हजारीबाग: झारखंड ऑप्थाल्मोलॉजिकल सोसाइटी वार्षिक कांफ्रेंस के अंतिम दिन रविवार को चिकित्सकों ने आंखों के इलाज के नयी विधि की जानकारी दी. संत जेवियर्स स्कूल के हॉल में चिकित्सकों का व्याख्यान हुआ.
मौके पर रांची की नेत्र चिकित्सक डॉ भारती कश्यप ने बताया कि जेप्टो व फेमटो लेजर से मरीज भ्रमित न हों. कई बार मरीज यह सोचने लगते है कि फेमटो लेजर व जेप्टो लेजर एक तरह की पद्धति है. जबकि जेप्टो लेजर मोतियाबिंद की आगे की झिल्ली काटने का यंत्र है. वहीं फेमटो लेजर पद्धति से हम मरीज की आंखों के हिसाब से मोतियाबिंद की सर्जरी के हर एक चरण को पूरी तरह कस्टमाइज्ड कर सकते है. डॉ कश्यप ने फेमटो लेजर मोतियाबिंद सर्जरी पर दो शोध पत्र प्रस्तुत किये.
उन्होंने बताया कि फेमटो लेजर सर्जरी मोतियाबिंद सर्जरी की आधुनिकतम व सबसे सुरक्षित पद्धति है. देश में अधिकतर मरीज जब मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए आते है, तब तक उनका मोतियाबिंद अधिक कड़ा हो चुका होता है. ऐसे मरीज में फेमटो लेजर मोतियाबिंद सर्जरी पद्धति काफी सुरक्षित होती है. उन्होंने बताया कि निकट भविष्य में यह टेक्नोलॉजी सस्ती होगी, जिससे उन मोतियाबिंद से ग्रसित मरीजों को इस टेक्नोलॉजी का विशेष लाभ मिलेगा. इस टेक्नोलॉजी के महंगे होने की वजह से बहुत से मरीज इसका इस्तेमाल नहीं कर पाते है.
डॉ सत्यजीत सिन्हा (पटना) ने आंख में ओसीटी मशीन से कॉर्निया की विभिन्न बीमारियों का इलाज के बेहतर उपाय बताये. डॉ सुबोध सिंह (रांची) ने डायबिटिक बीमारी से रेटिना में असर का इलाज ओसीटी के प्रयोग से करने की जानकारी दी. डॉ पूनम ने आंख के अल्ट्रासाउंड करने में सावधानियां के बारे में बताया. डॉ पिंकी पॉल ने भी व्याख्यान दिया. डॉ सुरजीत चक्रवर्ती ने काला मोतियाबिंद में ऑपरेशन कर के रोशनी को स्थिर रखने की जानकारी दी. डॉ लव कोचगवे ने बच्चों में मोतियाबिंद ऑपरेशन विभिन्न तरीकों से करने के बारे में बताया. डॉ रवि चेन्नई शंकर नेत्रालय ने काला मोतियाबिंद में ऑपरेशन से आंख के प्रेशर को नियंत्रित किया जाये, इसकी जानकारी दी. डॉ पार्थो विश्वास कोलकाता ने आंख में चोट लगने के बाद मोतियाबिंद बनने पर होनेवाले उपचार के बारे में बताया.
कैट्रेक्ट सैंपोजियम पर डॉ सुनील कुमार ने आंख में भेंगेपन का इलाज के बाद आंख को सीधा करने के उपचार की जानकारी दी. ग्लूकोमा सैंपोजियम पर डॉ राशि श्याम ने आंख का प्रेशर बढ़ने पर इलाज किया जाये या नहीं. उन्होंने बताया कि मरीज की स्थिति को देखते हुए चिकित्सीय पद्धति अपनायें. डॉ सेराज अली रांची ने काला मोतियाबिंद इलाज में इस्तेमाल होनेवाले विभिन्न दवाओं के बारे में जानकारी दी. क्रॉस रोड्स में सभी चिकित्सक अपने इलाज के पक्ष व विपक्ष तर्क पर चर्चा की.
इसमें डॉ एसके मैत्रा बनाम डॉ भारती कश्यप के बीच चर्चा हुई. डॉ सुबोध सिंह सिंह बनाम डॉ एसके रमन, डॉ जाहिद बनाम डॉ सुजय सामंता, डॉ सुजीत कुमार मिश्रा बनाम डॉ वंदना प्रसाद बहस में भाग लिये. डॉ सुजय सामंतो ने देश की विभिन्न राज्यों से आये सभी नेत्र रोग चिकित्सकों के प्रति आभार व्यक्त किया. कांफ्रेंस में डॉ राजीव गुप्ता, डॉ एसआर सिंह, डॉ एसके सिंह, डॉ पी मैत्रा, डॉ बीपी कश्यप, डॉ भारती कश्यप, डॉ ललित जैन, डॉ मुकेश, डॉ डिबा, डॉ जाहिद, डॉ वंदना प्रसाद, डॉ बीएन गुप्ता, डॉ मंजु बाला गुप्ता, डॉ तीर्थ जीत मैत्रा, जेबा तौहिद, डॉ असित, डॉ निहित, डॉ दीपक लकड़ा, डॉ भदानी, डॉ काकोली राय, डॉ सौम्या श्रीवास्तव, देव्यानी सामंतो, संतोष जैन समेत कई चिकित्सक उपस्थित थे.