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पढ़ने-लिखने की उम्र में दातुन बेचने की मजबूरी

नगरऊंटारी (गढ़वा) : अनुमंडल मुख्यालय में शिक्षा का अधिकार अधिनियम बेअसर साबित हो रहा है. विद्यालय के बिल्कुल करीब निवास करने के बाद भी बच्चे शिक्षा पाने से वंचित हैं. अनुमंडल मुख्यालय स्थित चेचरिया ग्राम के ओला की सोनम कुमारी (छह वर्ष) दतवन बेच कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने को विवश है. सोनम के […]

नगरऊंटारी (गढ़वा) : अनुमंडल मुख्यालय में शिक्षा का अधिकार अधिनियम बेअसर साबित हो रहा है. विद्यालय के बिल्कुल करीब निवास करने के बाद भी बच्चे शिक्षा पाने से वंचित हैं.

अनुमंडल मुख्यालय स्थित चेचरिया ग्राम के ओला की सोनम कुमारी (छह वर्ष) दतवन बेच कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने को विवश है. सोनम के छोटे कंधों पर दो छोटी बहन व एक भाई की भी जिम्मेवारी है.

सोनम का पिता मल्लु पासी बीमार रहते हैं. पहले सोनम की मां दतवन बेच कर परिवार चलाती थी, लेकिन पति के बीमार हो जाने के बाद वह घर में ही रह कर अपने पति की सेवा करती है तथा कुछ छोटे-मोटे काम कर लेती है.

एक मुठिया दातुन बेचने पर सोनम को मात्र दो रुपये ही मिलते हैं, जबकि उसे दो रुपये मुठिया दातुन गरबांध ग्राम के लकड़ी बेचने वालों से खरीदना पड़ता है. जब उससे पूछा गया कि उसे क्या फायदा होता है? इस पर उसने बताया कि वह लकड़हारों से जो दातुन का मुठिया खरीदती है, उसमें चार दातुन रहता है. खरीदने के बाद सोनम दातुन के मुठिया को खोल कर प्रत्येक से एक दातुन निकाल कर फिर से मुठिया बांधती व बेचती है.

एनएच 75 के किनारे स्थित पासी टोला से स्कूल की दूरी मुश्किल सौ गज है. जब सोनम से पूछा गया कि स्कूल क्यों नहीं जाती हो, तो उसने कहा- पापा नाम नाही लिखवईलन. यही स्थिति मुहल्ला के अन्य बच्चों की भी है. अजय पासी की बेटी पूजा कुमारी (सात वर्ष) भी दतवन बेचती है. मुहल्ला में जुआ चलते रहता है तथा पुरुष सदस्यों को शराब की भी लत है.

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