मसानजोर डैम : जमीन देकर दर-दर की ठोकरें खा रहे विस्थापित,चार प्रखंड के 144 मौजा के हजारों परिवार उजड़े
झारखंड (पूर्व में बिहार) की जमीन पर बने मयुराक्षी नदी पर मसानजोर डैम का लाभ पश्चिम बंगाल को मिलता रहा है, लेकिन इस डैम की नींव रखे जाने से लेकर अब तक हर तरह से दंश दुमका जिला ही झेलता रहा है.
जब डैम का निर्माण हुआ था, चार प्रखंड के 144 मौजा के हजारों परिवार इस डैम के निर्माण से विस्थापित हुए थे. आज तक इन विस्थापितों को न तो मुआवजे की पूरी रकम ही मिल सकी, न तो अपनी जमीन देने के बाद उचित पटवन व बिजली का लाभ ही मिल पाया. आज भी अधिकतर विस्थापित परिवार दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं. उनकी खेती-बाड़ी तो गयी ही थी, जिन इलाकों में बसाया भी गया, वहां आज पटवन का लाभ भी वे भरपूर नहीं ले पा रहे हैं.
वादा किया था बसायेंगे नया शहर
इस डैम में जलप्रवाह एक नवंबर 1955 में कनाडा के विदेश विभाग के मंत्री एल पियरसन के हाथों शुरू हुआ था. मसानजोर डैम का संपूर्ण नियंत्रण तब से पश्चिम बंगाल सरकार के हाथ में है. इसकी पनबिजली केंद्र भी पश्चिम बंगाल राज्य विद्युत बोर्ड के अधीन है तथा वहीं से बिजली की दुमका और वीरभूम जिले के बीच वितरण की व्यवस्था हुआ करती थी.
16 दिसंबर 1956 जब पनबिजली केंद्र चालू हुआ, उस वक्त विस्थापितों से कहा गया था डैम से जो भी बिजली का उत्पादन होगा, उससे दो छोटे शहर बसाये जायेंगे. रैयतों को यह दिलासा भी दिया गया था कि दुमका शहर व आसपास के गांवों को बिजली भी मिलेगी. तब बिजली की मशीनों से सूती और रेशम कपड़े की बुनाई हो सकेगी.
धान कूटने-गेहूं पीसने का वे काम कर पायेंगे. एकरारनामे के तहत तो 40 सालों तक मसानजोर से रानीश्वर और दुमका शहर को बिजली मिलती रही, लेकिन 1995 के बाद दुमका को बिजली की आपूर्ति देना बंद कर दिया गया. बताया जाता है कि एकरारनामे की शर्तो के अनुसार पनबिजली केंद्र से दुमका को पीक पीरियड में 4.5 मेगावाट और लीन पीरियड में 2.5 मेगावाट विद्युत की आपूर्ति किया जाना था
डैम बनने से ये सभी गांव हुए थे प्रभावित
तुलाडीह, धतीकबोना, दरबारपुर, बाजार रहमतगंज, भांगाबांध, जगुडीह, सालूकडूबा,लकड़कोंदा, बेलबुनी, दोंदिया, बेदिया, केशियाबहाल, कोलारकोंदा, तुलारायडीह, करमातांड, सुग्गापहाड़ी, केंदबाद, पांजनपहाड़ी, गोपालनगर, हारोरायडीह, बड़ानार, केंदपहाड़ी, हरणाकुंडी, पारसिमला, जीतपुर, कठलडीहा, खुशदिलपुर, तसरकट्टा, हुसेनपुर, कालाबगान, शहरघाटी, कठनारा, सुखजोरा, बालजोरी, बड़दाहा, पलासबोना, घाघरा, मकरमपुर, दासोरायडीह, कुकुरतोपा, विजयपुर, सीधाउंगाल, सकरीगली, झाझापाड़ा,सिरसा, विजयपुर, चिगलपहाड़ी, बांदो, शहरघाटी, चापुड़िया, जरकाही, नीमबनी, बेहराकुंडी, राजपाड़ा, बांक, लखीकुंडी, पालोजोरी, धुनियाडीह, रांगा, मसानजोर, बास्कीचक, गंध्रकपुर, महुआडंगाल, राजमहल, सीतासाल, पलमा, गुलामडीह, मुड़ायाम, मोरटंगा, चोरकट्टा, डीमजोरी, नोनी, हथवारी, बाघाकोल, सोनहारा, कृतनचक, डामरी, संग्रामपुरहिजला, सीताकोहबर, बेलुडाबर, उपरबहाल.
कनाडा के वित्तीय सहयोग से बना था डैम
कनाडा सरकार की मदद से ही मयुराक्षी नदी पर मसानजोर डैम बना था. इसकी नींव का पहला पत्थर प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद ने रखा था. देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद ने इसकी नींव 25 फरवरी 1951 को रखी थी. डैम के निर्माण में कंक्रीट का पहला खेप मार्च 1952 में डाला गया था, जबकि अंतिम रूप से निर्माण कार्य में लगे मशीनों का उपयोग मई 1955 में हुआ था. इस डैम का उद्देश्य सिंचाई के साधन विकसित करना और पनबिजली का उत्पादन करना था.
