धनबाद: धनबाद रेल डिपो के 43 प्रतिशत ड्राइवरों को दृष्टि दोष है. वे चश्मा लगा कर ट्रेन चलाते हैं. रेल प्रशासन इसे गंभीर नहीं मानता. उसका कहना है कि ड्राइवरों की नियमित नेत्र जांच होती है और चश्मा दृष्टि दोष दूर करने के लिए ही दिया जाता है. धनबाद रेल डिपो में लगभग 200 ड्राइवर और 150 असिस्टेंट ड्राइवर (कुल 350) हैं. इनमें 150 चालक-सह चालक चश्मा पहन कर ट्रेन चलाते हैं. आंखों की ज्योति के आधार पर ट्रेनों की जिम्मेवारी दी जाती है. कई दफा रेलवे के पैमाने पर खरे नहीं उतरने वाले ड्राइवरों को दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है.
ये हैं जांच के पैमाने
प्रत्येक चालक की बहाली के समय शारीरिक जांच होती है. उसमें आंखों की दृष्टि सर्वोत्तम कोटि की होनी चाहिए. इस कोटि को ए वन कहा जाता है. इसमें दोनों आंख की क्षमता 6/6 होनी चाहिए. अगर रंग दृष्टि दोष है तो उन्हें इस पद के लिए अयोग्य ठहरा दिया जाता है.
नियुक्ति के बाद प्रत्येक चार वर्ष पर सभी रेल चालक व सह चालक की नेत्र जांच की जाती है. आम तौर पर छह साल के बाद कई ड्राइवरों की आंखों में कुछ न कुछ दृष्टि दोष पाया जाता है. इस दौरान दोनों आंख की दृष्टि क्षमता 6/9 हो जाती है.
45 से 55 साल के बीच के ड्राइवरों की नेत्र जांच प्रति दो-दो साल में की जाती है. जबकि 55 साल से ज्यादा उम्र वालों की प्रति वर्ष नेत्र जांच की जाती है.अगर दोनों आंख की दृष्टि क्षमता 6/9 व 6/9 है उसे ड्राइवर के लिए अयोग्य माना जाता है. यदि एक आंख की दृष्टि क्षमता 6/6 व दूसरी आंख की 6/12 है तो उसे भी ड्राइवर के लिए अयोग्य माना जाता है.
‘‘सभी रेल ड्राइवरों की नियमित रूप से जांच करायी जाती है. किसी भी प्रकार की कमी होने के बाद चश्मा लगता है. उन्हें हिदायत है कि वह अपने साथ एक अतिरिक्त चश्मा लेकर चलें. ताकि एक चश्मा घर में छूट जाने या टूट जाने के बाद भी वह सुरक्षित सेवा दे सकें.
वेद प्रकाश, सीनियर डीओएम, धनबाद.