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लाखों की चाहत में अफीम की ओर आकर्षित होते हैं किसान
राकेश सिन्हा गिरिडीह : अफीम का उपयोग यदि दवा बनाने के लिए हो तो इसका अलग ही महत्व है लेकिन यदि इसका इस्तेमाल ब्राउन शूगर बनाने में किया जाये तो यह खतरनाक हो जाता है. अफगान की यह प्रमुख फसल कम लागत में बेतहाशा मुनाफा देती है. यह फसल वर्षो से झारखंड के कई किसानों […]
राकेश सिन्हा
गिरिडीह : अफीम का उपयोग यदि दवा बनाने के लिए हो तो इसका अलग ही महत्व है लेकिन यदि इसका इस्तेमाल ब्राउन शूगर बनाने में किया जाये तो यह खतरनाक हो जाता है. अफगान की यह प्रमुख फसल कम लागत में बेतहाशा मुनाफा देती है. यह फसल वर्षो से झारखंड के कई किसानों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. कम लागत और बेतहाशा मुनाफे की लालच में अवैध होते हुए भी कई गांव अफीम की खेती करने में जुटा हुआ है.
जानकारी के अनुसार गिरिडीह के अलावा चतरा और हजारीबाग जिले के कई गांवों में भी अफीम की खेती की जाती है. बताया जाता है कि पोस्ते के बीज की लागत चार सौ से छह सौ रुपये प्रति किलो है. इसकी खेती में न सिंचाई की जरूरत है, न ही खाद और न ही किसी कृषि उपकरण की. पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में खरीफ या रबी फसलों की पैदावार आंशिक होने के कारण तंगहाली से जूझते कृषकों के लिए अफीम की खेती मुंह मांगा वरदान है.
अफीम की पैदावार से हो रहे लाभ को देखते हुए कई कृषकों ने खरीफ या रबी फसलों से तौबा कर लिया है. कहां 20-25 रुपये किलो चावल और कहां 50 से 70 हजार रुपये किलो अफीम. नक्सलियों की परोक्ष और प्रत्यक्ष सहभागिता के कारण यहां अफीम का कारोबार मादक पदार्थों के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़ गया है.
बिहार जाता है कच्च माल : बताया जाता है झारखंड में माओवादियों के सघन प्रभाव वाले इलाकों में सैकड़ों एकड़ जमीन पर अफीम की खेती हो रही है. जानकार बताते हैं कि बिहार के कैमूर की पहाड़ियों के पास भूमिगत हेरोइन कारखानें अवैध रूप से संचालित हैं. झारखंड से कच्चे माल की आपूर्ति इन्हीं इलाके में होती है और कैमूर के इन्हीं पहाड़ियों में संचालित कारखानों में अफीम को ब्राउन शुगर में बदल कर ड्रग मा़फिया के हवाले कर दिया जाता है.
कैमूर की पहाड़ियों की तराई का इलाका वर्षो से उत्तर भारत में ड्रग स्मगलिंग का केंद्र रहा हैं. जानकार कहते हैं कि यहां के ड्रग मा़फियाओं के तार अफगानिस्तान और दूसरे अंतरराष्ट्रीय ड्रग मा़फिया से जुड़े हुए हैं. यहां से हेरोइन, मार्फिन आदि मुंबई के रास्ते अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचता है.
नक्सलियों को ऊर्जा मिलती है अफीम से : झारखंड में नक्सलियों के लिए अफीम की खेती वरदान साबित होती रही है. कई इलाके में नक्सली इस अवैध फसल की खेती में लगे हुए हैं. बताया जाता है कि नक्सलियों के संरक्षण में गांव के किसान इस तरह की अवैध खेती कर रहे हैं.
एक ओर जहां किसानों को अच्छी-खासी रकम मिल जाती है, वहीं नक्सलियों को भी ऊर्जा मिलती है. जानकारी के अनुसारअफीम से अजिर्त पैसों से नक्सली अत्याधुनिक हथियारों की खरीदारी भी करते हैं. हालांकि राज्य की पुलिस इस अवैध खेती को रोकने के लिए समय-समय पर अभियान भी चलाती रही है. गिरिडीह, हजारीबाग, चतरा, लातेहार, पलामू के कई गांवों में अफीम की खेती नष्ट करने में पुलिस ने सफलता भी हासिल की है.
इस तरह की खेती पर नजर रखने के लिए एक ओर जहां खुफिया विभाग को निर्देश दिया गया है, वहीं दूसरी ओर सेटेलाइट के माध्यम से भी इस तरह की खेती वाले इलाके को चिह्न्ति किया जा रहा है. गिरिडीह जिले की बात करें तो वर्ष 2010 से अब तक भारी मात्र में अफीम की खेती को पुलिस ने नष्ट किया है. झारखंड व बिहार की सीमा पर स्थित गिरिडीह, जमुई व नवादा के कई गांवों में अफीम की खेती का खुलासा होता रहा है.
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