धनबाद : पूर्व डिप्टी मेयर और कांग्रेस नेता नीरज सिंह समेत चार लोगों की हत्या में अब तक की पुलिस जांच से रांची पुलिस मुख्यालय के अफसर असंतुष्ट हैं. क्योंकि मामला अब तक अनसुलझा है. हालांकि मुख्यालय के अफसर इस बाबत मीडिया में सार्वजनिक रूप से बोलने से बच रहे हैं.
एडीजी व आइजी स्तर के अफसरों के साथ रिटायर्ड अफसरों ने भी जांच व अब तक की कार्रवाई पर उंगली उठायी है. अफसरों का कहना है कि पुलिस को एफआइआर के अलावा अन्य विकल्प भी खुले रखने चाहिए. पुलिस को शूटरों को ठहराने वाले, शूटरों को को हायर करने वाले व शूटरों को दबोचना चाहिए. बगैर शूटरों की गिरफ्तारी व हत्या में प्रयुक्त हथियारों की बरामदगी के पुलिस किसी पर षडयंत्र का ठोस साक्ष्य कोर्ट में पेश नहीं कर पायेगी. पुलिस को ऐसे लोगों को पहले गिरफ्तारी करनी चाहिए जिसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हों, जो बाहर रखकर साक्ष्य को मिटा सकें और अनुसंधान तथा गवाहों को प्रभावित कर सकें. कोई ऊपरी दबाव नहीं है तो जल्दीबाजी में कोई कार्रवाई नहीं करनी चाहिए. जल्दीबाजी व बगैर ठोस साक्ष्य के अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेज देने से वे लोग कानूनी लाभ ले सकते हैं.
मुख्यालय के अफसरों का मानना है कि नीरज हत्याकांड में जिन तीन लोगों को जेल भेजा गया है, उसमें संजय व धनजी का स्वीकारोक्ति बयान भी काफी कमजोर है. ऐसे स्वीकारोक्ति बयान पर अभियुक्तों को सरल तरीके से कानूनी लाभ मिल जायेगा. पुलिस को तीनों के खिलाफ कड़ी से कड़ी जोड़नी चाहिए. अगर पुलिस रंजय की हत्या के प्रतिशोध में नीरज की हत्या मानती है तो पुलिस को पता लगाना होगा कि रंजय की हत्या किसने और क्यों की? नीरज की हत्या को प्रोफेशनल शूटरों ने अंजाम दिया है. मोटी रकम देकर ही ऐसे शूटरों को हायर किया जा सकता है. फिर पुलिस के लिए यह महत्वपूर्ण बिंदु है कि इतनी मोटी रकम कौन भुगतान कर सकता है? आनन-फानन में पुलिस तीन को मामले में जेल तो भेज दिया, लेकिन उनके खिलाफ चार्जशीट लायक पर्याप्त साक्ष्य कोर्ट में देना जरूरी है. पुलिस की ओर से दिये गये स्वीकारोक्ति बयान तो वैसे भी वैध नहीं होते हैं. अभियुक्त अपने साथ मारपीट कर सादे कागज पर हस्ताक्षर का आरोप लगाते हैं.
मुख्यालय के सीनियर अफसरों का कहना है कि कुसुम विहार के जिस घर में शूटरों के ठहरने की बात आ रही है वहां से कोई ठोस साक्ष्य पुलिस को नहीं मिले हैं. वहां शूटरों का पहचानकर्ता बन किराये पर मकान दिलाने वाले की गिरफ्तारी सबसे अहम होगी. पुलिस हत्या के 15 दिनों बाद भी असली कातिल, षडयंत्रकारी व षडयंत्र में शामिल लोगों तक नहीं पहुंच पायी है. मुख्यालय के अफसरों का कहना है कि पीड़ित पक्ष को विश्वास में लेकर जांच टीम को हत्याकांड के किसी दूसरे कोण पर भी नजर रखनी चाहिए थी. अगर नीरज संजीव में दुश्मनी थी तो इसका फायदा किसी दूसरे ने तो नहीं उठाया. हत्या के क्या कारण हैं, एफआइआर में नामजद लोगों के मोबाइल लोकेशन घटनास्थल के आसपास होना षडयंत्र नहीं हो सकता है. अगर पुलिस किसी को यह आरोप लगाकर जेेल भेजती है कि हत्या की योजना उसे मालूम थी तो संबंधित लोगों के खिलाफ ठोस साक्ष्य जरूरी है.
एफअाइआर व प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार नामजद लोगों पर हत्या करने का आरोप है. पुलिस को घटनास्थल पर प्रत्यक्षदर्शियों व स्वतंत्र गवाहों का बयान अंकित करनी चाहिए. घटनास्थल पर व आसपास के लोगों का मोबाइल डंप निकालना चाहिए. पुलिस को मामले में मौके से स्वतंत्र गवाह का बयान केस में अहम कड़ी साबित हो सकती है. पुलिस ऐसा नहीं कर सक रही है. यही कारण है कि पुलिस को अभी तक हत्याकांड में जेल भेजे गये व नामजद लोगों के खिलाफ ठोस साक्ष्य नहीं मिले हैं.