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निजी स्कूलों में नहीं चलतीं एनसीइआरटी की पुस्तकें

धनबाद: निजी स्कूलों में एनसीइआरटी की मूल पुस्तकें नहीं चलायी जातीं हैं. वहां मोटे कमीशन के लिए प्राइवेट पब्लिकेशनों की पुस्तकें चलायी जा रही हैं. स्कूल प्रबंधन, पब्लिकेशन और दुकानदार का मिलाजुला रैकेट काम कर रहा है. स्कूल प्रबंधन को पब्लिकेशन व दुकानदारों दोनों से कमीशन मिलता है. स्कूल फीस, बस फीस स्कूल ड्रेस के […]

धनबाद: निजी स्कूलों में एनसीइआरटी की मूल पुस्तकें नहीं चलायी जातीं हैं. वहां मोटे कमीशन के लिए प्राइवेट पब्लिकेशनों की पुस्तकें चलायी जा रही हैं. स्कूल प्रबंधन, पब्लिकेशन और दुकानदार का मिलाजुला रैकेट काम कर रहा है.

स्कूल प्रबंधन को पब्लिकेशन व दुकानदारों दोनों से कमीशन मिलता है. स्कूल फीस, बस फीस स्कूल ड्रेस के साथ-साथ पुस्तकें भी अभिभावकों के लिए बड़े बोझ के समान हो गयी हैं. केवल एक बच्चे पर अभिभावक को हर साल करीब हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. ऐसा नहीं कि हर साल नयी पुस्तकें ही जरूरी है, लेकिन स्कूल प्रबंधनों की मनमानी के आगे अभिभावकों की एक नहीं चलती. स्कूल प्रबंधन उपायुक्त के आदेश भी नहीं मानते. 29 अप्रैल 2013 को उपायुक्त ने निजी स्कूल प्रबंधनों के साथ बैठक की थी. कहा था कि हर वर्ष स्कूलों में पुस्तकें नहीं बदली जाये. खरीदारी के लिए दुकान विशेष चिह्न्ति करना अभिभावकों को असहज करता है. इसलिए स्कूल प्रबंधन किसी विशेष दुकान को खरीदारी के लिए चिह्न्ति नहीं करेंगे. स्कूल प्रबंधन अभिभावकों को समय पर बुक लिस्ट देंगे.

सेट होती हैं दुकानें : मोटे कमीशन के लिए स्कूल प्रबंधनों ने दुकानें सेट कर रखी हैं. इसके लिए अभिभावकों को खास दुकानों के नाम दिये जाते हैं और वहीं से खरीदारी को कहा जाता है. स्कूल प्रबंधन बुक लिस्ट के साथ अभिभावकों को ऐसे दुकान के नाम बता देते हैं या तो स्कूल के नोटिस बोर्ड पर संबंधित दुकान से पुस्तक लेने का निर्देश होता है.

नहीं मिलती बुक लिस्ट : ज्यादातर स्कूल अभिभावकों को समय पर बुक लिस्ट नहीं देते. बच्चे के रिजल्ट के दिन या नये शैक्षणिक सत्र शुरू होने से ठीक पहले बुक लिस्ट दिये जाते हैं. बुक लिस्ट में भी ऐसी पब्लिकेशन की पुस्तकों के नाम होते हैं, जो सभी या ज्यादातर पुस्तक दुकानों में नहीं मिलती.

नहीं चलती पुरानी पुस्तकें : स्कूलों में पुरानी पुस्तकें नहीं चलती. स्कूल प्रबंधन इसे बच्चों की पसंद बताते हैं. वहीं अभिभावकों की मानें तो बच्चों को नयी पुस्तकों के लिए उनके क्लास टीचर कहते हैं. मामले में भी उपायुक्त का निर्देश था कि नयी पुस्तक के लिए स्कूल प्रबंधन अभिभावक पर कोई दबाव नहीं बनाये.

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