दुमका : दुमका कहने को तो उपराजधानी है, लेकिन यहां स्वास्थ्य सुविधाएं ना के बराबर है. हादसे में घायल मरीज का ईलाज यहां अधिकांश मामलों में नहीं हो पाता और वह गोल्डन ऑवर हाथ से निकल जाता है, जिसमें उचित ईलाज से किसी की जान बचायी जा सकती है. नेशनल हाइ-वे से जुड़ने के बाद भी यहां ट्रॉमा सेंटर स्थापित करने की दिशा में अब तक कोई पहल नहीं हो सकी है. ट्रॉमा सेंटर स्थापित होने से विभत्स हादसे में घायल लोगों का ईलाज संभव हो पाता.
औसतन दुमका जिले में साल में सड़क हादसे में सौ से अधिक जाने जाती हैं. अगर यहां ट्रॉमा सेंटर स्थापित हो तथा 300 बेड वाले इस अस्पताल में सीटी स्कैन जैसी बुनियादी जांच सुविधाएं उपलब्ध होती, तो हादसे में मौत के आंकड़े शायद इतने बड़े नहीं होते. सड़क हादसे में घायल व्यक्ति को लंबी दूरी के सफर के जरिये दूसरे अस्पताल तक पहुंचाना भी कम जोखिम भरा नहीं होता.
सत्यप्रकाश की स्थिति बनी हुई है गंभीर
दुर्गापुर में इलाजरत सत्यप्रकाश की स्थिति गंभीर और चिंताजनक बतायी जा रही है. हादसे के 36 घंटे के बाद भी वह खतरे से बाहर नहीं निकल पाया है. चिकित्सकों ने उसे 72 घंटे के विशेष आब्जर्वेशन पर रखा है. उसके शरीर की कई हड्डियां टूट गयी है और सिर में भी जख्म है.
डायग्नोस्टिक सेंटर तो बना लेकिन सीटी स्कैन मशीन नहीं
बता दें कि दुमका में जब डायग्नोस्टिक सेंटर का उद्घाटन हुआ था, उस वक्त इसमें सीटी स्कैन की सुविधा उपलब्ध होनी थी. डायग्नोस्टिक सेंटर 2003-04 में ही बना था और तीन-चार साल बाद चालू हुआ था. पर सिटी स्कैन की सुविधा चालू नहीं हो सकी.