चैनपुर : चैनपुर प्रखंड से 20 किमी दूर कतारी कोना गांव है. यह जंगल के बीच पहाड़ों के ऊपर बसा है. यहां विलुप्त प्राय: असुर, बृजिया, बिरहोर व कोरवा आदिम जनजाति के लोग निवास करते हैं.
सरकार इन जातियों के संरक्षण की बात करती है, लेकिन इस गांव के लोग किन तकलीफों से जीते हैं, यह इनसे पूछने के बाद सरकार के वादे महज कागजों तक सिमटा नजर आता है. देश को आजाद हुए इतने साल हो गये, लेकिन विधायक कौन हैं, यहां के लोग नहीं जानते. मुख्यमंत्री तक का नाम नहीं जानते हैं. मुख्यमंत्री का नाम पूछने पर पूर्व विधायक भूषण तिर्की का नाम बताते हैं. 300 आबादी वाले इस गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है. 10 वर्ष पहले 14 परिवार का बिरसा आवास स्वीकृत हुआ था, लेकिन जिला प्रशासन के भ्रष्ट मुलाजिम आवास का पैसा भी खा गये. भवन अधूरा रह गया.
बरसात में टापू हो जाता है गांव
बरसात में गांव टापू हो जाता है, क्योंकि गांव जाने के मार्ग पर छोटी नदी है, जहां पुलिया नहीं बनी है. लोगों ने खुद से लकड़ी की छोटी पुलिया बनायी है, जहां से लोग मुश्किल से पार करते हैं. बरसात में लोगों को परेशानी होती है. गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं है.
डोभा का पानी पीते हैं लोग
गांव में पीने के पानी का साधन नहीं है. 70 साल पहले गांव में खेत में एक डोभा बनाया गया था, जहां पानी जमा रहता है. लोग उसी पानी को पीते हैं. बरसात में अक्सर लोग डोभा का पानी पीकर बीमार होते हैं. गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं, नर्स भी नहीं जाती.
सरकार ने भगवान के भरोसे छोड़ा
गांव के एतवा आसुर, बलखू असुर, चरवा असुर व मतियस असुर ने कहा कि हम कैसे जीते हैं, यह हमारे बच्चों से पूछो. बड़े-बुजुर्ग तो अपनी जिंदगी जी लिये, लेकिन हमारे बच्चे भी क्या इसी हालात में जीयेंगे. सरकार हमारे गांव की सुध नहीं लेगी. सरकार ने हमें भगवान के भरोसे छोड़ दिया है.
स्थिति में होगा सुधार : प्रमुख
चैनपुर प्रमुख ओलिभाकांता कुजूर व उपप्रमुख सुशील दीपक मिंज पहली बार गांव पहुंचे. जनजाति परिवार के लोगों से मिले. उनका दुख-दर्द सुना. प्रमुख ने कहा : वाकई इस क्षेत्र में कुछ काम नहीं हुआ है. वोट लेकर इस गांव को धोखा दिया गया, लेकिन अब इस गांव की दुर्दशा को सुधारने का पूरा प्रयास करेंगे.