गुमला : बेटियों को बालिका वधू बनने से रोकने व बेटियों को बचाने की राह गुमला जिला ने दिखायी है. यह कहना खुद राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास का है. उन्होंने सुकन्या योजना के शुभारंभ के दौरान स्पष्ट कहा है. गुमला की दो बेटियां ममता कुमारी व बिरसमुनी कुमारी, जिसे उसके माता पिता बालिका वधू बनाने में लगे हुए थे.
इन दोनों बेटियों ने हिम्मत दिखायी. खुद की शादी के खिलाफ बगावत की. जिसका परिणा है कि दोनों बेटियां बालिका वधू बनने से बच गयी, क्योंकि दोनों बेटियों ने अपने ऊपर विश्वास किया. कम उम्र में शादी का विरोध किया. इन दोनों बेटियों के इस हौसले व जज्बे को सरकार ने सलाम करते हुए दोनों के लिए पढ़ने-लिखने की व्यवस्था की. दोनों को एक-एक लाख रुपये का चेक भी दिया गया था. अभी ममता व बिरसमुनी कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय स्कूल में पढ़ रही हैं.
उन्होंने समारोह में गुमला की दो बेटियों का उदाहरण देते हुए कहा कि ममता कुमारी और बिरसमुनी कुमारी ने मिसाल पेश की है. इन दोनों बेटियों के हौसले को देख कर ही मेरे मन में यह विचार आया कि बेटियों के लिए कोई ऐसी योजनाएं बनायी जाये, ताकि उनकी पढ़ाई में कोई बाधा न आये और गरीबी एवं अज्ञानता के कारण उनकी कम उम्र में शादी न हो. गुमला की स्थिति को ध्यान में रख कर मुख्यमंत्री सुकन्या योजना का शुभांरभ किया गया है. इस योजना का बेटियां लाभ उठाये. ज्ञात हो कि गुमला में अभी तक छह लड़कियां बालिका वधू बनने से इंकार कर चुकी है. सभी लड़कियों को सरकार ने गोद लेकर पढ़ाया है.
इसमें कुछ लड़कियां पढ़ रही है, जबकि एक लड़की पढ़ाई पूरी कर अभी विकास भारती से जुड़ कर काम कर रही है. ज्ञात हो कि आदिवासी बहुल गुमला जिला में एक समय था, जब लड़कियों की पढ़ाई से लेकर घर की चौखट से निकलने पर भी पाबंदी थी, लेकिन समय बदला. आज की लड़कियां ताकतवर हुई हैं. चाहे वह खेल, शिक्षा, रोजगार या फिर खुद के बूते ऊंची उड़ान की बात हो.
बाल विवाह के खिलाफ भी लड़कियों ने आवाज बुलंद कर अपनी शक्ति का एहसास समाज को कराया है. गुमला जिला इसका उदाहरण बना है. गुमला की छह लड़कियों ने न अपनी शादी रुकवाई, बल्कि समाज को भी बाल विवाह के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रेरित किया. आज पूरा राज्य इनके हौसले को सलाम करता है. मुख्यमंत्री रघुवर दास इन बेटियों को हौसले से खुश हैं. गुमला से मिली सीख के बाद ही सुकन्या योजना का शुभारंभ सरकार ने की है.