनी, आंत, पैंक्रि याज और गॉल ब्लाडर जैसे पांच अंगों को एक जार में प्रिजर्व कर पुलिस को सौंप देते हैं. बिसरे की जांच फोरेंसिक लैब में की जाती है. जांच के बाद सच्चाई का पता चलता है.
पुराना पोस्टमार्टम हाउस टूटने के बाद अब शव को मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम हाउस में रखा जायेगा.
डॉ आरवाई चौधरी, अधीक्षक, एमजीएम.