सरैयाहाट में लगती है आग, तो 60 किमी दूर जाता है दमकल वाहन
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चार दमकल के भरोसे 13.21 लाख लोग
सरैयाहाट में लगती है आग, तो 60 किमी दूर जाता है दमकल वाहन कई प्रखंडों व थानों में नहीं है पानी भरने के लिए हाइडेंट की व्यवस्था दुमका : 3716 वर्ग किलोमीटर में फैले तथा 2011 की जनगणना के मुताबिक 13.21 लाख की आबादी वाले दुमका जिले में फायर फाइटिंग की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. […]
कई प्रखंडों व थानों में नहीं है पानी भरने के लिए हाइडेंट की व्यवस्था
दुमका : 3716 वर्ग किलोमीटर में फैले तथा 2011 की जनगणना के मुताबिक 13.21 लाख की आबादी वाले दुमका जिले में फायर फाइटिंग की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. कहने को तो अभी वर्तमान में तीन बड़े व एक छोटा दमकल चालू हालत में है. लेकिन तीन दमकल खराब भी पड़े हुए हैं. दो वाहन तो 2011-12 से ही खराब हैं. न तो मरम्मत हुई है. न ही उसे कबाड़ ही घोषित किया गया है. दरअसल, दुमका से कुछेक प्रखंड व थाना क्षेत्र काफी अधिक दूरी पर हैं. ऐसे में जब तक अग्निशमन विभाग को अगलगी की जानकारी मिलती है और वाहन लेकर वह गंतव्य के लिए कूच करता है. तब तक आग भयावह रूप धारण कर लेती है.
कई बार तो स्थिति ऐसे होती है कि सबकुछ खाक होकर खुद ही ग्रामीणों द्वारा आग बुझा ली जाती है. दुमका से सरैयाहाट के कई इलाके जहां 60-65 किलोमीटर की दूरी पर हैं, वहीं गोपीकांदर, रानीश्वर, शिकारीपाड़ा के अलावा जरमुंडी-मसलिया के कई इलाके भी 40-50 किलोमीटर से कम दूर नहीं होते. दुखद तो तब होती है, जब दकमल पानी लेकर आग बुझाने के लिए रवाना होता है, लेकिन पानी लेने के लिए उसे फिर वापस लौटना पड़ता है. अधिकांश थाना क्षेत्रों में ऐसे हाइडेंट नहीं होते, जहां दमकल में दस हजार लीटर पानी भरा जा सके.
क्या कहते हैं प्रभारी
फायरमैन की कमी है. एक साथ सभी गाड़ी को निकलना होता है, तब दिक्कत होती है. पानी की भी इस इलाके में समस्या है. दुमका मुख्यालय में तो पानी उपलब्ध है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अगजनी के दौरान पानी खात्म होने पर वापस दुमका आना पड़ता है. नदी तालाब ढूंढ़ना होता है. हर थाने में हाइडेंट की व्यवस्था होनी चाहिए. शेड पर्याप्त नहीं रहने से भी परेशानी होती है.
आलोक कुमार पांडेय, इंचार्ज, फायर स्टेशन, दुमका
बासुकिनाथ में फायर स्टेशन का प्रस्ताव भी शिथिल
बासुकिनाथ जैसे महत्वपूर्ण विश्व प्रसिद्ध धार्मिक जगह में फायर स्टेशन की स्थापना के लिए राज्य सरकार ने निर्णय लिया था. पर इस प्रस्ताव का फलाफल अब तक नहीं निकल पाया है. दो महीने बाद विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला भी शुरू होगा. उस वक्त वहां दुमका से ही स्थायी रूप से महीने-दो महीने के लिए वाहन भेजा जायेगा. उल्लेखनीय है कि बासुकिनाथ में नवंबर महीने में भीषण अग्नि कांड हुआ था. उसमें दो दर्जन दुकानों में लगभग दो करोड़ रुपये के सामान जल कर खाक हो गये थे. उसी वक्त सरकार ने वहां फायर स्टेशन स्थापित करने का एलान किया था.
