गढ़वा : पंचायतीराज व्यवस्था लागू होने के बाद यहां 13 वें वित्त आयोग से संसाधन व आधारभूत संरचना के लिए 283285340 रुपये उपलब्ध कराये गये थे. लेकिन पिछले तीन वर्षो में मात्र 82124789 रुपये ही खर्च हुए हैं.
जबकि 201160581 रुपये यथावत पड़े हुए हैं. यह स्थिति पंचायत प्रतिनिधियों के आपसी मतभेद एवं कथित रूप से उनकी उदासीनता के कारण बनी हुई है. आश्चर्य की बात यह है कि पंचायतीराज व्यवस्था के तहत जिला की उच्च इकाई जिला परिषद में एक भी पैसा अब तक खर्च नहीं हुआ है. यहां जिला परिषद को 44070737 रुपये उपलब्ध कराये गये हैं. लेकिन यह पूरी की पूरी राशि यथावत पड़ी हुई है.
गौरतलब है कि जिला परिषद को 2011-12 में सामान्य आधारभूत संरचना मद में 15512435 तथा 2012-13 में 16819108 रुपये, विशेष क्षेत्रीय आधारभूत अनुदान मद में 2012-13 में 342501 रुपये, सामान्य क्षेत्र परफोरमेंस योजना में इसी वित्तीय वर्ष में 11058693 रुपये, तथा विशेष क्षेत्र परफोरमेंस योजना में 338000 रुपये मिले हैं. लेकिन सारी की सारी राशि बैंकों की शोभा बढ़ा रही है.
इसी तरह पंचायत समिति को सामान्य आधारभूत अनुदान के रूप में 2011-12 में 15512435 रुपये, 2012-13 में 16819108 रुपये मिले हैं. इनमें से पंचायत समिति ने मात्र 5943617 रुपये ही खर्च कर सकी है. जबकि विशेष क्षेत्रीय आधारभूत अनुदान मद में 2012-13 में 342501 रुपये प्राप्त हुआ.
लेकिन यह राशि खर्च नहीं हुई. सामान्य क्षेत्र परफोरमेंस अनुदान मद में पंचायत समिति को 11058693 रुपये मिले. यह राशि भी यथावत पड़ी हुई है. जबकि विशेष क्षेत्रीय परफोरमेंस अनुदान मद में पंचायत समिति को मिले 338000 रुपये भी खर्च नहीं हुए.
राशि खर्च करने में थोड़ी बहुत सफलता ग्राम पंचायत को मिली है. ग्राम पंचायत द्वारा कुल 157855300 रुपये में से 75602643 रुपये खर्च किये गये हैं. इसी तरह विशेष क्षेत्रीय आधारभूत अनुदान मद में 1898485 रुपये में से 578529 रुपये खर्च हुए. सामान्य क्षेत्र परफोरमेंस मद में प्राप्त 34376079 रुपये को खर्च कर दिया गया है.
जबकि विशेष क्षेत्र परफोरमेंस अनुदान मद की कुल 1014002 रुपये को खर्च कर दिया गया है. लेकिन आंकड़ों में तो ये राशि खर्च की गयी है, परंतु इसका उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रशासन को अभी तक नहीं भेजा गया है.
पंचायतीराज व्यवस्था के लागू होने के बाद इस बात की उम्मीद थी कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में तेजी आयेगी, लेकिन ये आंकड़े इस बात के गवाह है कि राशि तो पड़ी हुई है, लेकिन उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है. यह स्थिति पंचायतीराज व्यवस्था के तहत पंचायती प्रतिनिधियों के लिये चुनौती बन गयी है.
– देवदत्त चौबे –