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अब भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे लोग
वर्ष 1991 में तत्कालीन बिहार सरकार ने गढ़वा जिला का गठन किया था. तबसे ढ़ाई दशक में गढ़वा में काफी बदलाव आये हैं. बावजूद यह स्वीकार करना होगा कि गढ़वा जिले का अपेक्षित विकास अभी तक नहीं हुआ है. अभी काफी आगे जाने के लिए रास्ता तय करना है. गढ़वा जिले के लोग आज भी […]
वर्ष 1991 में तत्कालीन बिहार सरकार ने गढ़वा जिला का गठन किया था. तबसे ढ़ाई दशक में गढ़वा में काफी बदलाव आये हैं. बावजूद यह स्वीकार करना होगा कि गढ़वा जिले का अपेक्षित विकास अभी तक नहीं हुआ है. अभी काफी आगे जाने के लिए रास्ता तय करना है. गढ़वा जिले के लोग आज भी पानी, बिजली, सड़क जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए तरस रहे हैं.
विनोद पाठक
गढ़वा : एक अप्रैल वर्ष 1991 में पलामू जिला से काटकर गढ़वा जिला का गठन किया गया था. बिहार की तत्कालीन लालू प्रसाद यादव सरकार ने यहां के लोगों की मांगों का सम्मान करते हुए गढ़वा जिला का गठन किया था. जिला बनने के बाद से अबतक इन बीते 25 वर्षों में इस जिला की तसवीर काफी बदल चुकी है. भौगोलिक स्थिति तो वही रही, लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, वैसे-वैसे प्रशासनिक दृष्टिकोण से प्रखंड एवं थाना का गठन किया गया.
लेकिन लोगों को मूलभूत सुविधा देने का ख्याल नहीं रखा गया. पानी और बिजली के लिए आज भी गढ़वावासी तरस रहे हैं.गौरतलब है कि तब पलामू जिले के (वर्तमान पलामू प्रमंडल) आठ प्रखंडों को काटकर गढ़वा जिला बनाया गया था. उस समय गढ़वा जिले की आबादी करीब सात लाख थी. इसके बाद दो बार हुई जनगणना के बाद अब गढ़वा जिला की आबादी करीब साढ़े तेरह लाख हो चुकी है. आबादी बढ़ने के साथ ही प्रखंड भी आठ से बढ़कर 20 हो गये. इसी तरह थाना, आपी और पिकेट की संख्या भी बढ़ते चली गयी. रमकंडा, बड़गड़, चिनिया, डंडई, रमना, विशुनपुरा, केतार, खरौंधी, कांडी, बरडीहा और डंडा जो उस समय प्रखंड भी नहीं थे, आज प्रखंड के साथ वहां थाना भी बन गया है.
संस्थानों के खुलने से पहचान बदली
जिला बनने के साथ ही यहां बीते ढ़ाई दशक में विभिन्न स्तर के संस्थानों के खुलने से शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा कहे जानेवाले गढ़वा जिला की पहचान ही बदल चुकी है. शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा कहे जानेवाला गढ़वा बीते कुछ वर्षों में शिक्षा का हब बनते जा रहा है. पहले जहां प्लस टू की पढ़ाई के बाद एकमात्र अंगीभूत कॉलेज एसएसजेएस नामधारी महाविद्यालय एवं निजी कॉलेज में एसपीडी कॉलेज की स्थापना हुई थी.
वहीं आज की तिथि में जिला मुख्यालय में कॉलेजों की संख्या बढ़ने के साथ ही लगभग सभी प्रखंडों में इंटर और स्नातक की पढ़ाई के लिए मान्यताप्राप्त महाविद्यालय खुल चुके हैं. इसके अलावा जिले में इस समय आधा दर्जन बीएड कॉलेज, डेंटल कॉलेज, एमएड डेंटल कॉलेज, नर्सिंग स्कूल, होमियोपैथिक कॉलेज जैसे तकनीकी संस्थान खुल चुके हैं. साथ ही केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय के खुलने के साथ यहां बीसीए और व्यावसायिक शिक्षा की भी पढ़ाई हो रही है.
गढ़वा शहर में आया बदलाव
जिला बनने के बाद विशेष तौर पर गढ़वा शहर में आबादी एवं सुविधा के दृष्टिकोण से काफी बदलाव हुए हैं. जहां गढ़वा शहर में जिला बनने के पूर्व एक विशेष पदाधिकारी हुआ करते थे, वहां अब नगर परिषद बन चुका है. वहीं जिला स्तर के सभी प्रशासनिक व तकनीकी पदाधिकारियों एवं न्यायपालिका के पदाधिकारियों के यहां बैठने एवं उनके कार्यालय और आवास के बन जाने से गढ़वा शहर का अप्रत्याशित बदलाव हुआ है.
जो परेशानियां रह गयीं
गढ़वा जिला बनने के बाद इसमें कोई दो राय नहीं है कि विकास नहीं हुए हैं. बावजूद पूरे 25 वर्षों के लंबे सफर को देखने के बाद महसूस होता है कि इतने दिनों में यहां जितना विकास होना चाहिए, नहीं हुआ है.
और तो और कई बुनियादी सवाल जो जिला बनने से पूर्व के थे, आज भी वह उसी तरह मुंह बाये खड़े हैं. चाहे पीने के पानी की समस्या हो, बिजली अथवा गढ़वा शहर के लिए बाइपास का निर्माण, इससे नागरिक काफी परेशान हैं. जिला बनने के पूर्व गढ़वा शहर में पीने के पानी की समस्या नहीं थी, लेकिन जब जिला बना और यहां की आबादी बढ़ने के साथ लोगों की जीवनशैली बदली, पानी की समस्या सबसे अहम समस्या में शामिल हो गयी. काफी वर्षों से गढ़वा शहर के लोग पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं.
यही स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों की है. सरकार की शुरू की गयी ग्रामीण पेयजलापूर्ति योजना अथवा प्रस्तावित पेयजलापूर्ति योजना दोनों ही शिथिल पड़ी हुई है. यही स्थिति बिजली को लेकर है. जिला बनने के ढ़ाई दशक बाद भी गढ़वा जिले में अलग ग्रिड नहीं बनने से बिजली रहने के बाद भी सभी क्षेत्र के लोगों को बिजली की सुविधा नहीं दी जा पा रही है. इससे भी गंभीर स्थिति है कि गढ़वा शहर में आज तक बाइपास नहीं बनना.
एनएच पर अवस्थित गढ़वा शहर के लिए बाइपास के अभाव में यहां के लोगों को काफी भयावह स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. आये दिन दुर्घटना और जाम का सामना कर पड़ रहा है. इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में जिलास्तर की सुविधा से अब भी लोग वंचित हैं.
स्थानीय अनुमंडलीय अस्पताल को सदर अस्पताल का दर्जा मिलने के बावजूद अभी सभी विभाग के विशेषज्ञों विशेषकर अच्छे सर्जन की पदस्थापना नहीं होने से लोगों को अभी भी छोटी-मोटी दुर्घटनाओं में अथवा बीमारियों में सीधा रांची ही जाना पड़ता है. यही स्थिति सिंचाई एवं रोजगार के क्षेत्र में ही है. आशा किया जाना चाहिए कि धीरे-धीरे इन सारी समस्याओं का समाधान आनेवाले दिनों में हो सकेगा और गढ़वावासियों को बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसना नहीं पड़ेगा.
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