यूनिट के अनुरूप कम हैं कर्मी
कायदे से प्रत्येक अग्निशमन यूनिट में एक प्रधान संचालक, एक चालक व चार फायरमैन की ड्यूटी रहती है. दुमका में एक प्रधान संचालक व सात फायर मैन पदस्थापित हैं. दुमका में कायदे से दो बड़ी गाड़ी चालू हालत में है. जबकि एक ऑन मेनटेनेंस है. दुखद पहलू एक यह भी है कि पिछले 30 साल में महत्वपूर्ण विभाग में केवल दो बार बहाली हुई और उसमें भी पद रिक्त ही रह गये थे. पूरे राज्य में कहीं भी फायर स्टेशन ऑफिसर पदस्थापित नहीं है. यह पद खाली पड़ा हुआ है. प्रभारियों के भरोसे काम चलाया जा रहा है.
बड़ी घटना होने पर लेनी पड़ती है पड़ोसी जिले की मदद
दुमका में हाल के दशक में अगलगी की दो-तीन बड़ी घटनाएं हुई थी. उस वक्त प्रशासन को देवघर-गोड्डा से भी दकमल की गाड़ियां मंगानी पड़ी थी. वक्त पर कई बार दमकल धोखा भी दे देते हैं.
पंप बनाने जाते हैं टाटा या ओड़िशा
दुमका तो क्या अग्निशमन वाहनों के पंप में कोई खराबी आ जाती है, तो उसे बनाने के लिए मिस्त्री को या तो टाटा या ओड़िशा से बुलाना पड़ता है. मामूली मरम्मत ऐसे में टलती रहती है और समस्या विकराल होती है तो पूरी गाड़ी ही बैठ जाती है.
अकेले ही खोद डाला 20 फीट का कुआं
सानू दत्ता
सीढ़ियां उन्हें मुबारक हो, जिन्हें सिर्फ छत तक जाना है. मेरी मंजिल तो आसमान है रास्ता मुझे खुद बनाना है. ये लाइन जिले के मसलिया प्रखंड के सांपचाला पंचायत के कुकुरतोपा गांव निवासी महादेव राय पर सटीक बैठती है. आज के समय में जहां लोग सरकारी योजना व दूसरों पर निर्भर होकर ही किसी काम को करना चाहते हैं. वहीं महादेव ने अकेले ही सिंचाई के लिए 20 फीट का कुआं खोद दिया. टूटी झोपड़ी में रहनेवाले महादेव ने बताया कि सरकार की तरफ से किसी प्रकार का लाभ नहीं मिला है. वह यह भी नहीं जानते है कि लाभ प्राप्त कैसे किया जा सकता है. महादेव घर के पास ही स्थित छोटी-सी जमीन पर सब्जी की खेती करते है. उसे बेच कर जिंदगी की गाड़ी खींचते हैं. महादेव पहले दूसरे के कुआं व तालाब से पानी लाकर अपनी छोटी-सी जमीन में लगाये गये फसल पर सिंचाई करते थे. पर एक दिन उसे सिंचाई के लिए पानी देने से इनकार कर दिया. इस पर महादेव न तो उस व्यक्ति से झगड़ा किया और न ही अपनी खेती को बंद. उसने उसी दिन से अपनी निजी सिंचाई व्यवस्था की सुविधा के लिए लग गये. घर के पास स्थित जमीन पर कुआं खोदना शुरू कर दिया. एक साल में 20 फीट गहरा कुआं बना दिया है. अब महादेव अपने ही कुएं से अपनी जमीन पर सिंचाई कर सब्जी उत्पादन कर रहे हैं. महादेव ने बताया कि उसने कुएं के लिए गड्ढा खोदना शुरू किया तो गांव के लोग उसे पागल कहते थे. पर उसने गांव वालों की बातों का परवाह किये बिना अपना काम जारी रखा तथा उसके पास खुद का कुआं है. ग्रामीण भी उनके इस कार्य को देख कर अब उनकी प्रशंसा करने में नहीं चुक रहे हैं. गांव में कोई भी आने पर ग्रामीण महादेव के बारे में अवश्य ही बताते हैं.
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