डैम से झारखंड के किसानों को जितना लाभ मिलता है, उससे कहीं अधिक लाभ पश्चिम बंगाल ही लेता रहा है. विस्थापन और वनों की कटाई से हुए पर्यावरण नुकसान की भरपायी अब तक नहीं हुई है. डैम का तटबंध भी बालू से भर गया है, जिससे कारण इससे जुड़ी दुमका जिले की सारी नदियां छिछली हो गयी हैं और सामान्य से थोड़ी अधिक या लगातार वर्षा होने में नदियों में बाढ़ आ जाती है और नदी तट के खेतों-गांवों में पानी भर जाता है.
इस डैम की जल संधारण क्षमता में भी कमी आयी है तथा इसके टूटने की आशंका भी बन गयी है. हाल के वर्षों में ही में दुमका जिला प्रशासन ने वीरभूम जिला प्रशासन को पत्र भेज कर डैम के जल संग्रहण की अधिकतम सीमा (खतरे के निशान) को दस फीट घटाने को भी कह चुकी है. डैम का रख-रखाव भी पहले की तरह नहीं है.
हाल के दिनों में क्यों सुर्खियों में आया मसानजोर डैम
दुमका : मसानजोर डैम इन दिनों चर्चा में है और झारखंड-पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हलचल का केंद्र बना हुआ है. दरअसल हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल के सिंचाई विभाग ने इस डैम का रंग-रोगन पश्चिम बंगाल के थीम पर आसमानी रंग से रंगवाना शुरु किया था.
बंगाल सरकार के इस कदम ने दुमका के कुछ स्थानीय लोगों व भाजपाइयों की भावना को भड़काने का काम किया. इससे पहले दुमका-सिउड़ी रोड पर पथ निर्माण विभाग दुमका के पथ के पर झाझापाड़ा के पास और मसानजोर थाना के समीप दो गेट लगवाये गये थे. झारखंड की सड़क पर ये दोनो गेट बंगाल सरकार ने लगवाये और लिखवा डाला वेलकम टू मसानजोर डैम…पश्चिम बंगाल सरकार, थैंक्स फॉर विजिटिंग मसानजोर डैम, पश्चिम बंगाल सरकार..लिखा गया था.
साल-डेढ़ साल पहले लगाये गये इस बोर्ड पर भी उतनी आपत्ति नहीं जतायी गयी थी, लेकिन डैम के रंग-रोगन ने आग में घी डालने का काम किया. जिसके बाद बंगाल सरकार के द्वारा कराये गये इन दोनो कामों को लेकर भाजपाइयों ने मुखर होकर ममता सरकार के विरोध में आंदोलन का रुप अख्तियार कर लिया. पहले डैम के रंगाई-पुताई का काम बंद कराया, उसके बाद झारखंड की सड़क पर बंगाल सरकार के लोगो व बंगाल सरकार के नाम को झारखंड सरकार के लोगो व झारखंड सरकार के नाम से ढक डाला था.
इस कृत्य के बाद पश्चिम बंगाल की पुलिस ने मसानजोर के धाजापाड़ा के पास पहुंच झारखंड सरकार के लोगो को उखाड़ दिया था और इस कार्रवाई की पूरी रिकार्डिंग वे कर रहे थे. मामले में एक युवक ने जब विरोध किया था, तब बंगाल पुलिस को वहां से खिसक जाना पड़ा था. हालांकि देर रात तक सीमा क्षेत्र में तनाव की स्थिति रही थी. जहां वीरभूम की पुलिस अलर्ट मोड में थी, वहीं दुमका पुलिस भी बेहद सक्रिय थी. हालांकि बंगाल की पुलिस द्वारा लोगो उखाड़े जाने के दूसरे ही दिन भाजपाइयों ने फिर से लोगो चिपका दिया था.
बंगाल पुलिस ने दुमका जिले के सीमा पर भाजपा कार्यकर्ता के घर से उतरवा दिया था झंडा : पश्चिम बंगाल की पुलिस और ममता सरकार की आलोचना उस वक्त भी भाजपाइयों ने खूब की थी, जब मई महीने में बंगाल में पंचायत चुनाव होने थे. वहां भाजपा कार्यकर्ताओं-समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा था.
बंगाल की पुलिस ने झारखंड की सीमा पर रानीश्वर प्रखंड के महेशखाला में एक भाजपा कार्यकर्ता के घर से भाजपा का झंडा उतरवा दिया था और डराने-धमकाने का काम किया था, जिसके बाद भाजपा नेत्री व स्थानीय विधायक के रुप में समाज कल्याण मंत्री डॉ लोइस मरांडी ने वहां सभा की थी. उस वक्त भी लोइस ने ममता सरकार को चेताया था कि वह झारखंड को और भाजपा कायकर्ताओं को कमजोर न समझे.