जमशेदपुर : नगर निगम या इंडस्ट्रियल टाउन का मामला 1972 से चल रहा है, लेकिन जमशेदपुर का भविष्य तय नहीं हो सका. जमशेदपुर की जनता के साथ राजनीतिक छलावा होता आया है, जिसका नतीजा है कि यह अनियमितताओं का शहर बनकर रह गया है. मंत्री सह जमशेदपुर पश्चिम के विधायक सरयू राय ने शनिवार को अपने आवास पर प्रभात खबर से बातचीत में यह बात कही. उन्होंने कहा कि समाजसेवी जवाहर लाल शर्मा ने जो नया केस दायर किया है, उससे लगता है कि इस बार जरूर कोई फैसला होगा.
1988 से यह मामला लटका है. जमशेदपुर में नगर निगम बनाना है या नहीं, इस पर फैसला ले लिया जायेगा. नगर निगम या इंडस्ट्रियल टाउन को लेकर विवाद होता रहा है. इसके बारे में वैधानिक राय अब आ सकती है. खाली जमीन को भी सब लीज बना देने का गलत अधिकार दे दिया : टाटा स्टील की ओर से मुकदमा यह कहकर वापस लिया गया था कि कोर्ट के बाहर मामला सुलझा लिया जायेगा.
इसके बाद म्यूनिसिपल एक्ट 7 (इ) के प्रावधान को सरकार ने लागू कर दिया. कई ऐसे क्लॉज जोड़े गये, जिसको राष्ट्रपति से स्वीकृति भी नहीं मिल पायी है. उन्होंने कहा कि जब बिहार सरकार ने 1985 में लीज समझौता किया था, तो कई बिंदुओं पर उस वक्त की सरकारों ने लापरवाही बरती थी. टाटा स्टील एक कंपनी है, मुनाफा बढ़ाना और व्यवसाय करना उनका काम है. नागरिक सुविधा जो 1972 से पूर्व थी, उसको बदला गया और 1985 में लीज समझौता हुआ.
इसके बाद सबलीज में कंडिका 8 को डाला गया, जो असंवैधानिक है. खाली जमीन को भी सबलीज बना देने का अधिकार दे दिया गया था, जो गलत था. इसके बाद लीज समझौता 1995 में खत्म हुआ, तो टाटा स्टील के तत्कालीन एमडी रहते हुए डॉ जेजे ईरानी ने यह आवेदन दिया था कि लीज का समझौता कर लिया जाये और जो बस्तियां बस गयी हैं, उसे लीज से मुक्त कर दिया जाये. 2005 में भी जब लीज समझौता हुआ था, तब सरकार में ही शामिल लोगों ने बस्तियों को लीज मुक्त कराया कि मालिकाना हक दिया जायेगा, जो आज तक नहीं मिल पाया.