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ग…राजनीतिक दलों की प्रतष्ठिा दांव पर

ग…राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर दूसरे चरण का आज होना है मतदानप्रतिनिधि, गढ़वा. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दूसरे चरण में नगरउंटारी अनुमंडल अंतर्गत छह प्रखंडों में शनिवार को वोट पड़ेंगे. अनुमंडल के जिन प्रखंडों में वोट डाले जाने हैं, उनमें नगरऊंटारी, सगमा, धुरकी, भवनाथपुर, खरौंधी व केतार प्रखंड शामिल हैं. इन सभी प्रखंडों में […]

ग…राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर दूसरे चरण का आज होना है मतदानप्रतिनिधि, गढ़वा. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दूसरे चरण में नगरउंटारी अनुमंडल अंतर्गत छह प्रखंडों में शनिवार को वोट पड़ेंगे. अनुमंडल के जिन प्रखंडों में वोट डाले जाने हैं, उनमें नगरऊंटारी, सगमा, धुरकी, भवनाथपुर, खरौंधी व केतार प्रखंड शामिल हैं. इन सभी प्रखंडों में जिला परिषद सदस्य, मुखिया और बीडीसी के लिये होनेवाले मतदान को लेकर आज अंतिम समय तक प्रत्याशियों ने मतदातओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया. प्रत्याशियों के जनसंपर्क अभियान का मतदाताओं पर कितना असर पड़ा है, यह तो कल मतदान के समय ही पता चलेगा. लेकिन इस मतदान के साथ विभिन्न राजनीतिक दल के नेताओं, जनप्रतिनिधियों, पूर्व के जनप्रतिनिधियों व कार्यकर्ताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. चुनाव मैदान में जिला परिषद सदस्य, मुखिया और बीडीसी के चुनाव में बहुत जगह से राजनीतिक दल से जुड़े नेता और कार्यकर्ता स्वयं चुनाव लड़ रहे हैं अथवा अपने परिवार के सदस्य को खड़ा किये हुए हैं. कई जगह से विभिन्न दल के नेताओं ने अपने समर्थकों को खड़ा किया है. इनको चुनाव जिताना इन नेताओं की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है. इसके कारण राजनीतिक दल के आधार पर चुनाव नहीं होने के बावजूद परोक्ष रूप से हर पंचायत व प्रखंडों में खड़े एक-एक प्रत्याशियों को राजनीतिक दलों से समर्थन मिला हुआ है. इसके आधार पर चुनाव में किसी व्यक्ति विशेष की छवि के बजाय दल के आधार पर खेमेबंदी हो रही है. यद्यपि इसमें बहुत हद तक सफलता नहीं मिल पा रही है. यहां हर पंचायत व प्रखंडों में जिस तरह से मुखिया और जिप सदस्य के लिए प्रत्याशी खड़े हैं, उनमें एक-एक सीट से किसी दल से संबंध रखनेवाले एक के अधिक प्रत्याशी खड़े हो चुके हैं. इसके कारण दल के लोगों को खुलकर समर्थन कर पाना मुश्किल हो पा रहा है. यहां तक पंचायत चुनाव में कार्यकर्ता भी दल के आधार पर प्रत्याशियों का चयन करने की स्थिति में नहीं है. इसके कारण राजनीतिक दलों को संगठन के हिसाब से काफी परेशानी हो रही है. कई दलों में खींचातानी एवं बगावत की स्थिति बन चुकी है. अब देखना है कि चुनाव परिणाम के बाद राजनीतिक दल के लोग ऐसे कार्यकर्ताओं को किस प्रकार से संगठन से बचाकर रखते हैं.

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