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आधी फीसदी आबादी भी 10 साल में नहीं बढ़ी!

विनोद पाठक गढ़वा : क्या किसी गांव की आबादी 10 साल में मात्र पांच ही बढ़ेगी. यदि 10 साल के अंदर न तो उस गांव में कोई महामारी या ऐसी आपदा न आयी हो, जिसमें बड़े पैमाने पर आबादी का नुकसान झेलना पड़ा हो अथवा गांव से बड़े पैमाने पर लोगों को पलायन न हुआ […]

विनोद पाठक

गढ़वा : क्या किसी गांव की आबादी 10 साल में मात्र पांच ही बढ़ेगी. यदि 10 साल के अंदर न तो उस गांव में कोई महामारी या ऐसी आपदा न आयी हो, जिसमें बड़े पैमाने पर आबादी का नुकसान झेलना पड़ा हो अथवा गांव से बड़े पैमाने पर लोगों को पलायन न हुआ हो, जबकि उस गांव की जनसंख्या पहले से हजार से ऊपर रही है. गढ़वा जिले के केतार प्रखंड का मेरौनी एक ऐसा ही गांव है जिसके साथ भारत जनगणना आयोग की जनगणना रिपोर्ट में ऐसा ही दिखाया गया है. इस गांव में वर्ष 1991 की जनसंख्या में आबादी 1435 थी, जबकि वर्ष 2001 की जनगणना में इस गांव की आबादी मात्र 1440 ही बतायी गयी है.

लोहरगड़ा पंचायत में आनेवाले इस गांव के अलावा शेष सभी गांवों की जनसंख्या वृद्धि सामान्य बतायी गयी, जो 20 से 25 प्रतिशत होनी चाहिए. लेकिन मेरौनी की आबादी की वृद्धि को कहीं छुपाया गया अथवा इसमें कहीं सांख्यिकी विभाग की त्रुटि हुई, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है. लेकिन मेरौनी के ग्रामीण इस बात को लेकर काफी आक्रोशित और आंदोलित हैं. उन्होंने अपने गांव के साथ जानबूझकर ऐसा करने का आरोप लगाया है. इसको लेकर मेरौनी के ग्रामीण पिछले कई साल से गढ़वा से लेकर दिल्ली तक दौड़ लगा रहे हैं. वे भारत सरकार की जनगणना में हुई त्रुटि में सुधार करते हुए अपने गांव के साथ न्याय करने की मांग कर रहे हैं. ग्रामीण जहां सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत गढ़वा से लेकर दिल्ली भारत सरकार से इसकी जानकारी मांगी है, वहीं संबंधित कार्यालय से लगातार इसको लेकर लड़ाई भी लड़ रहे हैं.

क्या है मामला : गढ़वा जिले के केतार प्रखंड के लोहरगड़ा पंचायत में लोहरगड़ा गांव के अलावा मेरौनी छेरहट, कोसडीह, गुडुर और हुरका गांव शामिल है. पंचायत में आबादी के हिसाब से मेरौनी छेरहट सबसे बड़े गांव के रूप में शुरू से रहा है. साल 2001 की जनगणना को छोड़कर भारत सरकार द्वारा अब तक कराये गये सभी जनगणना में इस मेरौनी छेरहट की जनसंख्या लोहरगाड़ा से अधिक रही है.

लेकिन 2001 की जनगणना में मेरौनी छेरहट की जनसंख्या से लोहरगाड़ा की जनसंख्या अधिक बता दी गयी है. इसका प्रभाव वर्ष 2010 के झारखंड में कराये गये त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पड़ा. इसको लेकर मेरौनी छेरहट के ग्रामीणों में काफी आक्रोश है. ग्रामीणों का कहना है कि जनगणना में हेराफेरी कर लोहरगड़ा गांव की आबादी अधिक दिखा गयी. इसका परिणाम हुआ कि मेरौनी छेरहट बड़ा गांव होने के बावजूद इस पंचायत का नाम जहां लोहरगाड़ा के नाम पर पड़ा, वहीं पंचायत मुख्यालय भी उनके गांव को बनने का सौभाग्य खो दिया. अपने गांव की ओर से मेरौनी छेरहट निवासी कस्तूरी तिवारी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत इसको लेकर जिला पंचायती राज कार्यालय गढ़वा से लेकर राज्य पंचायती राज्य मुख्यालय एवं भारत सरकार जनगणना आयोग तक न सिर्फ सरकार से जानकारी मांग रहे हैं, बल्कि सरकार से की गयी इस त्रुटि में सुधार के लिए गुहार लगा रहे हैं.

तार्किक नहीं है जनगणना रिपोर्ट : आखिर किसी गांव, कस्बे अथवा शहर में जनसंख्या की वृद्धि दर सामान्य तौर पर क्या पाया गया है. कम से कम दस साल में जनसंख्या में एक प्रतिशत भी वृद्धि नहीं होगा, यह सवाल अनुतरित रह जाता है. वर्ष 1991 की जनगणना में मेरौनी गांव की जनसंख्या 1435 तथा लोहरगड़ा गांव की जनसंख्या 1296 बतायी गयी. इसके बाद वर्ष 2001 की जनगणना में मेरौनी की जनसंख्या 1440 बतायी गयी, जबकि लोहरगाड़ा की जनसंख्या 1668 बतायी गयी है. गांव के लोग इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि दस साल में उनकी गांव की आबादी मात्र पांच ही कैसे बढ़ी.

जबकि इस 10 सालों के भीतर न तो गांव में कोई ऐसी महामारी की घटना घटी और न ही गांव से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन ही हुआ. तो फिर एक दशक में आबादी की मात्र पांच हुई वृद्धि कहीं से भी तार्किक नहीं है. जबकि इधर पंचायत का दूसरा लोहरगड़ा गांव की आबादी 1668 बतायी गयी, जो अपने से बड़े गांव मेरौनी से अधिक हो गयी. इसी तरह पंचायत के अन्य गांव में जनसंख्या वृद्धि दर भी प्राकृतिक रूप से वाजिब बतायी गयी ह़ै इसके आधार पर हुरका गांव की आबादी 1398, गुडुर की आबादी 448 तथा कोसडीह की आबादी 310 बतायी गयी़ 2001 की जनगणना में आबादी अधिक होने के आधार पर वर्ष 2010 में हुए पंचायत चुनाव में लोहरगड़ा के नाम से पंचायत गठन हुआ और पंचायत मुख्यालय भी वहीं बनने के लिए अनुशंसा हुई.

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