गुमला : सरहुल को उरांव भाषा में खद्दी पर्व के नाम से एवं खेरवेल बेंजा के नाम से भी जानते हैं. इसका मतलब धरती व सूर्य का विवाह भी कहते हैं. इस पर्व को मूलत: उरांव व मुंडा समुदाय के लोग मनाते हैं. ये बातें सरना धर्म राष्ट्रीय प्रचारिका चिंतामनी उरांव ने कही. उन्होंने कहा कि मुंडा भाषा में इसे बहा पर्व के नाम से पुकारते हैं. यह पर्व चैत तृतीय को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
सरहुल से पहले फाल्गुन को उरांव लोग फग्गु कहते है. वहीं से यह पर्व की शुरुआत मानी जाती है. खास कर इस पर्व में पाहन व पहनाइन की मुख्य भूमिका होती है. इस पर्व को पाहन व पहनाइन की शादी के रूप में जानते हैं. इस पर्व में साल वृक्ष व इसके फूल की विशेष महत्ता है. सरहुल के एक दिन पूर्व जिसे (ठडूपास) कहते हैं, उस दिन धरती को खोदा नहीं जाता है तथा हल भी नहीं चलाते हैं. अगल कोई इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसे समाज के लोग पंच बैठ कर दंड देते हैं.
ठाडूपास के दिन पाहन नया घड़ा में शुद्ध जल चढ़ाते हैं और उसी घड़ा के पानी को पाहन पूजा कर यह विचार करते हैं कि इस वर्ष किस तरह वर्षा होगी. यानि अच्छी बारिश होगी या नहीं. इसका विचार पाहन करता है