28.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

डॉक्टर का ड्राइवर दे रहा था एनेसथेसिया

धनबाद: पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के ऑपरेशन थियेटर में एक मरीज को ऑपरेशन के दौरान एनेसथेसिया (बेहोश करने की दवा) एक डॉक्टर का ड्राइवर दे रहा था. पोल खुली तो ड्राइवर भाग खड़ा हुआ. आनन-फानन में एक जूनियर रेजिडेंट को बुला कर एनेसथेसिया का डॉक्टर बता दिया गया. पीएमसीएच में कुव्यवस्था की यह पोल […]

धनबाद: पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के ऑपरेशन थियेटर में एक मरीज को ऑपरेशन के दौरान एनेसथेसिया (बेहोश करने की दवा) एक डॉक्टर का ड्राइवर दे रहा था. पोल खुली तो ड्राइवर भाग खड़ा हुआ. आनन-फानन में एक जूनियर रेजिडेंट को बुला कर एनेसथेसिया का डॉक्टर बता दिया गया. पीएमसीएच में कुव्यवस्था की यह पोल खुली गुरुवार को एमसीआइ टीम के निरीक्षण के दौरान. सूत्रों के अनुसार टीम जब पीएमसीएच के ऑपरेशन थियेटर में गयी तो वहां एक ऑपरेशन चल रहा था.

टीम के सदस्यों ने एनेसथेसिया दे रहे डॉक्टर से उसका क्वालिफिकेशन पूछा तो वह घबरा गया. नजरें बचा कर भाग गया. दरअसल वह डॉक्टर नहीं बल्कि एनेसथेसिया के एक वरीय चिकित्सक का ड्राइवर है. वहां मौजूद अस्पताल के वरीय चिकित्सकों ने एक जूनियर डॉक्टर को ला कर खड़ा कर दिया. कहा कि यह एनेसथेसिया के डॉक्टर हैं. टीम ने जब उक्त डॉक्टर के क्वालिफिकेशन के बारे में पूछा तो वह घबराते हुए बोला एमबीबीएस. इस पर टीम के सदस्यों ने अस्पताल-अधीक्षक एवं वरीय चिकित्सकों से कहा क्यों किसी मरीज की जान लेना चाहते हैं. सूत्रों के अनुसार ओटी में डॉ अरुण कुमार की ड्यूटी थी, उनका पांव टूटा हुआ है. निरीक्षण की सूचना पर पहुंचे थे.

इंटर्न दे रहा था एनेसथेसिया : अधीक्षक
पीएमसीएच अधीक्षक डॉ के विश्वास ने पूछने पर बताया कि औचक निरीक्षण के दौरान ओटी में एनेसथेसिया देने वाला शख्स किसी डॉक्टर का चालक नहीं था, बल्कि कॉलेज का इंटर्न डॉ राहुल था. वह भी प्री-ऑपरेटिव तैयारी कर रहा था. उन्होंने स्वीकार किया कि एमसीआइ टीम ने एक जूनियर डॉक्टर को एनेसथेसिया कार्य में लगाने पर आपत्ति जतायी थी. कहा कि जहां तक डॉ अरुण कुमार का सवाल है तो वह छुट्टी पर चल रहे हैं. कल पांव टूटे होने के बावजूद आये थे. निरीक्षण के दौरान विभाग में बैठे हुए थे.

सात प्रोफेसर के सहारे मेडिकल कॉलेज
पीएमसीएच में पीजी की पढ़ाई के लिए चल रही कवायद को मूर्त रूप देने में शिक्षकों की कमी बड़ी बाधा है. पूरे मेडिकल कॉलेज में केवल सात विभागों में ही प्रोफेसर हैं. बाकी विभाग सह प्राध्यापक या सहायक प्राध्यापक को प्रभारी विभागाध्यक्ष बना कर चलाया जा रहा है. आई, इएनटी, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, जिसमें पीजी की पढ़ाई शुरू कराने के लिए राज्य सरकार ने दो-दो लाख रुपये का फीस एमसीआइ में जमाया कराया गया. निरीक्षण टीम को जब पता चला कि इन तीनों ही विभाग में एक भी प्रोफेसर नहीं है तो कहा कि फिर फी जमा करने की क्या जरूरत थी. बिना शैक्षणिक पद भरे पीजी की पढ़ाई के लिए अनुमति नहीं मिल सकती.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें