सलाउद्दीन
हजारीबाग : संत कोलंबा कॉलेज हजारीबाग को वापस लेने का अल्टीमेटम डायसिस ऑफ सीएनआइ ने विनोबा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रमेश शरण को दिया है. उपरोक्त जानकारी प्रो जयंत अग्रवाल कोषाध्यक्ष चर्च ऑफ नार्थ इंडिया न्यू दिल्ली, सीएनआइ सिनोड सह सचिव सीडीइएस ने दी.
प्रो जयंत ने बताया कि डायसिस ऑफ सीएनआइ ने एक एकरारनामा के तहत संत कोलंबा कॉलेज को सरकार को दिया था. इसके तहत संत कोलंबा कॉलेज में प्राचार्य समेत 33 प्रतिशत शिक्षकों की बहाली डायसिस द्वारा की जानी थी.
1970 में बने रांची यूनिवर्सिटी कोड में इसका उल्लेख है. इसके बावजूद एकरारनामा के तहत सरकार डायसिस से नियुक्त शिक्षकों को यूजीसी से स्वीकृति नहीं दिला रही है. वहीं डायसिस से नियुक्त कई शिक्षक कॉलेज छोड़ कर चले गये हैं. इधर डायसिस प्रतिनिधिमंडल ने शब्दश: एकरारनामा का पालन करने के लिए और अपनी मांगों से संबंधित पत्र विभावि के कुलपति प्रो रमेश शरण को दिया है. डायसिस का कहना है कि पटना वीमेंस कॉलेज की तर्ज पर संत कोलंबा कॉलेज को भी स्टेटस दिया जाये.
संत कोलंबा कॉलेज का अतीत व वर्तमान : जुलाई 1899 ई में डब्लिन यूनिवर्सिटी मिशन ने संत कोलंबा कॉलेज की स्थापना की थी. कॉलेज के प्रथम प्राचार्य रेवरेंड जेम्स आर्थर मर्रे थे. कोलकाता विवि से फर्स्ट आर्ट्स स्तर का संबंधन मिला था.
1952 में संत कोलंबा कॉलेज बिहार विश्वविद्यालय का अंग बन गया. 1960 में यह रांची विश्वविद्यालय में शामिल कर लिया गया. 1992 में कॉलेज विभावि के अधीन आ गया और इसी बीच 1999 में संत कोलंबा कॉलेज ने अपना सौ साल पूरा किया. फिलवक्त संत कोलंबा कॉलेज में कला, विज्ञान की स्नातकोत्तर स्तर तक पढ़ाई होती है. जबलि यहां कई व्यावसायिक कोर्स भी संचालित हो रहे हैं.
सरकार के निर्देश का पालन होगाः वीसी
प्रो रमेश शरण ने कहा कि डायसिस और झारखंड सरकार के बीच का यह मामला है. रांची यूनिवर्सिटी कोड, 1970 के तहत 33 प्रतिशत शिक्षक बहाली और प्राचार्य की नियुक्ति डायसिस द्वारा किये जाने की बात कही जा रही है.
यह कोड राज्य सरकार ने अब तक झारखंड विवि एक्ट में शामिल नहीं किया है. संत कोलंबा कॉलेज का स्टेटस अगर पटना वीमेंस कॉलेज की तरह अलग होना चाहिए तो सरकार इस पर मार्गदर्शन दे. संत कोलंबा कॉलेज को अल्पसंख्यक कॉलेज का दर्जा देना सरकार के हाथ में है. इस पूरे मामले पर सरकार से जो भी निर्देश आयेगा, उसका पालन करेंगे.