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:: बंगाली परंपरा से होती है पूजा

:: बंगाली परंपरा से होती है पूजा गुमला. गुमला में दुर्गापूजा पर्व मनाने की परंपरा अनोखी है. यहां सभी जाति के संगम का मेल है. हिंदू, मुसलिम, सिक्ख व ईसाई. ऐसे इतिहास के पन्नों पर सर्वप्रथम बंगाली समुदाय के लोगों ने 1921 में दुर्गापूजा की शुरूआत की थी. बंगाली क्लब, जहां आज पक्का मकान व […]

:: बंगाली परंपरा से होती है पूजा गुमला. गुमला में दुर्गापूजा पर्व मनाने की परंपरा अनोखी है. यहां सभी जाति के संगम का मेल है. हिंदू, मुसलिम, सिक्ख व ईसाई. ऐसे इतिहास के पन्नों पर सर्वप्रथम बंगाली समुदाय के लोगों ने 1921 में दुर्गापूजा की शुरूआत की थी. बंगाली क्लब, जहां आज पक्का मकान व सुंदर कलाकृतियां नजर आती है, उस समय खपड़ानुमा भवन था. 1921 में जब पहली बार पूजा हुई, तो गुमला ज्यादा विकसित नहीं था. यह बिहार प्रदेश का छोटा गांव हुआ करता था. दृश्य भी उसी तरह था. पर मां दुर्गा की कृपा और लोगों के दृढ़ विश्वास ने कलांतार में गुमला का स्वरूप बदला. आज सिर्फ गुमला शहर में 13 स्थानों पर पूजा होती है. गांव, पंचायत व प्रखंड को जोड़ा जाये, तो लगभग 85 स्थानों पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है.

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