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कैप्टन ब्रुक का सिर काट दिलायी थी आतंक से मुक्ति

इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हो सका गंवई गोदरा का नाम सुंदर पहाड़ी से लौट कर जीवेश jivesh.singh@prabhatkhabar.in हे गंवई गोदरा तोइं अमार गौरव आछौ तोयं कथै चोल गैले घुमुई आयं न गंवई गाेदरा तुमरा बहुत याद आवै हो पहाड़िया समाज कभी नहीं बिसराय छौ कम-से-कम आयं लगी एक बार घुमुई आयं न गंवई […]

इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हो सका गंवई गोदरा का नाम
सुंदर पहाड़ी से लौट कर जीवेश
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
हे गंवई गोदरा
तोइं अमार गौरव आछौ
तोयं कथै चोल गैले
घुमुई आयं न गंवई गाेदरा
तुमरा बहुत याद आवै हो
पहाड़िया समाज कभी नहीं बिसराय छौ
कम-से-कम आयं लगी
एक बार घुमुई आयं न गंवई गोदरा…
जैसे गीत हर वर्ष मार्च में गोड्डा जिले के सुंदर पहाड़ी के टटकपाड़ा गांव में गूंजते हैं. लगभग 1800 फीट की ऊंचाई पर स्थित पहाड़िया जनजाति के इस गांव में वर्षों से गंवई गोदरा की तलवार की पूजा होती है.
तलवार के बगल में ही एक बेल्ट का बकल रखा जाता है अौर फिर शुरू होता है वीर रस व विरह गीतों के साथ नृत्य. आतंक का पर्याय बने कैप्टन ब्रुक की गोदरा द्वारा हत्या कर गांव को उसके आतंक से मुक्ति दिलाने की घटना पर आधारित गीत गाते हुए जोश से भर जाते हैं पहाड़िया. अपने पूर्वज वीर गंवई गोदरा की याद में पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं टटकपाड़ा व आसपास के टोलों के पहाड़िया. इस दौरान वीर गोदरा की कहानी सबको सुनायी जाती है, ताकि भावी पीढ़ी भी अपने वीर वंशज से प्रेरित हो.
वर्ष 2003 में उनकी याद में चंदा कर एक प्रतिमा का भी निर्माण किया गया. तब से प्रतिमा के समक्ष गोदरा की तलवार गाड़ भव्य तरीके से उसकी पूजा की जाती है. लेकिन , इस वर्ष पूजा सामान्य तरीके से हुई. कारण पूछने पर गांव के प्रधान जवाहर पहाड़िया थोड़ा सकुचाते हैं, फिर सामान्य होकर कहते हैं कि पहाड़िया का कोई नहीं, न तो कोई अपना नेता है अौर न ही अधिकारी. उन्हें मलाल इस बात का है कि वीर गंवई गोदरा आज तक इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं हो सके. वह पूछते हैं कि आखिर राज्य बनने के बाद भी इसके लिए पहल क्यों नहीं हुई.
अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए बताते हैं कि हमारे सामने जीवन बचाने की समस्या है. हमारे पास बहुत पैसे नहीं, जो हैं वे अपने बच्चों को पढ़ाने अौर दो जून की रोटी की व्यवस्था करने में ही शेष हो जाते हैं. ऐसे में भव्य पूजा के लिए पैसे की कहां से व्यवस्था हो. हां, यह जरूर करते हैं कि हर काम की शुरुआत गंवई गोदरा की याद के साथ ही करते हैं. इतना कहते-कहते उनकी आंखें नम हो गयीं, वह रुंधे गले से गंवई गोदरा की प्रतिमा दिखाते हुए कहते हैं कि इसकी मरम्मत के लिए भी उन लोगों के पास पैसे नहीं.
कैप्टन ब्रुक का सिर काट कर टांगा था
वर्तमान प्रधान जवाहर पहाड़िया व गांव के सबसे बुजुर्ग रमेसर पहाड़िया के अनुसार, 1774 में सुंदर पहाड़ी की चोटी पर पुसुरकुड़िया गांव था. उस वक्त गांव के प्रधान थे गंवई गोदरा. लगभग 212 घरवाले इस गांव से होकर अंगरेजों का दस्ता भागलपुर से महेशपुर आता-जाता था. कैप्टन ब्रुक के आतंक से सब परेशान थे. खास कर गांव की महिलाओं की आबरू संकट में थी. ऐसे में गंवई गोदरा ने उसके आतंक से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया. उसने अपने साथियों की एक टोली बनायी अौर फिर शुरू किया कैप्टन ब्रुक के खिलाफ अभियान. जगह-जगह अंगरेज कुनबा पर टोली टूट पड़ती. इस छापेमार युद्ध से अंगरेजों के हौसले पस्त होने लगे. एक दिन गंवई गोदरा कहीं बाहर थे, इस दौरान कैप्टन ब्रुक का दस्ता गांव से गुजरा.
