गढ़वा के जाने माने हृदयरोग विशेषज्ञ थे
सुबह में हर्ट अटैक के बाद सदर अस्पताल में हुआ था इलाज
रांची ले जाने के दौरान मांडर के पास हुई मौत
22 वर्ष सरकारी सेवा देने के बाद 2012 में ले ली थी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति
गढ़वा : गढ़वा के जानेमाने चिकित्सक डॉ वीरेंद्र कुमार तिवारी(52 वर्ष) का शुक्रवार को निधन हो गया. डॉ तिवारी को सुबह चार बजे दिल का दौरा पड़ा. इसके बाद उन्हें तुरंत गढ़वा सदर अस्पताल लाया गया.
जहां डॉ जेपी सिंह, डॉ कुमार पंकज प्रभात व डॉ पवन अनिल ने संयुक्त रूप से उनका इलाज किया. प्रारंभिक जांच व दवा दिये जाने के बाद जब उनकी तबीयत में सुधार हुआ, तो चिकित्सकों ने उन्हें बेहतर इलाज के लिए रांची जाने की सलाह दी. रांची जाने के क्रम में मांडर के पास अचानक उनके सीने में पुन: दर्द हुआ, जहां उन्होंने एक इंजेक्शन लिया, लेेकिन कुछ ही क्षण बाद करीब 10.30 बजे उन्होंने दम तोड़ दिया. यद्यपि
इसके बाद भी उन्हें रांची मेडिका अस्पताल में ले जाकर भरती कराया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
दोनों बेटे डॉक्टर हैं : दिवंगत डॉ वीरेंद्र कुमार तिवारी के दो पुत्रों में सबसे बड़ा बेटा राजीव रंजन तिवारी एमडी करने के बाद दिल्ली में है. वहीं छोटा बेटा राहुल कुमार तिवारी भी दिल्ली से एमबीबीएस किया है. दोनों बेटे दिल्ली में ही रहते हैं. जबकि उनके भाई विनायक तिवारी पुणे में हैं. सूचना मिलने के बाद वे भी रांची पहुंच गये थे.
पहली बार हुआ था हर्ट अटैक
डॉ वीरेंद्र कुमार तिवारी गढ़वा शहर के जानेमाने और व्यस्त चिकित्सक थे. रंका रोड में उनका निजी क्लिनिक था. वर्ष 2012 में सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद वे इसी क्लिनिक में सेवा देते थे. उन्हें सिर्फ उच्च रक्तचाप की शिकायत थी, जिसका वे नियमित रूप से दवा लेते थे. लेकिन दिल का दौरा पहले कभी नहीं पड़ा था. 27 मई को पहली अटैक में ही उनकी मौत हो गयी.
रांची जाने के दौरान सामान्य स्थिति थी
डॉ वीरेंद्र तिवारी को जब सदर अस्पताल में लाया गया, उस समय वे सामान्य स्थिति में थे.
सामान्य स्थिति में ही उनकी डॉ कुमार पंकज प्रभात ने इसीजी की थी. जब प्रथम इसीजी में कुछ नहीं निकला, तो बहुत खुश थे. लेकिन जब दुबारा इसीजी हुआ, तो पता चला कि हर्ट अटैक हुआ है. फिर दवा दी गयी. इसके बाद उनको आराम मिला. लेकिन यह कह कर वे रांची जाने के लिये गये कि पूरा जांच करा ही लेते हैं. उनकी स्विफ्ट डिजाइर कार जयराम मेडिकल हॉल के प्रमोद तिवारी उर्फ गुड्डू चला कर ले जा रहे थे. बताया गया कि रास्तें में डॉ तिवारी सबसे बातचीत करते हुए नॉर्मल थे. लेकिन मांडर के पास अचानक उनको पुन: दर्द हुआ और इसके बाद स्थिति जो बिगड़ी, फिर उनको मौत ने आगोश में लेकर ही छोड़ा.
वर्ष 1990 में सरकारी सेवा में आये थे
पलामू जिले के हरिनामांड़ गांव निवासी वीरेंद्र तिवारी बचपन से ही पढ़ने में काफी मेधावी थे. डॉ तिवारी के पिता मार्केडेय तिवारी बोकारो सेल में पदस्थापित थे. घर परिवार से काफी संपन्न डॉ तिवारी इंटरमीडिएट जीव विज्ञान से करने के बाद उन्होंने रिम्स से एमबीबीएस व कार्डियोलॉजी में एमडी किये थे. इसके बाद वर्ष 1990 में उन्होंने पहली बार बिहार स्वास्थ्य सेवा में चिकित्सक के रूप में नगरऊंटारी रेफरल अस्पताल में बहाल हुए थे.
लगभग दो साल वहां सेवा देने के बाद वे गढ़वा यक्ष्मा केंद्र में आ गये थे. तीन साल से पांच साल तक यहां रहने के बाद उनका स्थानांतरण चतरा हो गया था. लेकिन वहां वे अनुकूल नहीं पाकर लंबी छुट्टी पर चले गये थे. वर्ष 2004 में वे पुन: गढ़वा सामुदायिक केंद्र प्रभारी के रूप में कार्य शुरू किया, जहां वर्ष 2009 तक कार्य किये. इसके बाद वे गढ़वा में ही जिला कुष्ठ निवारण पदाधिकारी बने. इस पद पर तीन साल तक कार्य करने के बाद वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लिये.
अन्य चिकित्सकों ने भी जताया शोक
डॉ वीरेंद्र तिवारी के निधन पर डॉ पवन अनिल, डॉ यूएन वर्णवाल, डॉ अरशद अंसारी आदि ने भी गहरा शोक व्यक्त किया है. सभी ने उनकी मौत पर आश्चर्य व्यक्त करते हुये कहा कि वे कल तक सामान्य स्थिति में अपने क्लिनिक में सेवा दिये थे. उनकी मौत की खबर पर उन लोगों को विश्वास हीं नहीं हो रहा है. उनका निधन चिकित्सीय जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है.