।। विनोद पाठक ।।
गढ़वा : जो कभी गुलजार था, वहां आज वीरानी छायी हुई है. बात हो रही है जिला मुख्यालय स्थित सेव इंटरनेशनल के स्थायी पौधशाला की. यह कभी गढ़वा समेत आसपास के जिलों को हरियाली में बदलने का केंद्र था.
जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के सौजन्य से कृषि विभाग की करीब 2.50 हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 1995 में स्वयंसेवी संस्था सेव इंटरनेशनल को यहां स्थायी पौधशाला स्थापित करने की स्वीकृति प्रदान की गयी थी.
सेव इंटरनेशनल की सचिव सारिका सिंह ने इस बंजर भूमि को गुलजार करने का संकल्प लिया. उनकी मेहनत भी रंग लायी. कुछ वर्षो में उक्त भूमि पर हरे–भरे पौधे लहराने लगे. लोग पौधा लेने के लिए एक तरह से यहां निर्भर हो गये.
यह स्थिति एक दशक तक बनी रही. बाद में प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह स्थायी पौधशाला बंद हो गया.
10.58 लाख मिले थे : जिला ग्रामीण विकास अभिकरण गढ़वा द्वारा इस स्थायी पौधशाला हेतु दो बार में 10.58 लाख रुपये दिये गये थे. इसके बाद भी 2.60 लाख की स्वीकृति मिली थी, यद्यपि यह राशि संस्था को नहीं मिली.
प्रतिवर्ष 2.50 लाख पौधा बंटता था : यहां से प्रतिवर्ष करीब ढाई लाख पौधा बंटता था. इसमें सभी प्रकार के पौधे होते थे. इस वजह से गढ़वा सहित दूर–दराज के लोग बरसात के मौसम में यहां पौधा लेने आते थे.
नर्सरी उजड़ने के कारणों में जल संकट अहम : 2008 में बोर धंसने से नर्सरी में जल संकट हो गया. इसे दुरुस्त कराने का प्रयास किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली. संस्था ने अपनी राशि से नया बोर कराने में असमर्थता जतायी. पानी की कमी से नर्सरी उजड़ना शुरू हो गया.
पेड़ों की हो रही कटाई : स्थायी पौधशाला में नर्सरी के साथ–साथ इमारती, फलदार व औषधीय पौधे भी लगाये गये थे. मगर आज की तिथि में यह एक तरफ अतिक्रमण का शिकार हो रहा है, तो दूसरी ओर पेड़ों की कटाई निरंतर जारी है. पेड़ काटने वालों ने अपनी सुविधा के लिए यहां लगे तार के घेरों को नष्ट कर दिया है.
कई औषधीय पौधे अब भी मौजूद :स्थायी पौधशाला में अब भी इमारती, फलदार व औषधीय पौधे गुड़मार, सर्पगंधा, कालमेघ, गिलोय, सप्तपणि, आंवला, गटारण मौजूद हैं. मगर नर्सरी उजड़ने से इन पौधों के भी नष्ट होने की आशंका है.
असामाजिक तत्वों का लगता है जमावड़ा : अब इस नर्सरी में जाने पर सिर्फ मनचले युवक–युवतियां दिखते हैं. आसपास के लोगों का कहना है कि देखरेख के अभाव में यह असामाजिक तत्वों का अड्डा बन चुका है. जिससे आसपास का माहौल गंदा हो रहा है.4