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सात प्रखंड का कार्यालय नहीं

गढ़वा : झारखंड राज्य गठन के बाद गढ़वा जिले में 10 नये प्रखंड बने हैं. लेकिन वहां मूलभुत सुविधाएं 15 वषों के बाद भी उपलब्ध नहीं करायी जा सकी है. कई प्रखंड कार्यालय तो पंचायत भवन के दो-तीन कमरों से संचालित हो रहे हैं. वहां न तो अलग से कर्मचारी की नियुक्ति हुई है और […]

गढ़वा : झारखंड राज्य गठन के बाद गढ़वा जिले में 10 नये प्रखंड बने हैं. लेकिन वहां मूलभुत सुविधाएं 15 वषों के बाद भी उपलब्ध नहीं करायी जा सकी है. कई प्रखंड कार्यालय तो पंचायत भवन के दो-तीन कमरों से संचालित हो रहे हैं. वहां न तो अलग से कर्मचारी की नियुक्ति हुई है और न ही अन्य आधारभूत संरचनाएं उपलब्ध हैं.
भवन के अभाव में सरकारी दस्तावेज के रखरखाव में भी परेशानी उत्पन्न हो रही है. ग्रामीणों को पुरानीवाली स्थिति से ही दोचार होना पड़ रहा है. ग्रामीण अभी भी पूर्व के प्रखंड कार्यालय में ही जाकर अधिकारियों व कर्मचारियों से काम करा रहे हैं. जिले के बड़गड़, डंडा, केतार, खरौंधी, सगमा, विशुनपुरा, बरडीहा प्रखंड का अपना भवन नहीं हैं.
इनमें से अंतिम छह प्रखंडों के निर्माण के लिए राशि चार वर्ष पूर्व ही आवंटित कर दी गयी है, लेकिन हास्यास्पद स्थिति यह है कि भवन निर्माण की बात तो दूर अभी तक प्रखंड भवन के लिए भूमि ही उपलब्ध नहीं हो सकी है. प्रखंड बनने के बाद वित्तीय वर्ष 2010-2011 में पांच प्रखंडों के लिए 1165.75 लाख रुपये जिले को उपलब्ध कराये गये हैं. एक प्रखंड भवन का प्राक्कलन 233.15 लाख रुपये हैं.
क्रियान्वयन एजेंसी विशेष प्रमंडल को बनाया गया है. इनमें केतार, सगमा, बरडीहा एवं विशुनपुरा प्रखंड के लिए जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी हैं. जबकि खरौंधी एवं डंडा प्रखंड कार्यालय का निर्माण कार्य चार वर्ष बाद भी पूर्ण नहीं हो सके हैं. बड़गड़ प्रखंड कीघोषणा एक वर्ष पूर्व की गयी है, यहां प्रखंड कार्यालय निर्माण के लिए राशि उपलब्ध नहीं करायी गयी है.
भूमि अधिग्रहण पर विचार नहीं कर रहा प्रशासन
गैरमजरूआ जमीन नहीं मिलने या दान से जमीन नहीं मिलने के बाद भूमि अधिग्रहण किया जाता है. लेकिन जिला प्रशासन अभी तक इस दिशा में प्रयास नहीं कर रहा है. चार वर्ष बीतने के बाद अभी भी जिला प्रशासन अंचल अधिकारियों पर दबाव बना कर भूमि ढूंढने का प्रयास कर रहा है. ग्रामीणों की मानें, तो जमीन मिल पायेगी, इसकी उम्मीद काफी कम है.

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