दुमका : कभी गलत किया, उसका पछतावा है, पर जिंदगी नहीं रुकती, ये बता रहे हैं कैदी. वह भी पढ़-लिख कर. दुमका केंद्रीय कारा में कैद कुख्यात व गंभीर अपराध के बंदी यहां आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. ऐसे बंदी जो मैट्रिक भी नहीं कर पाये थे, स्नातक व पारा स्नातक तक की डिग्री हासिल कर रहे हैं. कई ने कंप्यूटर की शिक्षा भी ग्रहण की.
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सलाखों में रह 33 बंदियों ने हासिल की बैचलर की डिग्री
दुमका : कभी गलत किया, उसका पछतावा है, पर जिंदगी नहीं रुकती, ये बता रहे हैं कैदी. वह भी पढ़-लिख कर. दुमका केंद्रीय कारा में कैद कुख्यात व गंभीर अपराध के बंदी यहां आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. ऐसे बंदी जो मैट्रिक भी नहीं कर पाये थे, स्नातक व पारा स्नातक तक की डिग्री […]
अभी भी नये बंदी अपनी पढ़ाई जारी रखे हैं. जेल में स्थापित इग्नू सेंटर द्वारा सबसे ज्यादा बीपीपी की पढ़ाई की जाती है. अगर किसी ने पहले कोई पढ़ाई नहीं की, तो इग्नू से स्नातक या अन्य कोई डिग्री हासिल करने की चाह रखने वाले पहले बीपीपी का कोर्स करते हैं. अभी तक दुमका सेंट्रल जेल से 192 बंदियों ने बीपीपी का कोर्स पूरा किया है, जबकि 33 बंदी ने सेंट्रल जेल में रहकर स्नातक की डिग्री हासिल की. 29 बंदी एडमिशन के बाद पढ़ाई कर रहे हैं. यह ऐसे बंदी है, जिसमें कुछ आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. कुछ अंडर ट्रायल में हैं.
बीपीपी से एमए तक मिलती है मुफ्त शिक्षा : दुमका सेंट्रल जेल स्थित इग्नू अध्ययन केंद्र से पढ़ाई करनेवाले कैदियों को किसी प्रकार की शुल्क नहीं देनी पड़ती है. बीपीपी से लेकर एमए तक की पढ़ाई मुफ्त होगी.
एक अच्छी बात यह भी है कि पढ़ाई के दौरान यदि कैदी जेल से बाहर आ जाते हैं, तो उन्हें देश के किसी भी इग्नू सेंटर पर आगे पढ़ने की सुविधा मिलेगी. इसके लिए इग्नू द्वारा उन्हें प्रमाण-पत्र जारी किया जायेगा. इग्नू की इस पहल से कैदियों को अपने पैरों पर खड़े होने और अपराध छोड़कर समाज में सिर उठाकर चलने में सहयोग मिल रहा है.
340 बंदियों ने ग्रहण की कंप्यूटर की शिक्षा
जेल में ही रहकर 340 बंदियों ने कंप्यूटर की शिक्षा पा ली है. इसके लिए उम्र की कोई बाधा नहीं है. पढ़ाई की इच्छा रखनेवाले कैदियों को जेल प्रशासन और इग्नू मिल कर नि:शुल्क में किताब, कॉपी व अन्य सामग्री उपलब्ध करा रहीं हैं. जेल की लाइब्रेरी को भी समृद्ध किया गया है, ताकि बंदी हर तरह का ज्ञान हासिल कर सकें. उनके अंदर हुनर विकसित करने के लिए कपड़ा बुनाई, सिलाई, साबुन व फेनाइल बनाने व प्रिंटिंग प्रेस का काम सिखाया जाता है. खेतीबारी व सब्जी उत्पादन के तौर तरीके भी बताये जाते हैं. जेल प्रशासन ने करीब 416 बंदियों को साक्षर किया गया.
हुनर विकसित कर कई बंदी अपनी सोच को भी बदल रहे हैं. कई बंदी जेल से बाहर आकर जेल में सीखे हुनर से रोजगार के जरिये बेहतर जीवन जी रहे हैं. जेल प्रशासन भी ऐसे बंदियों को पढ़ने-सीखने के लिए प्रेरित करता रहा है. क्योंकि पढ़ने, लिखने और सीखने की कोई उम्र नहीं होती.
भागीरथ कार्जी, जेल अधीक्षक, दुमका सेंट्रल जेल
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