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किसानों ने श्रमदान से खोदे पांच कुएं

गुमला: गुमला प्रखंड का पंडरिया बैरचंवरा गांव. गुमला से 15 किमी दूर है. यहां के पांच किसानों ने श्रमदान से पांच कुआं खोद कर कमाल कर दिखाया है. कुआं 13 फीट गहरा व आठ फीट चौड़ा है. इस कुआं से आसपास के खेत को सिंचाई के लिए पानी मिल रही है. सबसे अच्छी बात कि […]

गुमला: गुमला प्रखंड का पंडरिया बैरचंवरा गांव. गुमला से 15 किमी दूर है. यहां के पांच किसानों ने श्रमदान से पांच कुआं खोद कर कमाल कर दिखाया है. कुआं 13 फीट गहरा व आठ फीट चौड़ा है. इस कुआं से आसपास के खेत को सिंचाई के लिए पानी मिल रही है. सबसे अच्छी बात कि एक कुआं खोदने में एक किसान को 120 घंटा लगा है. शुरू में किसानों ने मनरेगा से कुआं बनाने की फरियाद सरकारी बाबुओं से किये थे. कई बार आवेदन दिया, लेकिन मनरेगा से मंजूरी नहीं मिली. इसके बाद इन किसानों ने कुदाल उठा लिया. प्रत्येक दिन सुबह दो व शाम को दो घंटे श्रमदान कर कुआं खोदते थे. इस प्रकार एक महीने में कुआं पूरा हो गया. कुआं के बगल में छोटी नदी बहती है. इसलिए 13 से 14 फीट गहराई जाते-जाते पानी निकल गया.

इन किसानों ने खोदा कुआं : बैरचंवरा गांव के चैतु खड़िया, लाडो खड़िया, बुधरा खड़िया, करमा खड़िया व करमा महतो ने अपने-अपने खेत में कुआं खोदा है. इनके परिवार के सदस्यों ने खुदाई से निकलने वाली मिी को हटाने में सहयोग किया है.

कुआं पाटने के लिए पत्थर जरूरी

किसानों ने कहा : खुद की मेहनत से कुआं खोदा है. लेकिन बारिश में कुआं धंसने का डर है. अगर पत्थर से कुआं को पाट देते हैं तो बारिश में कुआं नहीं धंसेगा. लेकिन इन किसानों के पास पत्थर खरीदने के लिए पैसा नहीं है. किसानों ने प्रशासन से सहयोग की गुहार लगायी है.

गरमी में नदी सूख जाती है : पांचों किसानों के पास पांच से छह एकड़ जमीन है.

गरमी में नदी सूख जाती है. सिंचाई का कोई साधन नहीं है. मनरेगा से कुआं की स्वीकृति नहीं मिलने के बाद धरती का सीना चीरा. कुआं खोदने के बाद सब्जी की अच्छी खेती कर रहे हैं.

बच्चों को अच्छी शिक्षा देना है : सभी किसानों के बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं. इनकी इच्छा है कि बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण करें. इसलिए खुद खेतीबारी कर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. गांव में कोई काम भी नहीं है. पूरा परिवार कृषि पर ही आश्रित है और खेतीबारी तभी संभव है. जब खेत को पानी मिले.

मुखिया जी का दर्शन नहीं : किसानों ने कहा : चुनाव के समय हम विधायक व मुखिया को वोट देते हैं. लेकिन चुनाव खत्म होते ही इनका दर्शन नहीं होता है. अब मुखिया का कार्यकाल खत्म हो रहा है. पांच साल में मुखिया गांव नहीं आया. इस बार गांव के लोगों ने सबक सिखाने का निर्णय लिया है. मुखिया से संपर्क करने पर बात भी नहीं हुई.

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