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144 गांव समा गये, 3000 से अधिक परिवार बेघर ; 24000 एकड़ जमीन चली गयी, पर 64 साल बाद भी पानी को तरस रहा संताल

दुमका : झारखंड के दुमका जिले के मसानजोर में मयुराक्षी नदी पर बने डैम का लाभ लेने के लिए संताल परगना के लोग पिछले 64 सालों से संघर्ष कर रहे हैं. पर पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल निर्माण के दौरान तय की गयी शर्तों का उल्लंघन कर यहां के लोगों का हक मार रहा है. और […]

दुमका : झारखंड के दुमका जिले के मसानजोर में मयुराक्षी नदी पर बने डैम का लाभ लेने के लिए संताल परगना के लोग पिछले 64 सालों से संघर्ष कर रहे हैं. पर पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल निर्माण के दौरान तय की गयी शर्तों का उल्लंघन कर यहां के लोगों का हक मार रहा है. और तो और, झारखंड में स्थिति इस विशाल संपत्ति पर कब्जा जमाये बैठा है.

पश्चिम बंगाल की सीमा से करीब 18 किमी अंदर झारखंड के दुमका जिले के मसानजोर में स्थिति इस डैम से पश्चिम बंगाल के वीरभूम व मुर्शिदाबाद जिले को पांच लाख साठ हजार एकड़ जमीन सिंचित करने का लक्ष्य था. पर, इस डैम से वर्तमान में झारखंड के दुमका जिले के मात्र 18 हजार एकड़ खेत ही सिंचित हो पा रहे हैं.

दुमका प्रखंड के दरबारपुर व रानीबहाल पंचायत के छह गांव और रानीश्वर प्रखंड की आठ पंचायत के कुछ खेतों में ही पानी आ पा रहा है. जिस वक्त सबसे अधिक पटवन की जरूरत होती है, उस समय संताल परगना का यह इलाका सिंचाई सुविधा से वंचित हो जाता है, जिसकी गोद में पानी समाया हुआ है.

हजारों लोगों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी : मसानजोर डैम के निर्माण में झारखंड के दुमका जिले के दुमका, जामा, मसलिया व शिकारीपाड़ा प्रखंड के 144 गांव खत्म हो गये. इन गांवों की करीब 19000 एकड़ जमीन पानी में चली गयी. इनमें 12000 एकड़ खेती योग्य जमीन थी. इसके अलावा करीब 5000 एकड़ बैहर जमीन भी डैम में गयी थी. करीब तीन हजार से अधिक घर हटा दिये गये. हजारों लोगों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी, इसके बाद भी झारखंड के लोग इस पर अपना अधिकार नहीं जता पा रहे हैं.

डैम में बनी हाइड्रेल परियोजना से 04 मेगावाट बिजलीका उत्पादन होता है. यही नहीं, बंगाल के वीरभूम जिले के मुख्यालय सिउड़ी शहर के पास तिलपाड़ा बराज का निर्माण किया है. बराज से बायीं ओर निकाली गयी नहर का नाम है मयुराक्षी द्वारका नहर. दायीं ओर निकाली गयी नहर का नाम मयुराक्षी बक्रेश्वर मुख्य नहर है. तिलपाड़ा बराज से बक्रेश्वर थर्मल पावर स्टेशन को भी पानी मिलता है. यहां से कुल 1050 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. पर आज भी डैम के आसपास का इलाका अंधेरे में है.

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