गोड्डा : बुधवार को हुई बारिश से खेतों की रौनक लौट गयी है. काफी दिनों से वर्षा नहीं होने से किसानों के चेहरे पर मायूसी थी. धान में पटवन की चिंता किसानों को सता रही थी. खेतों में पानी का अभाव होने से खेतों में दरारें आ गयी थी. अब बारिश होने से किसानों को […]
गोड्डा : बुधवार को हुई बारिश से खेतों की रौनक लौट गयी है. काफी दिनों से वर्षा नहीं होने से किसानों के चेहरे पर मायूसी थी. धान में पटवन की चिंता किसानों को सता रही थी. खेतों में पानी का अभाव होने से खेतों में दरारें आ गयी थी. अब बारिश होने से किसानों को फिलहाल पटवन की चिंता नहीं है. कानी नक्षत्र में हुई वर्षा ने किसानों को राहत पहुंचाए जाने का काम किया है. बुधवार को पूरे जिले में छिटपुट वर्षा हुई है. इस वर्षा की दरकार किसानों को थी.
गत बीस दिनों से गोड्डा आसपास क्षेत्र में वर्षा नहीं हुई थी. वर्षाभाव में पटवन की चिंता वाजिब है. खेतों में धान के फसल में गम्हर (अंकुर) आने का समय है. यदि अभी पानी की कमी होती है तो गम्हर सही तरीके से नहीं निकलेगा. इसीलिए भी किसान परेशान थे तथा पानी पहुंचाए जाने का जुगाड़ में लगे थे.
अगस्त व सितंबर माह में हुई है कम वर्षा : हालांकि जिले में अगस्त व सितंबर माह में कम वर्षा हुई है. अपेक्षाकृत वर्षा नहीं हुई है. विभाग की मानें तो अगस्त माह में 112 मिमी कम वर्षा हुई है. वहीं सितंबर माह में भी अब तक अपेक्षानुसार वर्षा नहीं हो पायी है. अगस्त व सितंबर माह का सामान्य वर्षापात 251.5 मिमी है. लेकिन अब तक मात्र 111 मिली के बराबर ही वर्षा हुई है. जबकि इस क्षेत्र के अधिकांश किसान वर्षा आधारित खेती पर ही आश्रित हैं. बुधवार को देर रात हुई वर्षा से निश्चित रूप से राहत मिली है.
अच्छी वर्षा हुई है. पूरे जिले में छिटपुट वर्षा हुई है. इससे राहत मिलने की उम्मीद है. बारिश होने की संभावना प्रबल हैं. अच्छी बारिश होने से क्षेत्र में अच्छी पैदावार भी होगी.
-संतोष कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, गोड्डा
नदियों व बांधों से नहीं मिल रहा फायदा
पहले पटवन की चिंता इतने व्यापक स्तर पर इसीलिए भी नहीं रहती थी क्योंकि पहले नदियों व बांधों से किसानों के खेतों तक पानी पहुंच जाता था. पारंपरिक दांड़ पटवन का महत्वपूर्ण साधन था. लेकिन जबसे नदियों से बालू का व्यापक स्तर पर दोहन होने लगा है तब से यह परेशानी बढ़ी है. चिंता की बात तो यह है कि वैसे गांव जिनके बगल से ही नदियां गुजरती है वहां भी पटवन के लाले पड़े है. दूर से कृत्रिम बांध बनाकर पानी रोकने का प्रयास किया जा रहा है. कोई श्रमदान कर बना रहा है तो कोई मोटर आदि चलाकर खेतों की प्यास बुझाए जाने का प्रयास कर रहा हैं.