हमेशा की तरह गांव के सभी लोग घरों में छुप गये, पर एक बच्चा बाहर रह गया था. उसने ब्रुक के घोड़े की ओर उंगली से इशारा कर दिया. इस पर ब्रुक ने उसकी उंगली कटवा दी. दस्ता भागलपुर की ओर चला गया. जब घटना की जानकारी गंवई गोदरा को हुई, तो उसने बदले की रणनीति बनायी अौर महेशपुर लौट रहे दस्ते पर जोरदार हमला कर दिया. ब्रुक घबरा कर भागने लगा. लेकिन, गोदरा ने एक ही झटके में तलवार से उसका सिर काट दिया. सारे सैनिक भाग खड़े हुए. गोदरा ने कैप्टन ब्रुक के सिर को गांव के ही एक पेड़ पर टांग दिया. गांव में ही एक पेड़ के नीचे उसकी लाश दफना दी. बचे-खुचे सैनिकों ने भाग कर बड़े अंगरेज अधिकारियों को घटना की सूचना दी. फिर शुरू हुआ दमन का दौर.
गांव के सभी लोग भाग गये. इस दौरान घटनास्थल पर पड़ी गोदरा की तलवार व कैप्टन ब्रुक के बेल्ट का बकल भी वे साथ लेते गये. अंगरेजों ने बौखला कर घरों में आग लगा दी, गांव लूट लिया. गांव के प्रधान के अनुसार, उन्हें कैप्टन का सिर तो मिला, पर लाश का पता नहीं चला. वे सिर लेकर चले गये. प्रधान के अनुसार, दूसरी ओर गंवई गोदरा अपने साथियों के साथ भाग कर पथरगामा पहुंचे. वहां पर संगठन का विस्तार हुआ. अंगरेजों के खिलाफ उनके नेतृत्व में छापामार दस्ता सक्रिय रहा. बाद में पथरगामा के बारकोप में वह अंगरेजों की पकड़ में आ गये अौर उन लोगों ने उन्हें फांसी पर लटका दिया.
सुंदर पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर है कब्र
कभी पहाड़िया का गांव पुसुरकुड़िया सबसे ऊंची चोटी पर था. अब उसका नाम बेचिरागी गांव हो गया है, वहां गुजर – बसर के लिए छिटपुट खेती करते हैं. वहीं पर दो पेड़ों के बीच कैप्टन ब्रुक की कब्र है. गांव के लोगों में आज भी उसके प्रति नफरत कम नहीं हुई. बच्चे खेलने जाते हैं, तो भी वहां ब्रुक की कब्र पर पत्थर मारते हैं. कहते हैं कि यह बुरा आदमी था. बच्चों की उंगली काट लेता था.
टटकपाड़ा को बनाया नया ठिकाना
प्रधान जवाहर पहाड़िया अौर रमेसर पहाड़िया के अनुसार, गांव के लोगों में कुछ दार्जिलिंग, कुछ साहेबगंज अौर कुछ आसपास के इलाकों में जाकर बस गये. बाद के वर्षों में अंगरेजों का आतंक कम होने पर उनमें से कुछ पुसुरकुड़िया गांव के नीचे की पहाड़ी पर स्थित टटकपाड़ा गांव में आकर बसे. तब से वहां पर गंवई गोदरा व उनकी तलवार की पूजा की परंपरा जारी है.
रमेसर पहाड़िया ने 1964 में आठवीं बोर्ड की परीक्षा पास की थी. वह बताते हैं कि सभी लोग नहीं लौटे, जो लौटे उन लोगों ने अपने बच्चों को वीर गंवई के बारे में बताया. तब से यह परंपरा जारी है. आज इस गांव में 22 घर हैं. सब आपस में प्रेम भाव से रहते हैं. सभी के बच्चे पढ़ते हैं. गंवई गोदरा के वंशज के संबंध में बताते हैं कि वे दार्जिलिंग भाग गये, फिर उनका पता नहीं चला. वह कहते हैं कि अगर कोई नेता आगे आता, तो सब कुछ पता चलता.
किसी ने नहीं ली सुध
जवाहर पहाड़िया कहते हैं कि किसी भी नेता ने कभी भी उन लोगों की सुधि नहीं ली. इस बात को लेकर सबके बीच नाराजगी है. कहते हैं कि लगातार क्रांतिकारियों की पहचान का काम सरकार कर रही है, पर पहाड़िया लोगों के योगदान को कभी नहीं याद किया गया. स्थानीय विधायक व सांसदों ने भी कभी नहीं पूछा. झारखंड राज्य गठन से भी ऐसे गौरवमय स्मिता के संरक्षण की जो भी आस थी, वह भी ध्वस्त हो चुकी. दरअसल, लोगों के दिलों में गंवई गोदरा का वही स्थान है, जो शाहाबाद के शेर बाबू वीर कुंवर सिंह का है. गंवई को लेकर न केवल किंवदंतियां अपितु इन पहाड़िया के ओठों पर वीरता के कई गीत तैरते हैं.
(गीत के भावार्थ
हे गंवई गोदरा
तुम हमारे गौरव थे
तुम कहां चले गये
एक बार लौट आओ न
पहाड़िया समाज तुम्हें बहुत याद करता है
अपने लिए न सही
हमलोगों के लिए एक बार लौट आओ न गंवई गोदरा )
(साथ में गोड्डा से नीरभ किशोर व िवनोद)
जाने टटकपाड़ा को
सुंदर पहाड़ी गोड्डा जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर है. जिस प्रखंड में यह पहाड़ है, उसका भी नाम सुंदर पहाड़ी है. यह गोड्डा-पाकुड़ मुख्य मार्ग पर स्थित है. यहां तक जाने के लिए सिर्फ सड़क मार्ग है. सिर्फ दो बस चलती है, जो पहाड़ की तलहटी डमरू बाजार तक जाती है. फिर वहां से 30 किलोमीटर की दूरी पैदल या दोपहिया वाहन से तय की जा सकती है. कैप्टन ब्रुक की कब्र तक जाने के लिए 300 फीट की सीधी चढ़ाई पैदल चढ़नी पड़ती है. यहां पीने के पानी की कमी है. दो किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं लोग.

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