लीड. छले गये किसान, जेट्रोफा लगाये 10 साल बीते, अठन्नी की नहीं हुई आमदनी / उलटे जो फसल पहले होती थी उससे भी धोया हाथ/ मवेशी के चारे में भी नहीं आ रहा काम प्रतिनिधि, काठीकुण्डदुमका जिले के कई गांवों में जेट्रोफा की खेती के लिए किसानों की जमीन पर पौधे लगाये गये थे. उन्हें सपना दिखाया गया था कि बायो डीजल से उनकी तकदीर बदल जायेगी. तक़दीर तो नहीं बदली, जमीन की सूरत जरुर बदल गयी. मवेशी के लिए इन जमीनों पर जो चारा उपलब्ध होता था , वह भी ख़त्म हो गया. किसान एक दशक से इस इंतजार में है कि शायद कोई जेट्रोफा के फलों को लेने वाला आएगा. लेकिन ऐसा हो भी नहीं रहा. मायूस किसान आज परेशान हैं. ठगे जाने का उन्हें अहसास हो रहा है. दुःख इस बात का है कि छलावा हुआ भी तो सरकारी तंत्र से. काठीकुंड के चन्द्रपुरा गांव में कई एकड़ जमीन में लगे जेट्रोफा के पौधों से जमीन के मालिको को कोई लाभ नही मिल रहा है. अब तो हालात यह है कि सभी धीरे धीरे अपने जमीन से जेट्रोफा के पेड़ो को उखाड़ रहे है. जमीन मालिको से मिली जानकारी के अनुसार जेट्रोफा का प्लांटेशन वर्ष 2006 में आत्मा दुमका द्वारा कराया गया था. 5 एकड़ से ज्यादा जमीन गांव के कई ग्रामीणों ने इसके लिए दी थी. पर प्लांटेशन के आज लगभग 10 साल बीतने के बाद भी ग्रामीणों को आठ आने की आमदनी नही हुई है. प्लांटेशन के वक़्त जमीन लेने के लिए ग्रामीणों को यह बताया गया था की इस पेड़ के फल से डीज़ल निकलेगा,जिससे अपनी जमीन पर जेट्रोफा लगाने वाले अच्छी खासी आमदनी कर सकेंगे. अच्छी आमदनी प्राप्त कर अपना जीवन स्तर सुधारने के सपने लेकर ग्रामीणो ने अपनी जमीन पर प्लांटेशन की सहमती दे दी. पर इस प्लांटेशन से जमीन मालिको को अठन्नी तक आमदनी नही हुई है.गांव के ग्राम प्रधान मुन्ना, सालोमी टुडू , रूबेन हेम्ब्रम,माणिक हेम्ब्रम, सागर किस्कु, रुकमिणी मरांडी, सिरिल टुडू सहित कई ने अपनी जमीन पर जेट्रोफा के पौधे लगवाये है. रुकमिणी मरांडी ने कहा कि जमीन लेने के वक़्त कहा था कि इस पेड़ से डीजल व पेट्रोल का उत्पादन पेड़ के फलो से होगा. फलो को बेच अच्छी आमदनी होगी, पर अब तक एक रुपया इस पेड़ से नसीब नही हुआ है. सालो से जमीन बेकार पड़ी है. सिरिल टुडू ने भी अपनी जमीन पर जेट्रोफा लगवाया है,पर सिरिल के मुताबिक इस प्लांटेशन के कारण 10 साल से जमीन का उपयोग अन्य कृषि कार्यो में नही हो पा रहा है. इसी तरह अन्य जमीन मालिक भी इस प्लांटेशन के कारण अपनी जमीन पर दूसरे फसल नही लगा पा रहे है. जेट्रोफा लगाने के पूर्व जमीन पर कुर्थी, सरसो, अरहर सहित अन्य वैसे फसल लगाते थे, जिन्हें कम सिंचाई की आवश्यकता होती थी. उन फसलो को बेच वे अच्छी आमदनी भी कर लेते थे और अपने लिए उपयोग भी कर लेते थे, पर जेट्रोफा लगने से कुछ फायदा तो नही हुआ, उलट जमीन के फंस जाने से अन्य फसल भी नही लगा पा रहे है. अब स्थिति ऐसी हो गयी है कि जेट्रोफा के पेड़ो की जड़े जमीन के काफी अंदर तक चली गयी है और जमीन के मालिको को उसे उखाड़ने में भी काफी परेशानी हो रही है. उन्होंने कहा कि जब इस पौधे से कोई फायदा ही नही मिल पा रहा है तो इसे हटा देंगे और फिर कोई फसल या तसर का उत्पादन इस जमीन पर करेंगे.जेट्रोफा से संबंधित तथ्यचंद्रपुरा गांव के ही रूबेन मुर्मू ने भी अपनी जमीन पर जेट्रोफा के पौधे लगवाये है. रूबेन ने बताया कि जेट्रोफा के पौधे से अभी तक किसी प्रकार का कोई लाभ नही मिला है, जबकि अभी कुछ सालो से ही अपने दूसरे जमीन पर तसर पालन कर रहा हूं. रूबेन अब तक तसर की 15000 गोटिया पेड़ से काट चूका है. बताया की उम्मीद है कि और 15000 गोटिया पेड़ो से निकलेगी. 1 गोटी या 1 पीस की कीमत 2 रुपये 50 पैसे मिलते है. इस तरह तसर के इस फसल में रूबेन अपने एक साजेदार के साथ तसर पालन कर अच्छी आमदनी कर पा रहा है. वही दूसरे जमीन से उसे फूटी कौड़ी तक आमदनी नही हो पा रही है. फोटो30 काठीकुंड जेट्रोफा 1 से 5 रूबेन मुर्मू और उसके तसर अड्डाबाड़ी में तसर की गोटिया गिनता रूबेन
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