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यादगार के रूप में मनाये दिवाली दीपावली प्रकाश एवं आनंद का पर्व क्या करें * मिट्टी के दीये जलायें * इस पर्व पर भाईचारे का संबंध एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण बनायें*यह पर्व खुशी मनाने का है, स्वयं के साथ औरों को खुशी मनाने दें* पड़ोसी की सुविधा को ध्यान में रखकर बम, पटाखे छोड़ें* पुरानी बातों […]

यादगार के रूप में मनाये दिवाली दीपावली प्रकाश एवं आनंद का पर्व क्या करें * मिट्टी के दीये जलायें * इस पर्व पर भाईचारे का संबंध एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण बनायें*यह पर्व खुशी मनाने का है, स्वयं के साथ औरों को खुशी मनाने दें* पड़ोसी की सुविधा को ध्यान में रखकर बम, पटाखे छोड़ें* पुरानी बातों को भूलकर एक दूसरे से गले मिले और समरसता बनाये रखें*भारतीय संस्कृति को अपनाते हुए बड़े बुजुर्गों को प्रणाम कर आशीर्वाद लें* वातावरण को ध्वनि एवं वायु प्रदूषण से मुक्त रखें.*दीपावली में बिजली पर ही निर्भर नहीं रहें* प्रतियोगिता की होड़ में पसीने की कमाई, हम भी किसी से कम नहीं की भावना को त्याग कर नाजायज खर्च न करें*दीपावली पर बच्चों, बुजुर्गो, महिलाओं को परेशानी ना हो इसके लिए बम पटाखें का प्रयोग ना करें. क्यों माना जाता है स्वास्तिक को पुण्य का प्रतीक ?स्वास्तिक शब्द सु+अस्ति+क से बना है. यानी शुभ करने वाला. यह चिन्ह विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में मिलता है. इसमें चारों दिशाओं में जाती रेखायें होती हैं, जो दाईं ओर मुड़ जाती है. हिंदुओं के व्रतों, पर्वो, त्योहारों एवं मांगलिक अवसरों पर कुमकुम से स्वास्तिक अंकित किया जाता है. इसका सामान्य अर्थ शुभ मंगल एवं कल्याण करने वाला है. सिंधु घाटी की सभ्यता में ऐसे स्वास्तिक चिन्ह मिले हैं. स्वास्तिक श्री गणोश का प्रभी है. इस प्रकार सभी मांगलिक कार्यो में सबसे पहले बनाया जाता है. इसे रसोई घर, तिजोरी, भंडार घर, प्रवेश द्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल एवं कार्यालय हर जगह बनाया जाता है. भारतीय संस्कृति में लाल रंग का महत्व है और इसलिये इसे सिंदुर, रोली या कुमकुम से बनाया जाता है. धन चिन्ह बनाकर उसकी चारों भुजाओं के कोने से समकोण बनाने वाली एक रेखा दाहिने ओर खिंचने से स्वास्तिक बन जाता है. रेखा खिंचने का कार्य ऊपरी भुजा से प्रारंभ करना चाहिए.

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