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सरायकेला वन प्रमंडल में उत्पात मचाते घूम रहे 70 हाथी, कागजों पर ही चल रहा एलिफेंट कॉरिडोर
शचिंद्र कुमार दाश, खरसावां : धान की कटाई शुरू होते ही सरायकेला वन प्रमंडल के खरसावां, चांडिल व सरायकेला के वन क्षेत्रों में बसे गांवों में जंगली हाथियों ने दस्तक दे दी है. सरायकेला वन प्रमंडल के तीनों वन क्षेत्र जंगली हाथियों के आतंक के साये में हैं. सरायकेला वन प्रमंडल में पांच अलग अलग […]
शचिंद्र कुमार दाश, खरसावां : धान की कटाई शुरू होते ही सरायकेला वन प्रमंडल के खरसावां, चांडिल व सरायकेला के वन क्षेत्रों में बसे गांवों में जंगली हाथियों ने दस्तक दे दी है. सरायकेला वन प्रमंडल के तीनों वन क्षेत्र जंगली हाथियों के आतंक के साये में हैं. सरायकेला वन प्रमंडल में पांच अलग अलग झुंडों में शामिल करीब 65-70 जंगली हाथी उत्पात मचाते घूम रहे हैं.
उनका सर्वाधिक आतंक फिलहाल खरसावां वन क्षेत्र में दिख रहा है, जो अलग-अलग झुंडों में बंट कर ग्रामीणों के खेत-खिलहानों व गांवों में पहुंच कर धान की फसल को खाने के साथ ही पैरों से रौंद कर बर्बाद भी कर दे रहे हैं. चालू वित्त वर्ष में जंगली हाथी दो सौ एकड़ से अधिक खेतों में लगी फसल को बर्बाद कर चुके हैं, जबकि 40 से अधिक घरों को भी आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त भी कर चुके हैं. खरसावां में जहां दो झुंडों में 30-35 की संख्या में जंगली हाथी उत्पात मचा रहे हैं.
वहीं सरायकेला वन क्षेत्र में करीब एक दर्जन व चांडिल वन क्षेत्र में डेढ़ दर्जन के करीब जंगली हाथी उत्पात मचाते घूम रहें हैं. ये जंगली हाथी इन दिनों ग्रामीणों के साथ साथ वन विभाग के लिए भी परेशानी का सबब बने हुए हैं.
फाइलों में ही रह गयी एलिफेंट कॉरिडोर की योजना :लगातार कटाई से जंगल सिमट तो रहे ही हैं, उनका घनत्व भी घटता जा रहा है. चांडिल से लेकर ओड़िशा बॉर्डर तक हाथी कॉरिडोर के मध्य पैदा हुए अवरोध के कारण ही हाथियों का दूसरे क्षेत्रों में उत्पात दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. क्षेत्र में एलिफेंट कॉरिडोर विकसित करने की योजना फाइलों में ही रह गयी है.
जंगली हाथी वनों में ही रहें, इसके लिए वन विभाग भी प्रयासरत है. विभाग की ओर से केंद्र सरकार की गज परियोजना के तहत वन क्षेत्रों में चेक डैम, तालाब आदि बनाकर जलस्रोतों की व्यवस्था की गयी है. हाथियों को जंगलों की ओर खदेड़ने के लिए भी किसानों में मशाल, पटाखे, टॉर्च आदि वितरित किये गये हैं.
15 वर्षों में 106 लोग बने हाथियों के शिकार : सरायकेला वन प्रमंडल में हर साल आम लोगों के साथ-साथ पालतू पशु भी हाथियों के शिकार बन रहे हैं. पिछले 15 सालों में जंगली हाथियों ने 107 लोगों की जान ले ली, जबकि हाथियों के कारण 140 लोग घायल हुए. वित्तीय वर्ष 2004-05 में सर्वाधिक 28 तथा 2011-12 में 12 लोग हाथियों के शिकार हुए.
वर्ष 2017-18 में भी जंगली हाथियों ने तीन लोगों की कुचल कर जान ले ली. हाथियों द्वार मारे गये लोगों के आश्रितों के साथ-साथ घायल लोगों को भी वन विभाग की ओर से मुआवजा दिया गया है. हाथियों द्वारा खेत, खिलहान व घर में रखे गये अनाज को बर्बाद करने व पालतू जानवरों की मौत पर भी मुआवजे का भुगतान किया गया है.
हाथियों का यौन अनुपात 1:8 है
जानकारों का मानना है कि हाथियों का यौन अनुपात सही नहीं होने के कारण भी हाथी उत्पाती हो जाते हैं. सरायकेला वन प्रमंडल में हाथियों का यौन अनुपात कुल मिला कर ठीक-ठाक है, जिससे हाथियों की संख्या में भी कमी नहीं आयी है. विभागीय अधिकारी बताते हैं कि यहां एक हाथी पर करीब दस हथिनियां हैं, जबकि देश में सर्वाधिक हाथी वाले राज्य कर्नाटक में एक हाथी पर 20 से 25 हथिनियां, रिजाजी सेंक्चुअरी में हाथियों का अनुपात 1:1.3, कार्बेट नेशनल पार्क में 1:1.2, नीलगिरि की पहाड़ियों में हाथियों का अनुपात 1:5 है.
15 वर्षों में 40 हाथियों की हो चुकी है मौत
सरायकेला वन प्रमंडल में हाथियों की मौत से वन विभाग सकते में है. पिछले 15 वर्षों में अलग-अलग कारणों से सरायकेला वन प्रमंडल में 40 हाथियों की मौत हो चुकी है. सरायकेला वन प्रमंडल के तीन वन क्षेत्रों, खरसावां, सरायकेला व चांडिल इन दिनों जंगली हाथियों से प्रभावित हैं. वर्ष 2004-05 से 2014-15 के बीच ही 37 हाथियों की मौत हो चुकी थी.
वर्ष 2015-16 व 16-17 में जिले में एक भी हाथी की मौत नहीं हुई. करीब ढाई साल के बाद नवंबर 2017 में खरसावां वन क्षेत्र के सिदमाकुदर में एक व सरायकेला वन क्षेत्र के बलदेवपुर (पानारोल) में एक हथिनी की मौत हुई. इस वर्ष (2018 में) सरायकेला वन क्षेत्र के गिद्दीबेड़ा गांव के पास एक हथिनी की मौत हो गयी थी. इसके अलावा कांड्रा के जंगल में भी एक हाथी मर गया था.
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