जमशेदपुर: ब्रह्नानंद नारायण मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल में 15 वर्षीया किशोरी ज्योत्स्ना की सफल कार्डियक सजर्री की गयी. वह पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस (पीडीए) से पीड़ित थी. 10 लाख में किसी एक बच्चे में यह समस्या पायी जाती है.
पीडीए हृदय की जन्म के पश्चात बच्चे के शरीर में होने वाली एक स्वाभाविक क्रिया के नहीं हो पाने से उत्पन्न होती है. गर्भस्थ भ्रूण के विकास के क्रम में एक सामान्य रक्त नलिका डक्टस आर्टेरियोसस उसके हृदय को रक्त की आपूर्ति करने वाली दो प्रमुख धमनियों से जुड़ी होती है. बच्चे जन्म के तुरंत बाद उक्त नलिका (डक्टस आर्टेरियोसस) स्वत: ही बंद हो जाती है तथा शिशु का हृदय सामान्य रूप से कार्य आरंभ कर देता है. लेकिन किसी-किसी बच्चे में यह नलिका बंद नहीं हो पाती. इसे ही पीडीए कहा जाता है.
शुक्रवार को साकची स्थित होटल दयाल में आयोजित प्रेस वार्ता में मौजूद पेडिएट्रिक कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ पंकज कुमार गुप्ता व डॉ अमिताभ चट्टोपाध्याय ने उक्त जानकारी दी. उन्होंने बताया कि पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस बहुत ही दुर्लभ बीमारी है, जिसका पता लगाना भी काफी कठिन होता है. इसके शुरुआती लक्षण बहुत असामान्य होते हैं, लेकिन जन्म के पहले साल में सांस लेने में दिक्कत और वजन नहीं बढ़ने की समस्या आती है.
हाइपोक्सिया जैसी सांस फूलने की समस्या से पीड़ित और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में पीडीए होने की अधिक आशंका होती है. समय पर इलाज नहीं होने से बच्चे का हार्ट फेल हो सकता है. उन्होंने कहा कि यह ऑपरेशन काफी जटिल और अपने तरह का अनूठा मामला था. इसके लिए उन्होंने जो प्रक्रिया अपनायी, वह झारखंड ही नहीं, पूरे पूर्वी भारत में पहली बार अपनायी गयी है. इस दौरान डॉ परवेज आलम सहित अन्य लोग उपस्थित थे. बीमारी के लक्षण:चलने फिरने में कठिनाई,सीढ़ी चढ़ने में कठिनाई,जल्दी जल्दी खांसी व बुखार होना,वजन नहीं बढ़ना
कैसे हुआ ऑपरेशन
गालूडीह निवासी सुबोध महतो की बच्ची ज्योत्स्ना का उपचार बेहद अनूठी प्रक्रिया से किया गया. उसकी गरदन में ग्रीवा शिरा के जरिये पीडीए डिवाइस क्लोजर विधि से उसका इलाज किया गया. इस प्रक्रिया के तहत तार से बने एक उपकरण की मदद से नलिका (डक्टस आर्टेरियोसस) को बंद किया जाता है. इस उपकरण को पैर की नस के जरिये डाला जाता है. ज्योत्स्ना के मामले में यह संभव नहीं था, क्योंकि उसके पैरों की नसें भी ठीक नहीं थीं. इसके बाद उसके गले की नसों के जरिये यह प्रक्रिया पूरी की गयी. इसका दूसरा विकल्प था ऑपरेशन, पहली एवं आसान प्रक्रिया से ही उसकी नलिका को बंद कर दिया गया.
सोते समय छाती से आती थी आवाज
ज्योत्स्ना के माता पिता ने बताया कि वह जब सोती थी तो उसकी छाती से आवाज आती थी. शुरू में गालूडीह में डॉक्टर को दिखाया गया, लेकिन काफी दिनों तक दवा लेने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ तो उसे बेंगलुरु जाने को कहा. उसके बाद उसे ब्रrानंद अस्पताल लाया गया. उसके लाल कार्ड धारी होने के कारण उसे कोई परेशानी नहीं हुई.