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आठ से 10 घंटे ही मिल रही है बिजली

गढवा : गरमी व उमस में झुलस रही गढ़वा जिले के 13 लाख की आबादी सरकार के उदासीन रवैया के कारण बिजली की समस्याओं से जूझ रही है. इस भीषण गरमी में पिछले एक महीने से शहरी क्षेत्र में आठ से 10 घंटे और ग्रामीण इलाकों में तीन से पांच घंटे बिजली ही मिल पा […]

गढवा : गरमी व उमस में झुलस रही गढ़वा जिले के 13 लाख की आबादी सरकार के उदासीन रवैया के कारण बिजली की समस्याओं से जूझ रही है. इस भीषण गरमी में पिछले एक महीने से शहरी क्षेत्र में आठ से 10 घंटे और ग्रामीण इलाकों में तीन से पांच घंटे बिजली ही मिल पा रही है. इस ज्वलंत समस्याओं को लेकर सरकार के नुमाइंदे चुप्पी साधे हुए हैं और आमजन हलकान हो रहे हैं. बिजली की लगातार कमी के कारण लोगों के रहन-सहन, छात्रों की पढ़ाई, किसानों की खेती-बारी, कुटीर उद्योग व बिजली पर आधारित छोटे-मोटे व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है.
17 साल बाद भी दूसरे राज्यों पर निर्भर
झारखंड राज्य अलग बनने के बाद जो उम्मीदें लोगों में जगी थी वह अब भी अधूरी है. राज्य गठन के 17 साल बाद भी गढ़वा जिले में बिजली दूसरे राज्यों बिहार और उत्तर प्रदेश के भरोसे है. एकीकृत बिहार में बी मोड़ में एक पावर ग्रिड बना था, वही अब भी सहारा बना हुआ है. बीते इन वर्षों में सरकार के कई नुमाइंदे यहां आये और कोरे आश्वासन देते रहे. चाहे वे मंत्री रहे हो या मुख्यमंत्री, सभी ने झूठे सब्जबाग दिखाये. गढ़वा को हटिया से जोड़ने की कवायद लगभग चार-पांच साल से हो रही है. लेकिन अब तक नहीं जोड़ा जा सका है.
मात्र 12 मेगावाट मिल रही है बिजली
वर्तमान में गढवा जिले को मात्र 12 मेगावाट बिजली ही मिल पा रही है. जबकि सिर्फ जिला मुख्यालय व इसके आस-पास के इलाकों के लिए 40 मेगावाट बिजली की जरूरत है. बताते चलें कि सोननगर बिहार से 40 व रिहंद नगर उत्तर प्रदेश से 40 मेगावाट बिजली बी मोड़ ग्रिड के लिए करार है. इसमें से गरमी के दिनों में काफी कटौती की जाती है. सोननगर से मिलनेवाली बिजली रेलवे को तथा रिहंद से मिलनेवाली बिजली पलामू के कुछ हिस्सों व गढ़वा जिले को मिलती है. वर्तमान में रिहंद से मात्र 12 मेगावाट बिजली ही मिल रही है.
24 घंटे बिजली मिलने का मिला था आश्वासन
पिछले साल 2016 में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कांडी के सुंडीपुर में कोयल नदी पर पुल की शिलान्यास कार्यक्रम में घोषणा किये थे कि दिसंबर 2016 से गढ़वा को 24 घंटे बिजली मिलेगी. मुख्यमंत्री की इस घोषणा पर सभा में खूब ताली बजी थी. लेकिन दिसंबर 2016 के बजाय जून 2017 हो गया है. इसके बावजूद चौबीस घंटे बिजली मिलने की बात तो दूर, बिजली के पूर्व की स्थिति में सुधार भी नहीं किया जा सका है.
पलायन कर रहे हैं गढ़वा के व्यवसायी
किसी भी व्यवसाय के लिए बिजली का निरंतर रहना खासे मायने रखता है. लेकिन यहां बिजली के मामले में बिहार था तब भी और झारखंड बना तब भी, कोई परिवर्तन नहीं हुआ. राज्य और गढ़वा को जिला बनने के बाद व्यवसाय के क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है. लेकिन बिजली की लचर व्यवस्था के कारण गढ़वा के दर्जनों व्यवसायी समीपवर्ती राज्य छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर व बलरामपुर में जाकर शिफ्ट हो रहे हैं. वे वहीं पर अपना उद्योग धंधे चला रहे हैं.
ऊपर से आपूर्ति कम हो रही है : एसडीओ
बिजली की समस्याओं के बारे में पूछे जाने पर एसडीओ अमित कच्छप ने कहा कि वर्तमान में गढ़वा को ऊपर से काफी कम बिजली मिल रही है, इसके कारण परेशानी बढ़ी है.पर्याप्त बिजली मिलते ही इसमें सुधार होगा.

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