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न सड़क, न पेयजल की व्यवस्था

हाल रायडीह के काटासारू गांव का जगरनाथ गुमला : दो राज्यों के सीमा पर स्थित काटासारू मौजा आजादी के 67 वर्ष बाद भी विकास की बाट जोह रहा है. यहां की जनता अब तक 15 सांसद चुने. आज तक एक भी सांसद इस मौजा तक नहीं पहुंचे. रायडीह प्रखंड स्थित काटासारू मौजा चारों ओर से […]

हाल रायडीह के काटासारू गांव का

जगरनाथ

गुमला : दो राज्यों के सीमा पर स्थित काटासारू मौजा आजादी के 67 वर्ष बाद भी विकास की बाट जोह रहा है. यहां की जनता अब तक 15 सांसद चुने. आज तक एक भी सांसद इस मौजा तक नहीं पहुंचे. रायडीह प्रखंड स्थित काटासारू मौजा चारों ओर से पहाड़ों व जंगलों से आच्छादित है.

यह झारखंड व छत्तीसगढ़ राज्य का सीमावर्ती गांव है. इस मौजा में ओड़िशा राज्य की भी सीमा है. काटासारू के बगल में छत्तीसगढ़ राज्य से ही सटा कुस्तूबा, तेतरटोली व कठलडांड़ गांव हैं. ये तीनों गांव जशपुर जिले के आरा थाना में आता है. इन तीनों गांव में चकाचक सड़क है. लेकिन काटासारू मौजा आज भी उपेक्षित है. गांव के ओहमा तिग्गा व ऑरेन मिंज बताते हैं कि 700 आबादी वाले काटासारू मौजा में केउंदडांड़, अंबाडांड़, टिपकापानी, कोइनारडांड़ व नवाटोली गांव आता है.

यहां पानी, बिजली, स्वास्थ्य, बेरोजगारी व सिंचाई जैसी सुविधाओं का घोर अभाव है. ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए गड्ढा खोदा गया है. लेकिन पोल व तार नहीं लगा. चापानल भी वर्षों से बेकार है. स्वास्थ्य उपकेंद्र नहीं है. काटासारू से सात किमी दूर कोंडरा गांव में डेढ़ करोड़ रुपये की लागत से नया अस्पताल बना है. लेकिन वहां चिकित्सक नहीं है. नतीजा स्वास्थ्य सुविधा का लाभ पाने के लिए 60 किलोमीटर की दूरी तय कर गुमला या बिशुनपुर अस्पताल जाना पड़ता है.

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