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11 साल से जिंदगी के लिए जंग लड़ रहा है नाबालिग

छह साल की उम्र में हो गया था एड्स पीड़िता के पिता ने एम्स दिल्ली के चिकित्सकों पर लगाया आरोप वर्ष 2006 से दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रही है मामले की सुनवाई गढ़वा : गढ़वा थाना के हरैया गांव का 17 वर्षीय एक लड़का पिछले दस सालों से रोज अपनी मौत का इंतजार कर […]

छह साल की उम्र में हो गया था एड्स
पीड़िता के पिता ने एम्स दिल्ली के चिकित्सकों पर लगाया आरोप
वर्ष 2006 से दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रही है मामले की सुनवाई
गढ़वा : गढ़वा थाना के हरैया गांव का 17 वर्षीय एक लड़का पिछले दस सालों से रोज अपनी मौत का इंतजार कर रहा है. एम्स (दिल्ली) के चिकित्सकों की लापरवाही से छह साल की उम्र में ही उसे एड्स हो गया था.
इस संबंध में लड़के के पिता ने एम्स के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में वर्ष 2006 में ही मामला दर्ज कराया था, जहां मामले की सुनवाई चल रही है. दस साल से इस मामले में लगातार संघर्ष कर रहे पीड़ित के पिता को उम्मीद है कि दिल्ली उच्च न्यायालय से उन्हें न्याय जरूर मिलेगा.
क्या है मामला
हरैया गांव के एक छह वर्षीय बच्च की 2005 में तबीयत खराब हुई थी. उसे पेट में दर्द हुआ और धीरे-धीरे पेट फूलने लगा. उसके पिता उसे रिम्स (रांची) में इलाज के लिए ले गये.
रिम्स में एक माह तक वह भरती रहा. इसके बाद उसे एम्स(दिल्ली) के लिए रेफर कर दिया गया. एम्स में तीन महीने तक उसका इलाज चला. इसके बाद भी उसमें कुछ सुधार नहीं हुआ, बल्कि स्थिति बिगड़ती गयी. बच्चे को खून की कमी होने लगी, तो चिकित्सकों ने उसे खून चढ़ाने की सलाह दी. इसके बाद एम्स में ही तीन यूनिट खून चढ़ाया गया.
बच्चे के पिता के मुताबिक, रक्त चढ़ाने के बाद स्थिति काफी बिगड़ गयी. पूरा शरीर सुस्त होने लगा. चिकित्सकों ने इसके बाद खून जांच कराया. 15 दिन बाद जब रिपोर्ट मिला, तो उन्हें बताया गया कि बच्चे को एचआइवी पॉजीटिव है. एम्स में लगातार स्थिति बिगड़ने के बाद चिकित्सकों ने उसे गांव ले जाने की सलाह दी. बाद में चिकित्सकों ने उसे जबरदस्ती एम्स से डिस्चार्ज कर दिया. इसके बाद उसने 25 जुलाई 2006 को एम्स की इस हरकत के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया. वह इस अपेक्षा के साथ लड़ रहा है कि उसे हरजाना मिले और किसी दूसरे मरीज के साथ ऐसा नहीं हो.
दवा नहीं देने पर स्थिति बिगड़ जाती है
लड़के के पिता ने कहा कि बेटे की यदि दवा बंद हो जाती है, तो स्थिति बिगड़ जाती है. यदि किसी कारणवश एक समय का भोजन नहीं मिलता है, तो भी उसका पेट फूलने लगता है.
चिकित्सक उसे पौष्टिक आहार देने को कहते हैं, लेकिन गरीबी के कारण वह इसमें सक्षम नहीं है. फिलहाल वह रांची से दवा लाकर पुत्र को दे रहा है. वह किसी भी तरह पुत्र को खुशहाल देखना चाहता है.
मां-बाप की भी हुई थी जांच
पीड़ित के मां-बाप की भी एम्स के चिकित्सकों ने जांच की थी कि कहीं उन्हें तो एड्स तो नहीं है, लेकिन कहीं कुछ नहीं निकला. उसे उम्मीद है कि दिल्ली उच्च न्यायालय से शीघ्र ही उसे इस मामले में न्याय मिलेगा.

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