दुर्जय पासवान
गुमला : गुमला शहर से 15 किमी की दूरी पर शहीद तेलंगा खड़िया आदर्श ग्राम है. यह सिसई प्रखंड में पड़ता है. इसी गांव में विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश उरांव का घर है. इस गांव में वीर शहीद तेलंगा खड़िया का जन्म हुआ था. तेलंगा खड़िया जमींदारों से लड़ते हुए शहीद हुए थे. लेकिन, इस गांव के टेन प्लस टू हाई स्कूल की जो दुर्दशा है, झारखंड के किसी स्कूल की नहीं होगी.
स्कूल में बैठने के लिए बेंच-डेक्स नहीं है. 10वीं, 11वीं व 12वीं कक्षा के छात्र दरी में बैठकर पढ़ते हैं. छात्रों की मजबूरी है. कई बार छात्रों ने स्कूल प्रबंधन से बेंच डेक्स मांगा. लेकिन स्कूल प्रबंधन तो छोड़ दीजिये. यहां के आला अधिकारी भी छात्रों की मांग को पूरा करने में आनाकानी कर रहे हैं.
पढ़ाई भगवान भरोसे है, क्योंकि इंटर क्लास के लिए एक भी शिक्षक नहीं है. हाई स्कूल के शिक्षक 11वीं व 12वीं के छात्रों को पढ़ाते हैं.
छात्रों कीमानें, तो शिक्षक आते हैं, तो क्लास चलती है. नहीं तो छात्रखुदसे पढ़ाई करते हैं. स्कूल परिसर के एक कोने में चार कमरे का शौचालय है, लेकिन इसकी कहानी भी निराली है. सरकार हर घर में शौचालय व राज्य को खुले में शौच से मुक्त करने में लगी है, लेकिन इस स्कूल में चार शौचालय बेकार पड़े हैं.
कारण, शौचालय में दरवाजा नहीं है. शौचालय के कमरे में कचरा जमा है. ऐसा लगता है कि सालों से सफाई नहीं हुई. छात्राएं कहती हैंकि उन्हें शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है. इससे लाज-शर्म लगता है, लेकिन मजबूरी है. स्कूल भवन की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है. किसी कमरे में दरवाजा नहीं है, तो किसी में खिड़की से शीशा गायब है.
स्पीकर साहब, जरा इधर ध्यान दीजिये
मुरगू गांव का यह स्कूल स्पीकर के क्षेत्र में आता है. खुद स्पीकर इसी गांव के निवासी हैं, लेकिन स्पीकर साहब का ध्यान इस स्कूल की ओर नहीं है. छात्रों ने स्पीकर से गुहार लगायी है कि उनके स्कूल की ओर भी ध्यान दें.
यहां बता दें कि शिक्षा विभाग के अधिकारी इस स्कूल का निरीक्षण करने भी नहीं जाते हैं. जिस कारण शिक्षा विभाग को स्कूल की समस्या की जानकारी भी नहीं है.
कैसे सुधरे रिजल्ट, जब शिक्षक ही नहीं
स्कूल में शिक्षक नहीं होने की वजह से रिजल्ट भी बहुत खराब रहता है. कई बार स्कूल प्रबंधन ने विभाग को पत्र लिखा है. शिक्षक के साथ बेंच-डेस्क व शौचालय को ठीक कराने की मांग की है. लेकिन, विभाग ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.
छात्रों का दर्द
बेंच-डेस्क नहीं है. मजबूरी है. पक्का पर दरी बिछाकर बैठते हैं. पढ़ाई करने में परेशानी होती है. शिक्षक पढ़ाने आते हैं. लेकिन शिक्षकों की कमी भी है. –राहुल केवट, छात्र
शौचालय स्कूल परिसर में बना है, लेकिन उसका उपयोग नहीं होता. दरवाजा नहीं है. गंदगी भरी है. हम छात्राएं खुले खेत में जाने को विवश हैं. –लवली कुमारी, छात्रा
इंटर कला संकायकी 11वीं कक्षा में 35 छात्र हैं, लेकिन शिक्षकों की कमी है. फलस्वरूप कई छात्र स्कूल नहीं आते. आज मैं अकेला आया हूं. -शाहबाज अंसारी, छात्र
शिक्षक बोले
इंटर क्लास के लिए एक भी शिक्षक नहीं है. बेंच-डेक्स भी नहीं है. इन समस्याओं की जानकारी हेडमास्टर के माध्यम से शिक्षा विभाग को दी गयी है. -माड़वारी साहू, शिक्षक